आते थे उनसे मिलकर बरसते थी बुँदे रात भर लगता था के जैसे आई हो पर्वतो से घटाए मिलकर तेरे सिवा न थी मंजिले तेरे सिवा न थे रास्ते मानो हर पल रही मैं तुझमें घिरकर
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