जग में आवागवन है कोई आवै कोई जाय। विविधि भांति तन पावहीं करनी का फल पाय।। करनी का फल पाय जीव कहिं चैन न पावै। ईश करैं वहं न्याय पाप तोहि धर पकरावै।। कहैं रहमान मुक्ति तुम चाहहुँ जाय गिरहु प्रभु पग में। कटैं कोटि बाधा अमित फिर नहिं आवहु जग में।।
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