Friday, 16 October 2020
एक तकिये पर ही दोनों संग संग बूढ़े हो
कभी तुम थक कर तकिये पर चूर हो जाओ
इतनी इजाजत तो है तुमको पर ये नही के मुझसे दूर हो जाओ
मौसम तो आते जाते रहेंगे हर बरस इस बरस की तरह
मगर तुमको ये इजाजत नही के अपनी चादर लेकर अलग सो जाओ
ना चूमना हाथ, न गले से लगाना कभी कभी होगी घुटन भी
पर फिर भी मंजूर नही के सांसो से दूर हो जाओ
मुझे मालूम है मेरे जितनी शायराना अदा नही तुम्हारी बातों में
पर फिर भी अपनी सांसो को हमेशा मेरे कानों पे गुनगुनाओ
ये जो तकिया दिया है अलग तुम्हे इसीलिए नही के तुम सो जाओ
बल्कि लम्हे दिए है कुछ तुम्हे, के तुम फिर से मेरे खवाबो मैं खो जाओ
होली दीवाली से ही रंगीन नही होती दिलो की दुनिया
मजा तो तब है गर एक तकिये पर ही दोनों संग संग बूढ़े हो जाये
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