Monday 23 July 2018

जिन्दा दरगोर

2 comments :

मे औरत हु
सूरज के साथ आई भोर हु
मै बारिश मै नाचता मोर हु
नाजुक सी कच्ची डोर हु
रिश्तों मे सराबोर हु

मे औरत हु
ढलते सूरज की लाली हु
पक्के फल की डाली हु
इज्जत की रखवाली हु
एक अकेली बर्दाश्त वाली हु
औरत जो हु

मे औरत हु
मंदिर मे पूजी जाती हु
रोज पैरो तले रौंदी जाती हु
सबके लिए पकाती हु
पर खुद भूखी सो जाती हु
आखिर औरत जो हु

मे औरत हु
घर से बाहर जाता कोई रास्ता नहीं
चारदीवारी से बाहर मेरा कोई वास्ता नही
घुटन से आजादी का रास्ता नहीं
हो कोई रास्ता भी मगर वो सस्ता नहीं
क्योंकि औरत जो हु

मै औरत हु
मायका अपना नहीं रहा
ससुराल बस सपना ही रहा
बेबसी मुझपे हँसती ही रही
हज़ारो राते डसती ही रही
आखिर क्यों मे औरत हु

मे औरत हु
सदियो से दबी चीखों का शोर हु
क्या क्या किया लेकिन कमजोर हु
सुर्ख लिबाज मे लिपटी हु लेकिन
सच ये है के जिन्दा दरगोर हु
क्यों मे एक औरत हु



Ruchi Sehgal

2 comments :

  1. Apni hindi ko ok kijiye , otherwise humse help le lijiye lekin incorrect mat likhiye

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