Monday 30 December 2019

मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा minnat karte jindagi bitaa lunga

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वो रूठ जाए तो मना लूंगा
वो नखरे दिखाए तो उठा लूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा

वो भूल जाये मुझको तो याद दिला दूंगा
वो नजरे चुराए तो नजरो के सामने ही रहूंगा
वो मेरे न हुए तो खुदको उनके नाम लिखा दूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा

वो बेवफाई भी करे तो भी अकेले ही वफ़ा निभा दूंगा
देना पड़ा गर उनको हिसाब तो सब बही खाते मिटा दूंगा
वो चाहत नही इबादत है मेरी ,मैं जिद्द को जुनून बना दूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा

गलती से रोये गर कभी वो तो मैं खुद को मोम सा पिघला दूंगा
हँसना चाहेंगे गर कभी वो तो खुद को जोकर बना दूंगा
दिल्लगी करे या दिलजोई , मै लम्हा उनके कदमो मैं रहूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा


Saturday 28 December 2019

काश कोई ऐसा इंतजाम हो जाये

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काश कोई ऐसा इंतजाम हो जाये
के बेवफाओ के चेहरे की खास पहचान हो जाये
शहरों शहर घूमकर करते है दिल्लगी
उनका धंधा बस एक बार मैं ही तमाम हो जाये

कोई काजल का टीका या छोटा सा तिल
चेहरे पर ही कोई बेवफाई का निशान हो जाये
उभर आये नीयत के दाग चेहरे पर ही
ताकि उसके चेहरे की मासूमियत उसके काम ना आये

या फिर यू हो के थोड़ा शर्म का कोटा ही बढ़ा दो
के जो करे बेवाफ़ाई उसकी नजरे ही झुका दो
वो सामने आए तो देखकर झुकी गर्दन उसकी
साबित खुद ब खुद सब इल्जाम हो जाये


Saturday 14 December 2019

मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

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मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
तन पर दो सूती कपड़े लपेट कर देश प्रेम में जलना चाहता हु
करोड़ो का सूट पहन के देशभक्ति और फकीरी का दावा करने वालो के लिए फिर से
भारत छोड़ो आंदोलन करना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं बनना चाहता हु

मैं वो गांधी बनना चाहता हु जो पराये देश को भी अपना बना डाले
ना कि वो नेता जो 70 साल की महिला को बार बाला कह डाले
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

सही कहते है के जो कहते है के देश की सत्ता क्या गांधी परिवार ही चलाएगा
गांधी का परिवार तो ये देश है बच्चा बच्चा कब खुद  के अंदर का गांधी पहचान पायेगा
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

मैं सत्ता वाला गांधी नही सेवा वाला गांधी कहलाना चाहता हु
विदेशो की नही देश की भीतर का हाल जानना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

भेद भाव और जातपात की औकात मिटाना चाहता हु
देश प्रेम को ही सबका धर्म बनाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

स्वतंत्रता का सेनानी से महात्मा कहलाने की खोज में जाना चाहता हु
सच मानो गर जिंदा रहता आज तो गोडसे को भी गले लगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

बात बात पे पाकिस्तान पहुचाने वालो को अखंड भारत वाली सोच सुनना चाहता हु
सरहद पार की जमी भी हिन्द का ही खंड थी कभी बस ये बताना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

है हिन्दू मेरा भाई, है मेरा मुसलमान भी मेरा भाई
ये याद कराना चाहता हु
एक घर के दो हिस्से हो तो भी वैर न पालो ये बात बटवारे के संदर्भ में समझाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

लोकतंत्र की बात है जो चाहे नेता बने जो चाहे बने फकीर
सत्ता दिलो पे राज का नाम है कुर्सी पे नही, बस इतना समझाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

हे देशबन्धुओ, नेता और अभिनेता मैं फर्क तुम भूल न जाना
ढोल तमाशे ठहाको को राजनीति का हिस्सा न बना देना
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

आज़ादी की लड़ाई खत्म हुई पर काले अंग्रेजो से जंग अभी बाकी है
घूसखोरों भरस्टाचारो के खिलाफ फिर से अभियान चलाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

अब घर घर से एक गांधी बाहर आये इस जरूरत का अहसास दिलाना चाहता हु
गांधी वाली सोच को फिर से दिलो मैं जगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु

कैसे सोचा घर खुद का जले तो  तुम चैन से सो जाओगे
गांधी नाम नही था सोच और आवाज थी फिर से देश को जगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु


मैंने जी है जिंदगी

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तेरी वफ़ा के भरम मैं जी ली है मैंने मेरी जिंदगी
तूने जब जब पुकारा मेरा नाम
एक नई सांस भरी है मेरी जिंदगी

बिछुड़ गया तो बरसो पहले
पर पल पल तेरी याद में मैंने जी है जिंदगी
सावन की तरह बरसी है मेरी आँखें
खारे पानी को मीठा समझ मैंने पी है जिंदगी

तेरा इंतजार इस हद तक किया है मैंने
देखने वालों ने इसे कहा है तेरी बंदगी
सिर्फ जिस्म ही मेरा रहा मुझमें बाकी
रूह तो तेरे नाम की थी जब तक थी ये जिंदगी


Friday 6 December 2019

दरमियां अधूरी रचना

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तेरे मेरे दरमियां है ये क्या फासला
बस चार कदम ही तो है दरमियां

तेरे झरोखे से झलकती रोशनी की किरणें
मेरे झरोखों से साफ दिखती है
वो हवा भी मेरे छत से चलती है के जिसके छूते ही तू बला सी मचलती है


यू वफ़ा निभाओगे yu vafaa nibhaoge

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तुम यू वफ़ा निभाने की बात करते हो
मानो एक शेर, बकरी न खाने की कसम खाता हो


Thursday 5 December 2019

एक और सर्द रात

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एक और सर्द रात

अंधेरे के ग्यारह बजे आज
और मेरी एक और सर्द रात
आंखे नींद से बोझिल होती हुई
पर दिल कहे के क्या करेगी सोकर आज

बदन पूरी तरह थकान से चूर हो रहा है
मानो उसके जाने का गम फिर ताजा हो रहा है
सोने को तो सो जाऊ पल भर में ही
मगर रूह पे फिर पुराने अहसासों का जादू हो रहा है

कुछ लाहसिल नाकामयाब ख्वाइशें फिर से दस्तक दे रही है
कोई आवाज कहती के तू सो जा , हम भी यही है
सो जाऊ गर आज भी तकिया उनकी बाजू का हो
सो जाऊ गर उनकी सांसो की आवाज मेरे कानों में हो

ढीठ कितना है ये दिल , सो दफा समझाये पे भी मानता नही
हर बार उस मुसाफिर का राह देखता है जो इस तरफ का रास्ता भी जनता नही
ये तो शुक्र है के तेरे दर्द के मारे सो जाती हु तो देख लेती हूं तुनको
वरना तो नींद से परियो से सालो से मेरा कोई वास्ता ही नही


Monday 4 November 2019

लाख मन्नते

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तुमसे दूर हो रही हु
देखो हालात से मजबूर हो रही हु

लाख मन्नते मांगी के तुम मिलोगे तो इस दर जाएंगे
वह दिए जलाएंगे वह धागा बांधकर आएंगे
हम मिल तो गए पर इस तरह के जैसे मिले ही नही थे


कान्हा और राधा दूर हुए kanha aur radha dur huye

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लो फिर से कान्हा और राधा दूर हुए
दुनियादारी के असूलों से माजूर हुए

अब तड़पेंगे ये अकेले अकेले
अब न भायेंगे सावन के झूले
उनकी यादों के होंगे बस मेले
सोचेंगे दिन रात यही के भूले तो कैसे भूले

इन बेगुनाहो से  क्या कसूर हुए
दिल से दूर नही पर नजरो से क्यू दूर हुए

जलेबी अब शायद मीठी न लगे
चाट पकोड़ी भी कुछ बासी बासी लगे
रंगों में भी अब  जी ना लगे
बिछुड़ गए है पर प्रीत की लो न बुझे

वो गली का पुराना ठिकाना अब भी मशहूर हुआ है
खाली टेबल कुर्सी पे अभी ब तेरा वजूद बैठा हुआ है

तुम बिन होली आई दीवाली आई
रंगों से, पटाखों से दिल जले है हाय
सब कुछ जला तेरी याद कुछ ऐसे जलाये
उम्मीद कोई बची हो तो कोई हमको भी बताये

दिल की सुनसान हवेली से एक आवाज दूर तक जाए
के आज रात उनके ख्वाबो ख्यालो मेरा रूप उभर जाए


शायद फिर मिलेंगे हम कभी shyad phir milenge hum kabhi

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मैं जानती हूं के वो मुझे माफ़ करेंगे नही
वो भी जानते है के मैं भी उनके सितम भूलूंगी नही
पर इसका मतलब ये कैसे हुआ के उनको प्यार भी करूँगी नही

उनके शिकवे खत्म शायद होंगे नही
मेरे दिल के मलाल भी अब कम होंगे नही
पर ये किसने कहा के हुम् एक दूजे के दिल में रहेंगे नही

मैं जानती हूं के शायद अब कभी बात न करे मुझसे
मैं भी खुद से पहल कतई करूँगी नही
पर लब खामोश रहे तो क्या दिल भी आवाज सुनेंगे नही

उनको जिद्द है तो बने रहे जिद्द पर अपनी
मैं तो नीचे झुकने से रही
कोई पूछे सामने ना आये तो क्या ख्यालात मैं भी आएंगे नही

वो कहेंगे के जाओ तुमसे प्यार नही अब हमें
मैं भी कह दूंगी जाओ हम भी तुम बिन मरेंगे नही
कोई ये भी बताए के एक दूजे बिना क्या लोग हमे जिंदा कहेंगे नही

तमाम उम्र का वादा और चंद कदमो पे लड़खड़ा गए
जितना संभाला मगर हालात बेकाबू से होते गए
गिले शिकवे है हावी तो क्या ये जज्बात अरमान मरेंगे नही

वो दूर हो गए हमसे , हुम् भी मजबूर हो गए
न उन्होंने देखा मुड़के न हमने देखा तो क्या हुआ
एक डगमगाते बुझते दिए कि लो कहती है के शायद फिर मिलेंगे हम कभी


Saturday 5 October 2019

कोई जरूरी नही koi jaruri nahi

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प्यार हमने किया है तुमसे  दिल से
कोई मज़बूरी तो नहीं
बेवफा तुम हो जाओ तो हम भी बेवफा ही हो जाये,
कोई जरुरी तो नही

सुना है अब कोई और चेहरा तुम्हे चाँद सा नजर आता है
सुना के तू अब उसकी गली के चक्कर लगता है
पर कभी तुम आना हमारी गली
हम भी देखेंगे के तेरे मेरे बीच कोई दुरी तो नहीं
प्यार हमने किया है दिल से
कोई मज़बूरी तो नही

सुना है के अब कोई और शमा तुम्हारी महफिले रोशन करती है
सुना है के अब मेरी जगह कोई और तमाम रात जलती है
चलो हम भी देखते है उसके जलवे,
के उसके जिस्म में भी कस्तूरी तो नही

तुम फ़िक्र न करो मई जानती हु खत्म मेरा किस्सा  हुआ
अब हु मैं हु एक पुराना फूल
थोडा बिखरा हुआ
तुमको रोकूँगी नहीं मै
क्योंकि तेरी जुबान में भी वो बांसुरी नहीं










खेल नियत काKhel niyat ka

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कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है


मैं बतौर हैसियत एक फ़क़ीर और वो एक बादशाह सा है
मगर बतौर नियत मै एक बादशाह और वो फ़कीर सा है

वो आया लेने इश्क़अपना देकर हजार वादे,
मगर मै निभाती चली गई वो भुला अपने इरादे
वो आया था सपने लेकर मगर झोली में धोखा डाल गया
मई आई थी सिर्फ उम्मीद लेकर और वफ़ा दे कर लौटी हु

कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है
इसका इश्क़ बारिशो की तरह था
बरस गया, भिगो गया और  बाह गया फिर कही खो गया
मेरा इश्क़ इक हरे दरख़्त सा था के हरा हो गया , तपन सह गया  और हवाये देता रहा
वो बतौर हैसियत निभा सकता था और मैं बतौर हैसियत उसे भुला सकती थी
मगर मै बतौर नियत उस से निभा गई और वो बतौर नियत मुझे भुला गया

श्याद सही ही कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

वो कहता था के कभी किसी मज़बूरी में भी मुझसे दूर न होगा
मगर आज इतना मजबूर हुआ के वो दूर हो गया
मै कहती थी के गर मे बिछुड़ जाऊ तो मेरी मज़बूरी समझ लेना
मगर मेरी किसी भी मज़बूरी में उससे दुरी न हो पाई

वो बतौर हैसियत तारे तोड़ सकता था मेरे लिए मै बतौर हैसियत कुछ भी न कर सकती थी उसके लिए
मगर मै बतौर नियत अब भी उसका इन्तजार करती हु
और वो बतौर नियत मुझसे हर ताल्लुक से इंकार करता है
सही ही कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

मोहब्बत के पाक दामन को वहशतो से भर दिया
हाय उसने क्या कर दिया

वो कहता था के मुझपे कोई इल्जाम न आने देगा
दुनिया की नजर में कभी बदनाम न होने देगा
मै कहती थी मै क्या कर पायुंगी
दुनिया के डर से श्याद तुमसे न मिल पायुंगी
वो बतौर हैसियत मेरा मेहराम बना रहता था और मई बतौर हैसियत कनीज़ बन उसके पास बैठी रहती थी
मगर ये मैं ही हु जो आज बतौर नियत उसपे मेहरबान रहती हु
और वो बटोर नियत मुझसे बस अनजान रहता है
कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

वो मोहब्बत को वहशत की सेज बना गया
और मैं वहशत की सेज पे भी ख्वाब प्यार के बुनती रही
वो रूहानी पाक जज्बे में जिस्मानी भूख ढूंढ बैठा
मैं फूलो और ख़ुशबुओं के सपने संजोती रही
वो बतौर हैसियत मुझे खुद की आबरू बना सकता था
मै बतौर हैसियत सिर्फ खामोशिया ही दे सकती थी
मगर वो बतौर नियत मुझे रस्ते का कंकर मान बैठा
और मै बतौर नियत उसे सर का ताज बना बैठी


Tuesday 24 September 2019

एक पुराना वादा

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जो मैं आई तुम्हारे द्वार तो अंदर बुला लोगे ना
बीती बाते गुजरा जमाना हुई ओर फिर भी कोई पुराना वादा निभा लोगे ना।
तुमसे बिछुड़े हुए मानो सादिया बीत गई जाने कैसे लगते होंगे तुम
गर धुंधला गई मेरी आँखें , तुम तो मुझे पहचान लोगे ना

वो दिन वो घर वो दुनिया वो ख्वाबो भारी बाते, जो हकीकत न बन पाई कभी
गर फिर से रूठ जौ तुमसे तो फिर से तुम उसी अदा से मना लोगे ना

मैंने माफ किया तुम्हारी बेवफाई को, नजर अंदाज किया हर जुदाई को
तुम भी मीठी सब खताये ऐसे ही भूला दोगे ना


ये पैरो के छाले , आंखों के आंसू कुछ तो कहानी कहते है
बहुत दूर तक चलती रही अकेली के तुम कभी तो आवाज  दोगे ना

धूप बहुत तेज रही बरसो और मै भी ये सोच सोच हलकान होती रही
के अब जुल्फों की नरम छाव नही तो तुम ठीक तो होंगे ना

दौलत शोहरत की चकचोंधती सी दुनिया कब मांगी थी मैंने
ख्वाइश तो बस इतनी सी ही थी के दिल में तो जगह दोगे ना

यू अजनबी नजरो से मत देखो के हर वादा अब तक निभाती आई हूं मै
तुम मत निभाना कोई वादा मगर बस एक बार उन वादों को याद तो कर लोगे न


Tuesday 3 September 2019

पैसा है कैसा

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पैसा है कैसा
एक कागज का टुकड़ा
और तिकड़ी का नाच नचाया है
हुआ ये किसी का नही मगर कहता भी कोई नही
के ये पराया है

जानवर और इंसान होते एक समान
गर न होता पैसो का घमासान
क्योंकि रोटी ही मांगे जानवर
रोटी ही मांगे इंसान

आया था ये बड़े दावे लेकर
के करूँगा सब जरूरते पूरी तेरी
पर कमाते कमाते ध्यान ही न रहा
के कब बन गया ये लत तेरी

पैसे से ही तू राजा है
पैसा है तो खाना ताज़ा है
पैसा है तो शान शौकत तेरी
वार्ना धत्त, काहे का तू राजा है

हम भी खूब सुना करते थे बड़े बुजुर्गों से
के पैसा हाथ की मैल हुआ करता है
मगर सच ये के ये दिलो मैं मैल  भरा करता
ये ही तो आज का तकाजा है


Tuesday 20 August 2019

तेरी यादे तुझसे भी बड़ी

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सो बार कत्ल किया मगर फिर भी सामने आ खड़ी हो गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

किसे पानी में डुबाया तो किसे आग में जलाया
एक एक कर तेरी सब निशानियों को मिटाया
मगर फिर भी तू कभी लपटों मैं दिख गई
तो कभी पानी मैं उभर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

तू वापिस आये न आये पर
खुदा करे तेरी यादे ना आये
ना कोयला बना ना मैं राख
ऐसे क्यों ये तपन सुलगाये
वफ़ा से बेवफाई की सीढ़ियां कितनी आसानी से चढ़ गई
जामाने की गर्म हवाओं से वो कितनी जल्दी  डर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

वो जब आती थी तो मौसमो मैं बाहर सी छा जाती थी
उसकी खामोशी भी हजार अफ़साने सुना जाती थी
सुनते है के वो कली किसी और अंगना मैं खिल गई
वो मेरी मोहब्बत थी पर चांदनी बन कही और बिखर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

खूब रोकर देख लिया
खूब सोकर देख लिया
जब जब याद आया तु
मुह धोकर देख लिया
कभी आईने में तस्वीर तेरी दिख गई
तो कभी पानी के बुलबुलो मैं तू मचल गई

न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई


बेटी की माँ कुछ कम माँ

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कहने को तो हर माँ , माँ है
पर मेरी माँ दो बेटीयो की माँ है
माँ तो खैर मा होती है लेकिन
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

कदम कदम पे उसे सिखाता है जमाना
के बेटी को कैसे है पालना
हर आता जाता कह जाता है के बेटा होता तो कोई बात नही, पर बेटीयो का ध्यान रखना
क्योकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

खूब डराता है ये जमाना उसको, गर वो खुद बेटी की पैदाइश से ख़ौफ़ज़दा नही होती
सो बार टोकेगा हर रिश्ता उसे, बार बार समझायेगा के बेटी पराई होती है अपनी नही होती मगर मेरी माँ खफा नही होती
क्योकि बेटी की माँ कुछ कम मा होती है

भेडियो से इसको बचाना होगा, बेटी है तो सब कुछ सिखाना होगा
लाड प्यार से  खराब कर देगा इसको, अगले घर जाकर सब कुछ बनाना होगा
ये सोचती नही मा, बल्कि सबसे सुनती है क्योंकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

पढ़ाई लिखाई खत्म हुई, नोकरी क्यो कराओगी
शर्म नही आएगी क्या बेटी की तनखा खाओगी
शुक्र है जमाने तेरा, के तूने समझाया
क्योकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

अच्छा सा लड़का देखो और शादी कर दो
खुश खूब रखेगा ससुराल गर दहेज जी भर दो
ये मेरी माँ ने माना नही पर तुमने मनवाया क्योकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

बेटी हु तो क्या इंसान तो हु
तेरी नही मगर फिर भी अपने माँ बाप की जान तो हु

अब मुझे बताया जाता है
सो बार समझाया जाता है
के माँ कुछ मुझे नही सिखाया
बस एक बोझ मान कर उठाया
मैं चुप चुप आंसू रोती हु, थाली में भर भर गाली सहती हु
क्योंकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

ये नही लाई, वो नही लाई,
तेरी माँ ने नाक हमारी कटाई
शादी का खर्च शान दिखा अहसान नही कोई किया
अपनी ही बेटी को दिया जो भी दिया
क्योंकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

गर अपनी ही बेटी को दिया तो क्यो है तुमको गिला
बेटा पैदा कर ऐसा क्या अहसान तुमने किया
काश बेटो की माँ भी बेटी की माँ जैसी होती
थोड़ी कम माँ होती पर माँ तो होती

मुझे गिला नही के मेरी माँ कुछ कम माँ है
मुझे तो बस इतना जानना है के बेटो की माँ मैं ममता ज्यादा क्यो है
ज्यादा है तो वो नजर क्यो नही आती
इस से बेहतर तो बेटी की माँ है थोड़ी कम ही सही, पर माँ तो है


जिंदा है तेरी यादें तो जिंदा हु मैं

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जिंदा है तेरी यादें तो जिंदा हु मैं
वार्ना सच कहु अपने जिंदा होने पे बहुत शर्मिंदा हु मैं

जब छू सकता था तुमको तो तुम पर्दानशीं बन बैठे
बेबसी का फशार इतना है
अब जब छू नही सकता तो तुम ही जमी आसमान बन बैठे
मुझपर तेरा खुमार इतना है
हवाओ मैं घुल गई तुम तो सांसे ले पाता हूं मैं
वार्ना घुटन से परेशान पुलिंदा हु मैं

तू जब इंसान थी तो कितनी दूर थी हर बात के लिए कितनी मजबूर थी
अब से तू फसाना बन मशहूर हुई क्योंकि इंसान नही अब तू जन्नत की हूर थी
तेरा जिक्र आता है मेरी जुबा से बार बार तो खैर खा मेरे बहुत है लोग
वार्ना तो कोई आम सा बंदा हु मैं

सोचा था के किसी सुबह तुम चाय की प्याली ले कर दिखोगी मुझे
तुम आती तो मगर चाय के टेबल पर बाते बेहिसाब लिए
तुम जन्नत में जा बसी हो मेरी रूह से आ मिली हो खुदा जाने
खुशनसीबी मेरी के तुझमें जिंदा हु मैं

याद करो कितना मुश्किल होता था तुमको एक नजर देखना
अब तो बेधड़क चली आती हो कभी ख्वाबो मैं, यादों में और कभी बातों में
बेहतरीन है ये अहसास के तेरा न होकर भी हर जगह होना
लगता है मुझको भी के कोई खास चुनिंदा हु मैं


भला ये कोई तरीका है

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अरे रुको, क्या बेधड़क चली आती हो कभी ख्वाबो मैं , कभी यादों में तो कभी बातो मैं

ख्वाब छुटे तो मलाल, याद छुटे तो फसाद, भला ये कोई तरीका है कही जाने का


Thursday 15 August 2019

तेरा गुनाह हूँ मैं,

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मुमकिन ना होगा यूँ  भूल जाना मुझको....i

तेरा गुनाह हूँ मैं, अक्सर याद आऊंगी ...ii


Saturday 27 July 2019

चंद मुक्तक पायल पर Chand muktak payal par

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वो पायलें सालों से बंद कर के रखी है अलमारी की तिजोरी में,
बस इंतजार मुझको इतना है के तुम आओ तो हम भी पहनेंगे
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मेरी खामोशियो की जुबां बन जाते है घुंघरू मेरी पायल के
तेरे सपनो की अधूरी कहानी भी कहते है घुंघुरू मेरी पायल के

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शोर पायल के घुंघरू क्यो न मचाते होंगे
उनके पैरों को चूमकर वो भी मचल तो जाते होंगे


जिक्र पायल का, jikar payal ka

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शायराना माहौल है और जिक्र पायल का हो रहा है
मुझे यकीन है हर कोई अपनी दिलरुबा के नाम से शेर कह रहा होगा
बड़ी अजीब चीज बनाई है जिसने भी है ये बनाई
नाम जेवर का दिया मगर शक्ल जंजीर सी बनाई
देखने वाला तो लज्जतो लुत्फ मैं खो जाता है कही
कभी सोचा ही नही के क्या हुआ
उस लड़की का के जिसके पैरो मैं ये पहनाई होगी
एक सुर्ख जोड़े मैं लाखो अरमान सजाये
कैसे अपनो को छोड़ परायो मैं समाई होगी
किसी के लाडो नाजो मैं पली वो एक नन्ही कली
कैसे कहते होगा वो बाप, के बेटी पराई हो गई
कितनी बार चुभे होंगे ये पायल के मोती उसे खुद को
मगर एक बार भी होंठो पे उफ्फ तक न आई होगी
ओर उस पर गजब ये के खूबसूरती देख पायल की उसकी
हर एक ने उसके महबूब की पसंद की दाद सुनाई होगी


Thursday 25 July 2019

तो चलो छोड़ ही दिया to chalo chhod diya

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तुम्हारा हाथ छोड़ दु
सपनो की डोर तोड़ दु
उम्मीदो के चिराग बुझा दु
तेरे वादों का ऐतबार छोड़ दु
तो चलो छोड़ दिया
क्योंकि तुमने कहा
तो चलो छोड़ ही दिया

तुम्हारा इंतजार छोड़ दु
दूर तक तुम्हे देखना छोड़ दु
तुम्हे देख के मुस्कराना छोड़ दु
तुम्हारे रास्तो पे खड़ा होना छोड़ दु
तो चलो छोड़ दिया
क्योंकि तुमने कहा
तो चलो छोड़ ही दिया

तुमसे सवाल जवाब करना छोड़ दु
तुम्हारी परवाह करना छोड़ दु
पुरानी तस्वीरे फाड़ दु
उन यादों को याद करना छोड़ दु
तो चलो छोड़ ही दिया
क्योकि तुमने जो कहा
तो चलो छोड़ ही दिया

तुम्हारा नाम लेना छोड़ दु
आंखों को नम करना छोड़ दु
तुम्हारा जिक्र छोड़ दु
कहो तो हर तोहफा वापिस मोड़ दु
तो चलो छोड़ दिया
क्योंकि तुमने तो कहा
तो चलो छोड़ ही दिया

सांस छोड़ दु, आस छोड़ दु
कहो तो जहाँ छोड़ तू
मगर ये मत कहना के
तुमको छोड़ दु
ओर कहना भी हो तो
मुझे मत कहना, क्योंकि
मुझमे मैं बाकी ही नही,
बस तू ही तू तो बाकी रहा
तो बताओ के तुम मैं से
कैसे तुम को छोड़ दु


Saturday 29 June 2019

kaala shaa kaala, (punjabi folk song, punjabi wedding song)

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मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये

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मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये
बिछुड़ जाए साथी तो उसे बेवफा न कहिये
बाप की पगड़ी धूल में न मिल जाये
अपनी दिलरुबा को किसी की बेटी भी समझिये
मर के जन्नत मिलेगी या नही ये मरने के बाद कि बात
जीना दुनिया मे है तो दुनियादारी की बात कीजिये
दूर होकर भी वफ़ा इश्क़ निभा सकते है तो निभा लीजिये
इश्क़ करना हो तो राधा कृष्ण सा कीजिये

Friday 28 June 2019

सात आठ शेर saat aath sher

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फिर मिला एक शख्स तन्हा सा
हजारो की भीड़ में कुछ जुदा सा
यू सबसे बात करता था
मगर रहता था खुद मैं डूबा सा
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तन्हाइयां, वीरानियाँ, रुसवाईयाँ, बेचैनियां, 
कितना कुछ तो मिला इश्क़ मैं, 
एक सुकून चला भी गया तो क्या हुआ
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तमाम उम्र तन्हाई मैं गुजरे तो भी तन्हाई की आदत नही होती
पर चार दिन उनके साथ क्या बिता लिये, आदत छूटती ही नही फिर
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तुम्हारी यादे शाम ऐ अवध की जैसी है
शाम होते ही खुद ब खुद नाचने लगती है आंखों में
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होंटो पे हँसी रखकर आज फिर दिन की शुरुवात करूँगी
खिड़की से देखूंगी खिलते फूलो को और तुमको याद करूँगी
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मैंने आंसू नही अंगारे पिये है
अब मत पूछना के जुबान से अंगारे क्यों बरसते है मेरी

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सच कहु तो अब उन्हें याद करने का दिल बिल्कुल भी नही करता
मगर उनकी यादे खुद ही बिना बुलाये चली आये तो क्या करूँ
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कभी कभी ऐसा लगता है के मैं सो रहा हु ओर 
वो तकिये पे सर रख के अपनी जुल्फे मेरे सीने पे गिरा देती है
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जब भी बनती संवरती हु आईने को देखकर, 
जाने कहा से उनकी आवाज कानों मैं कह जाती है के
 'बाल खुले रखना'
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