Friday 30 November 2018

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो

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कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

मेरे बाज़ुओं में थकी-थकी, अभी महवे- ख़्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो

ये ग़ज़ल है जैसे हिरन की आँखों में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे ख़राबे की रौशनी, कभी बे-चिराग़ ये घर न हो

कभी दिन की धूप में झूम कर, कभी शब के फूल को चूम कर
यूँ ही साथ-साथ चले सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो

जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

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जहाँ पेड़ पर चार दाने लगे
हज़ारों तरफ़ से निशाने लगे

हुई शाम यादों के इक गाँव में
परिंदे उदासी के आने लगे

घड़ी दो घड़ी मुझको पलकों पे रख
यहाँ आते-आते ज़माने लगे

कभी बस्तियाँ दिल की यूँ भी बसीं
दुकानें खुलीं, कारख़ाने लगे

वहीं ज़र्द पत्तों का कालीन है
गुलों के जहाँ शामियाने लगे

पढाई-लिखाई का मौसम कहाँ
किताबों में ख़त आने-जाने लगे

लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में

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लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में

और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में
मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में

हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में

फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती
कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में

दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी
कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में

एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं 

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एक चेहरा साथ-साथ रहा जो मिला नहीं
किसको तलाश करते रहे कुछ पता नहीं

शिद्दत की धूप तेज़ हवाओं के बावजूद
मैं शाख़ से गिरा हूँ नज़र से गिरा नहीं

आख़िर ग़ज़ल का ताजमहल भी है मकबरा
हम ज़िन्दगी थे हमको किसी ने जिया नहीं

जिसकी मुखालफ़त हुई मशहूर हो गया
इन पत्थरों से कोई परिंदा गिरा नहीं

तारीकियों में और चमकती है दिल की धूप
सूरज तमाम रात यहाँ डूबता नहीं

किसने जलाई बस्तियाँ बाज़ार क्यों लुटे
मैं चाँद पर गया था मुझे कुछ पता नहीं

माही वे तैं मिलिआं सभ दुक्ख होवन दूर ।

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लोकां दे भाने चाक चकेटा, साडा रब्ब ग़फ़ूर ।
माही वे तैं मिलिआं सभ दुक्ख होवन दूर ।

मिलन दी ख़ातर चशमां, बहन्दियां सी नित झूर ।
माही वे तैं मिलिआं सभ दुक्ख होवन दूर ।

उट्ठ गई हिजर जुदाई जिगरों, ज़ाहर दिसदा नूर ।
माही वे तैं मिलिआं सभ दुक्ख होवन दूर ।

बुल्ल्हा रमज़ समझ दी पाईआ, ना नेड़े ना दूर ।
माही वे तैं मिलिआं सभ दुक्ख होवन दूर ।

माटी कुदम करेंदी यार ।

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माटी जोड़ा माटी घोड़ा, माटी दा असवार,
माटी माटी नूं दौड़ाए, माटी दा खड़कार,
माटी कुदम करेंदी यार ।

माटी माटी नूं मारन लग्गी, माटी दे हथ्यार,
जिस माटी पर बहुती माटी, तिस माटी हंकार,
माटी कुदम करेंदी यार ।

माटी बाग़ बगीचा माटी, माटी दी गुलज़ार,
माटी माटी नूं वेखन आई, माटी दी ए बहार ।
माटी कुदम करेंदी यार ।

हस्स खेड मुड़ माटी होई, माटी पायों पसार,
बुल्हा इह बुझारत बुझ्झें, लाह सिरों भोएं मार(भार),
माटी कुदम करेंदी यार ।

लणतरानी दस्स के जानी हुन क्यों मुक्ख छुपाइआ ई ?

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मैं ढोलन विच फ़रक ना कोई एनुमा फ़ुरमाइआ ई ।
आयो सजन गल लग्ग सौवां मैं हुन घुंघट पाइआ ई ।
लणतरानी दस्स के जानी हुन क्यों मुक्ख छुपाइआ ई ?

तन साबर दे कीड़े पाए जो चढ़आ सो पाइआ ई ।
मनसूर कोलों कुझ ज़ाहर होया सूली पकड़ चढ़ाइआ ई ।
लणतरानी दस्स के जानी हुन क्यों मुक्ख छुपाइआ ई ?

दस्सो नुकता ज़ात इलाही सज्जदा किस कराइआ ई ।
बुल्ल्हा शहु दा हुकम ना मन्न्या शैतान ख़वार कराइआ ई ।
लणतरानी दस्स के जानी हुन क्यों मुक्ख छुपाइआ ई ?

क्यों ओहले बह बह झाकी दा । इह परदा किस तों राखी दा ।

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क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।
इह परदा किस तों राखी दा ।

कारन पीत मीत बण आया, मीम दा घुंघट मुक्ख पर पाइआ,
अहद ते अहमद नाम धराइआ, सिर छतर झुल्ले लौलाकी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

तुसीं आपे आप ही सारे हो, क्यों कहन्दे असीं न्यारे हो,
आए आपने आप नज़्ज़ारे हो, विच बरजक्ख रख्या खाकी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

तुध बाझों दूसरा केहड़ा है, क्यों पाइआ उलटा झेड़ा है,
इह डिठा बड़ा अंधेरा है, हुन आप नूं आपे आखी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

किते रूमी हो किते शामी हो, किते साहब किते गुलामी हो,
तुसीं आपने आप तमामी हो, कहो खोटा खरा सौ लाखी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

जिस तन विच इश्क दा जोश होया, उह बेख़ुद हो बेहोश होया,
उह क्यों कर रहे खामोश होया, जिस प्याला पीता साकी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

तुसीं आप असां नूं धाए जी, कद रहन्दे छुपे छुपाए जी,
तुसीं शाह 'इनायत' बण आए जी, हुन ला ला नैन झमाकी दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

बल्ल्हा शाह तन भा दी भट्ठी कर, अग्ग बाल हड्डां तन माटी कर,
इह शौक मुहबत बाटी कर, इह मधूवा इस बिध चाखी (झाकी) दा ।
क्यों ओहले बह बह झाकी दा ।

क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही ।

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क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही ।
लातत्तहर्रक खुद लिख्यो ई किस नूं देना एं फाही ।
शर्हा ते अहल कुरान भी आहे, असीं अग्गे सद्दे आई ।
अलसतुबरब्बुकम वारद होया, कालूबला धुंम पाई ।
कुनफईकून अवाज़ा होया, तदां असां भी कोलों आही ।
लज़्ज़त मार दीवानी कीती नहीं जाती असली आही ।
क्यों लड़ना हैं क्यों लड़ना हैं ग़ैर गुनाही ।

क्यों इश्क असां ते आया ए

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क्यों इश्क असां ते आया ए ।
तूं आया है मैं पाइआ ए ।

इबराहीम चा चिख़ा सुटायउ, ज़करीए सिर कलवत्तर धरायउ,
यूसफ़ हट्टो हट्ट विकायउ, कहु सानूं की लिआया ए ।
क्यों इश्क असां ते आया ए ।

शेख सुनआनों ख़ूक चरायउ, शमस दी खल्ल उलट लुहायउ,
सूली ते मनसूर चढ़ायउ, कर हत्थ हुन मैं वल धाइआ ए ।
क्यों इश्क असां ते आया ए ।

जिस घर विच तेरा फेर होया, सो जल बल कोइला ढेर होया,
जद राख़ उड्डी तद सेर होया, कहु किस गल्ल दा सधराइआ ए ।
क्यों इश्क असां ते आया ए ।

बुल्ल्हा शहु दे कारन करीए, तन भट्ठी मन अहरन करीए,
प्रेम हथौड़ा मारन करीए, दिल लोहा अग्ग पंघराइआ ए ।
क्यों इश्क असां ते आया ए ।
तूं आया है मैं पाइआ ए ।

कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

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की करदा नी की करदा नी,
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

इकसे घर विच वस्सद्या रस्सद्यां, नहीं हुन्दा विच परदा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

विच मसीत निमाज़ गुज़ारे, बुत्तख़ाने जा वड़दा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

आप इक्को कई लक्ख घरां दे, मालक सभ घर घर दा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

जित वल्ल वेखां उत्त वल्ल ओहो, हर दी संगत करदा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

मूसा ते फरऔन बना के, दो हो के क्यों लड़दा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

हाज़र नाज़र उहो हर थां, चूचक किस नूं खड़दा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

ऐसी नाज़ुक बात क्यों कहन्दा, ना कह सकदा ना जरदा ।
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

बुल्ल्हा शहु दा इश्क बघेला, रत्त पींदा गोशत चरदा ।
की करदा नी की करदा नी,
कोई पुच्छो खां दिलबर की करदा ।

की करदा बेपरवाही जे

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की करदा बेपरवाही जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

कुन्न केहा फ़ईकून कहाइआ, बातन ज़ाहर दे वल आया,
बेचूनी दा चून बणाइआ, बिखड़ी खेड मचाई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

सिर मख़फ़ी दा जिस दंम बोला, घुंघट अपने मूंह से खोला,
हुन क्यों करदा साथों ओहला, सभ विच हकीकत आई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

करमन्ना बनी आदम केहा, कोई ना कीता तेरे जेहा,
शान बज़ुरगी दे संग इहा, डफड़ी खूब वजाई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

आपे बेपरवाहियां करदे, आपने आप से आपे डरदे,
रेहा समां विच हर हर घर दे, भुल्ली फिरे लोकाई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

चेटक ला दीवाना होया, लैला बण के मजनूं मोया,
आपे रोया आपे धोया, कही कीती आशनाई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

आपे हैं तूं साजन सईआं, अकल दलीलां सभ उठ गईआं,
बुल्ल्हा शाह ने खुशियां लईआं, हुन करदा क्यों जुदाई जे ।
की करदा बेपरवाही जे ।

की जाणां मैं कोई,

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की जाणां मैं कोई,
वे अड़्या,
की जाणां मैं कोई ।

जो कोई अन्दर बोले चाले ज़ात असाडी होई,
जिस दे नाल मैं नेहुं लगाइआ उहो जेही होई ।
की जाणां मैं कोई ।

चिट्टी चादर लाह सुट्ट कुड़ीए पहन फकीरां दी लोई,
चिट्टी चादर नूं दाग़ लग्गेगा लोई नूं दाग़ ना कोई ।
की जाणां मैं कोई ।

अलफ़ पछाता बे पछाती ते तलावत होई,
सीन पछाता शीन पछाता सादक साबर होई ।
की जाणां मैं कोई ।

कू कू करदी कुमरी आही गल विच तौक प्युई,
बस ना करदी कू कू कोलों कू कू अन्दर मोई ।
की जाणां मैं कोई ।

जो कुझ करसी अल्ल्हा भाना क्या कुझ करसी कोई,
जो कुझ लेख मत्थे दा लिख्या मैं उस ते शाकर होई ।
की जाणां मैं कोई ।

आशक बकरी माशूक कसाई मैं मैं करदी कोही,
ज्युं ज्युं मैं मैं बहुता करदी त्युं त्युं मोई मोई ।
की जाणां मैं कोई ।

बुल्ल्हा शहु इनायत कर के शौक शराब दितोई,
भला होया असीं दूरों छुट्टे नेड़े आन लद्धोई ।
की जाणां मैं कोई,
वे अड़्या,
की जाणां मैं कोई ।

कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

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कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।
तुसीं हर रंग दे विच वस्सदे हो ।

कुनफईकून तैं आप कहाआ, तैं बाझों होर केहड़ा आया,
इश्कों सभ ज़हूर बणाइआ, आशक हो के वस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

पुच्छो आदम किस ने आंदा ए किथों आया कित्थे जांदा ए,
ओथे किस दा तैनूं लांहजा ए ओथे खा दाना उठ नस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

आपे सुने ते आप सुणावें, आपे गावें आप बजावें,
हक्कों कौल सरोद सुणावें, किते जाहल हो के नस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

तेरी वहदत तूएं पुचावें, अनलहक्क दी तार मिलावें,
सूली ते मनसूर चढ़ावें, ओथे कोल खलो के हस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

जिवें सिकन्दर तरफ नौशाबां, हो रसूल लै आया किताबां,
यूसफ़ हो के अन्दर खुआबां, ज़ुलैखां दा दिल खस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

किते रूमी हो किते ज़ंगी हो, किते टोपी पोश फ़रंगी हो,
किते मै-ख़ाने विच भंगी हो, किते मेहर महरी बण वसदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।

बुल्ल्हा शहु इनायत आरफ़ है, उह दिल मेरे दा वारस है,
मैं लोहा ते उह पारस है, तुसीं ओसे दे संग खस्सदे हो ।
कीहनूं ला-मकानी दस्सदे हो ।
तुसीं हर रंग दे विच वस्सदे हो ।

की बेदरदां संग यारी, रोवन अक्खियां ज़ारो ज़ारी ।

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की बेदरदां संग यारी,
रोवन अक्खियां ज़ारो ज़ारी ।

सानूं गए बेदरदी चड्ड के, हिजरे सांग सीने विच गड्ड के,
जिसमों जिन्द नूं लै गए कढ्ढ के, इह गल्ल कर गए हैंस्यारी ।
की बेदरदां संग यारी,

बेदरदां दा की भरवासा, खौफ़ नहीं दिल अन्दर मासा,
चिड़ियां मौत गवारां हासा, मगरों हस्स हस्स ताड़ी मारी ।
की बेदरदां संग यारी,

आवन कह गए फेर ना आए, आवन दे सभ कौल भुलाए,
मैं भुल्ली भुल्ल नैन लगाए, केहे मिले सानूं ठग्ग बपारी ।
की बेदरदां संग यारी,

बुल्ल्हे शाह इक सौदा कीता, पीता (कीता) ज़हर प्याला पीता,
ना कुझ नफ़ा ना टोटा लीता, दरद दुक्खां दी गठड़ी भारी ।
की बेदरदां संग यारी,
रोवन अक्खियां ज़ारो ज़ारी ।

खेड लै विच वेहड़े घुंमी घुंम ।

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खेड लै विच वेहड़े घुंमी घुंम ।

एस वेहड़े विच आला सोंहदा, आले दे विच ताकी
ताकी दे विच सेज विछावां, नाल पिया संग राती
एस वेहड़े दे नौं दरवाज़े, दसवां गुपत रखाती
योस गली दी मैं सार ना जानां, जहां आवे पिया जाती ।

एस वेहड़े विच आला सोंहदा, आले दे विच ताकी
आपने पिया नूं याद करेसां, चरख़े दे हर फेरे
एस वेहड़े विच मकना हाथी, संगल नाल कहेड़े
बुल्ल्हे शाह फ़कीर साईं दा, जागद्यां कूं छेड़े ।
खेड लै विच वेहड़े घुंमी घुंम ।

ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा कुछ नहीं ज़ोर धिङाना ।

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ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा
कुछ नहीं ज़ोर धिङाना ।

गए सो गए फेर नहीं आए, मेरे जानी मीत प्यारे,
मेरे बाझों रहन्दे नाहीं, हुन क्यों असां विसारे,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

चित प्यार ना जाए साथों, उभ्भे साह ना रहन्दे,
असीं मोयां दे परले पार, ज्यूंद्यां दे विच बहन्दे,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

ओथे मगर प्यादे लग्गे, तां असीं एथे आए,
एथे सानूं रहन ना मिलदा, अग्गे कित वल धाए,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

बुल्ल्हा एथे रहन ना मिलदा, रोंदे पिटदे चल्ले,
इको नाम ओसे दा ख़रची, पैसा होर ना पल्ले,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा
ना कर ज़ोर धिङाना ।

केहे लारे देना एं सानूं दो घड़ियां मिल जाईं

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केहे लारे देना एं सानूं दो घड़ियां मिल जाईं ।

नेड़े वस्सें थां ना दस्सें
ढूंडां कित वल्ल जाहीं,
आपे झाती पाई अहमद
वेखां तां मुड़ नाहीं ।

आख ग्युं मुड़ आइउं नहीं
सीने दे विच भड़कन भाहीं,
इकसे घर विच वसदियां रसदियां
कित वल्ल कूक सुणाईं ।

पांधी जा, मेरा देह सुनेहा
दिल दे उहले लुकदा केहा,
नाम अल्लाह दे ना हो वैरी
मुक्ख वेखन नूं ना तरसाईं ।

बुल्ल्हा शहु की लाइआ मैनूं
रात अद्धी है तेरी महमा,
औझड़ बेले सभ कोई डरदा
सो ढूंडां मैं चाईं चाईं ।
केहे लारे देना एं सानूं दो घड़ियां मिल जाईं ।

कौन आया पहन लिबास कुड़े ।

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कौन आया पहन लिबास कुड़े ।
तुसीं पुच्छो नाल इख़लास कुड़े ।

हत्थ खूंडी कम्बल काला, अक्खियां विच वसे उजाला,
चाक नहीं कोई है मतवाला, पुच्छो बिठा के पास कुड़े ।
कौन आया पहन लिबास कुड़े ।

चाकर चाक ना इस नूं आखो, इह ना खाली गुझ्झड़ी घातों,
विछड़्या होया पहली रातों, आया करन तलाश कुड़े ।
कौन आया पहन लिबास कुड़े ।

ना इह चाकर चाक कही दा, ना इस ज़र्रा शौक महीं दा,
ना मुशताक है दुद्ध दहीं दा, ना उस भुक्ख प्यास कुड़े ।
कौन आया पहन लिबास कुड़े ।

बुल्ल्हा शहु लुक बैठा ओहले, दस्से भेत ना मुक्ख से बोले,
बाबल वर खेड़्यां तों टोले, वर मांहढा महंडे पास कुड़े ।
कौन आया पहन लिबास कुड़े ।

कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

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कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।
छल्ली लाह भड़ोले घत्त कुड़े ।

जे पूनी पूनी कत्तेंगी, तां नंगी मूल ना वत्तेंगी,
सै वर्हआं दे जे कत्तेंगी, तां काग मारेगा झट कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

विच गफ़लत जे तैं दिन जाले, कत्त के कुझ ना ल्यु संभाले.
बाझों गुन शहु आपने नाले, तेरी क्यों कर होसी गत्त कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

मां प्यो तेरे गंढीं पाईआं, अजे ना तैनूं सुरतां आईआं,
दिन थोड़े ते चाय मकाईआं, ना आसें पेके वत्त कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

जे दाज वेहूनी जावेंगी, तां किसे भली ना भावेंगी,
ओथे शहु नूं किवें रीझावेंगी, कुझ लै फ़करां दी मत्त कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

तेरे नाल दियां दाज रंगाए नी, ओहनां सूहे सालू पाए नी,
तूं पैर उलटे क्यों चाए नी, जा ओथे लग्गी तत्त कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

बुल्ल्हा शहु घर आपने आवे, चूड़ा बीड़ा सभ सुहावे,
गुन होसी तां गले लगावे, नहीं रोसें नैणीं रत्त कुड़े ।
कत्त कुड़े ना वत्त कुड़े ।

कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

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नित मत्तीं देंदी मां धिया, क्यों फिरनी एं ऐवें आ धिया,
नी शरम हया ना गवा धिया, तूं कदी तां समझ नदान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

चरख़ा मुफत तेरे हत्थ आया, पल्ल्युं नहींउं खोल्ह गवाइआ,
नहीउं कदर मेहनत दा पाइआ, जद होया कंम आसान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

चरख़ा बण्या ख़ातर तेरी, खेडन दी कर हिरस थुरेड़ी,
होना नहीउं होर वडेरी, मत कर कोई अगिआन कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

चरख़ा तेरा रंग रंगीला, रीस करेंदा सभ कबीला,
चलदे चारे कर लै हीला, हो घर दे विच आवादान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

इस चरख़े दी कीमत भारी, तूं की जाने कदर गवारी,
उच्ची नज़र फिरें हंकारी, विच आपने शान गुमान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

मैं कूकां कर खलियां बाहीं, ना हो ग़ाफ़ल समझ कदाईं,
ऐसा चरख़ा घड़ना नाहीं. फेर किसे तरखान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

इह चरख़ा तूं क्यों गवाया, क्यों तूं खेह दे विच रुलाया,
जद दा हत्थ तेरे विच आया, तूं कदे ना डाहआ आण कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

नित्त मतीं द्यां वलल्ली नूं, इस भोली कमली झल्ली नूं,
जद पवेगा वख़त इकल्ली नूं, तद हाए हाए करसी जान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

मुढों दी तूं रिज़क वेहूणी, गोहड़्युं ना तूं कत्ती पूणी,
हुन क्यों फिरनी एं निंमोझूणी, किस दा करें गुमान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

ना तक्कला रास करावें तूं, ना बायड़ माल्ह पवावें तूं,
क्यों घड़ी मुड़ी चरख़ा चावें तूं, तूं करनी एं आपना ज़्यान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

डिंगा तक्कला रास करा लै, नाल शताबी बायड़ पवा लै,
ज्युं कर वगे तिवें वगा लै, मत कर कोई अगिआन कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

अज्ज घर विच नवीं कपाह कुड़े, तूं झब झब वेलना डाह कुड़े,
रूं वेल पिंजावन जाह कुड़े, मुड़ कल्ल्ह ना तेरा जान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

जद रूं पंजा लिआवेंगी, सईआं विच पूणियां पावेंगी,
मुड़ आप ही पई भावेंगी, विच सारे जग्ग जहान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

तेरे नाल दियां सभ सईआं ने, कत्त पूणियां सभना लईआं ने,
तैनूं बैठी नूं पिछों पईआं ने, क्यों बैठी एं हुन हैरान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

दीवा आपने पास जगावीं, कत्त कत्त सूत भड़ोली पावीं,
अक्खीं विचों रात लंघावीं, औखी करके जान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

राज पेका दिन चार कुड़े, ना खेडो खेड गुज़ार कुड़े,
ना हो वेहली कर कार कुड़े, घर बार ना कर वीरान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

तूं सुत्यां रैन गुज़ार नहीं, मुड़ आउना दूजी वार नहीं,
फिर बहना एस भंडार नहीं, विच इको जेडे हान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

तूं सदा ना पेके रहना एं, ना पास अम्बड़ी दे बहना एं,
भा अंत विछोड़ा सहना एं, वस्स पएंगी सस्स ननान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

कत्त लै नी कुझ कता लै नी, हुन तानी तन्द उना लै नी,
तूं आपना दाज रंगा लै नी, तूं तद होवें परधान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

जद घर बेगाने जावेंगी, मुड़ वत्त ना ओथों आवेंगी,
ओथे जा के पछोतावेंगी, कुझ अगदों कर सम्यान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

अज्ज ऐडा तेरा कंम कुड़े, क्यों होई एं बे-ग़म कुड़े ,
कीकर लैना उस दंम कुड़े, जद घर आए महमान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

जद सभ सईआं टुर जाणगियां, फिर ओथे मूल ना आउणगियां,
आ चरख़े मूल ना डाहुणगियां, तेरा त्रिंञन प्या वीरान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

कर मान ना हुसन जवानी दा, परदेस ना रहन सैलानी दा,
कोई दुनियां झूठी फ़ानी दा, ना रहसी नाम निशान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

इक औखा वेला आवेगा, सभ साक सैन भज्ज जावेगा,
कर मदत पार लंघावेगा, उह बुल्ल्हे दा सुलतान कुड़े ।
कर कत्तन वल्ल ध्यान कुड़े ।

कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल

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तेल तिलां दे लड्डू ने, जलेबी पकड़ मंगाई,
डरदे नट्ठे कन्द शकर तों, मिसरी नाल लड़ाई,
कां लगड़ नूं मारन लग्गे, गोचें दी गल्ल्ह लाल ।
कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल ।

हो फरिआदी लक्खपतियां ने, लून ते दसतक लाई,
गुलगलिआं मनसूबा बद्धा, पापड़ चोट चलाई,
भेडां मार पलंग खपाए, गुरगां बुरा अहवाल ।
कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल ।

गुड़ दे लड्डू गुस्से हो के, पेड़्यां ते फरिआदी,
बरफ़ी नूं कहे दाल चने दी, तूं हैं मेरी बांदी,
चढ़ सहे शीहणियां ते नच्चन लग्गे, वड्डी पई धमाल ।
कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल ।

शकर खंड कहे मिसरी नूं, मेरी वेख सफ़ाई,
चिड़वे चने इह करन लग्गे, बदाने नाल लड़ाई,
चूहआं कन्न बिल्ली दे कुतरे, हो हो के खुशहाल ।
कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल ।

बुल्ल्हा शहु हुन क्या बतावे, जो दिसे सो लड़दा,
लत्त बलत्ती, गुत्त बगुत्ती, कोई नहीं हत्थ फड़दा,
वेखो केही क्यामत आई, आया खर दज्जाल ।
कपूरी रेवड़ी क्यों कर लड़े पतासे नाल ।

कदी मोड़ मुहारां ढोलिआ ।

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कदी मोड़ मुहारां ढोलिआ ।
तेरियां वाटां तों सिर घोलिआ ।

मैं न्हाती धोती रह गई, कोई गंढ सज्जन दिल बह गई,
कोई सुख़न अवल्ला बोलिआ, कदी मोड़ मुहारां ढोलिआ ।

बुल्ल्हा शहु कदी घर आवसी, मेरी बलदी भा बुझावसी,
जीहदे दुक्खां ने मूंह खोल्हआ, कदी मोड़ मुहारां ढोलिआ ।

कदी आपनी आख बुलाओगे

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मैं बेगुन क्या गुन किया है, तन पिया है मन पिया है,
उह पिया सु मोरा जिया है, पिया पिया से रल जाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

मैं फ़ानी आप को दूर करां, तैं बाकी आप हज़ूर करां,
जे अज़हार वांग मनसूर करां, खड़ सूली पकड़ चढ़ाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

मैं जागी सभ सोया है, खुल्ल्ही पलक ते उठ के रोया है,
जुज़ मसती काम ना होया है, कदी मसत अलस्सत बणाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

जदों अनहद बण दो नैन धरे, अग्गे सिर बिन धड़ के लाख पड़े,
उच्छल रंगन दे दरिआ चढ़े, मेरे लहू दी नदी वगाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

किसे आशक ना सुक्ख सोना ए असां रो रो के मुक्ख धोना ए,
इह जादू है कि टूना ए इस रोग दा भोग बणाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

कहो क्या सिर इश्क बिचारेगा, फिर क्या बीसी निरवारेगा,
जथ दार उप्पर सिर वारेगा, तब पिच्छों ढोल वजाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

मैं आपना मन कबाब किया, आंखों का अरक शराब किया,
रग तारां हड्ड कबाब किया, क्यामत क्या नाम बुलाओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

शकरंजी को क्या कीजीएगा, मन भाना सौदा लीजीएगा,
इह दीन दुनी किस दी जीएगा, मुझे आपना दरस बताओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

मैनूं आण नज़ारे ताइआ है, दो नैणां बरखा लाइआ है,
बन रोज़ इनायत आया है, ऐवें आपना आप जिताओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

बुल्ल्हा शहु नूं वेखन जाओगे, इन्हां अक्खियां नूं समझाओगे,
दीदार तदाहीं पाओगे, बण शाह इनायत घर आओगे ।
कदी आपनी आख बुलाओगे ।

कदी आ मिल यार प्यारिआ ।

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कदी आ मिल यार प्यारिआ ।
तेरियां वाटां तों सिर वारिआ ।

चढ़ बागीं कोइल कूकदी,
नित सोज़-इ-अलम दे फूकदी,
मैनूं ततड़ी को शाम विसारिआ ।
कदी आ मिल यार प्यारिआ ।

बुल्ल्हा शहु कदी घर आवसी,
मेरी बलदी भा बुझावसी,
उहदी वाटां तों सिर वारिआ ।

कदी आ मिल यार प्यारिआ ।
तेरियां वाटां तों सिर वारिआ ।

कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

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इश्क लग्गे तां है है कूकें,
तूं की जाने पीड़ पराई नूं ।
कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

जे कोई इश्क वेहाज्या लोड़े,
सिर देवे पहले साईं नूं ।
कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

अमलां वालियां लंघ लंघ गईआं,
साडियां लज्जां माही नूं ।
कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

ग़म दे वहन सितम दियां कांगां,
किसे कयर कप्पर विच पाई नूं ।
कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

मां प्यु छड्ड सईआं मैं भुल्लियां,
बलेहारी राम दुहाई नूं ।
कदी आ मिल बिरहों सताई नूं ।

जो रंग रंगिआ गूढ़ा रंगिआ, मुरशद वाली लाली ओ यार ।

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आहद विचों अहमद होया, विचों मीम निकाली ओ यार ।
दरमुआनी दी धूम मची है, नैणां तों घुंड उठाली ओ यार ।
जो रंग रंगिआ गूढ़ा रंगिआ, मुरशद वाली लाली ओ यार ।

सूराएयासीन मज़मल्ल वाला, बदला गरज संभाली ओ यार ।
ज़ुलफ स्याह दे विच यद बैज़ा, दे चमकार विखाली ओ यार ।
जो रंग रंगिआ गूढ़ा रंगिआ, मुरशद वाली लाली ओ यार ।

मूतू-कबला-अंता-मूतू होया, मोयां नूं मार जवाली ओ यार ।
बुल्ल्हा शौह मेरे घर आया, कर कर नाच वखाली ओ यार ।
जो रंग रंगिआ गूढ़ा रंगिआ, मुरशद वाली लाली ओ यार ।

जिस तन लगिआ इश्क कमाल । नाचे बेसुर ते बेताल ।

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जिस तन लगिआ इश्क कमाल ।
नाचे बेसुर ते बेताल ।

दरदमन्दां नूं कोई ना छेड़े, आपे आपना दुक्ख सहेड़े,
जंमना ज्यूना मूल हुगेड़े, आपना बूझे आप ख़्याल ।
जिस तन लगिआ इश्क कमाल ।

जिस ने वेस इश्क दा कीता, धुर दरबारों फ़तवा लीता,
जदों हज़ूरों प्याला पीता, कुझ्झ ना रेहा जवाब सवाल ।
जिस तन लगिआ इश्क कमाल ।

जिस दे अन्दर वस्या यार, उठ्या यारो यार पुकार,
ना उह चाहे राग ना तार, ऐवें बैठा खेडे हाल ।
जिस तन लगिआ इश्क कमाल ।

बुल्ल्हा शौह नगर सच्च पाइआ, झूठा रौला सभ मुकाइआ,
सच्च्यां कारन सच्च सुणाइआ, पाइआ उस दा पाक जमाल ।
जिस तन लगिआ इश्क कमाल ।

जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

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आपे हैं तूं लहमका लहमी, आपे हैं तूं न्यारा,
गल्लां सुन तेरियां, मेरा अकल गिआ उड्ड सारा,
शरियत तों बेशरियत करके, भली खुभ्भन विच पाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

ज़र्रा इश्क तुसाडा दिसदा, परबत कोलों भारा,
इक घड़ी दे वेखन कारन, चुक्क लिआ जग्ग सारा,
कीती मेहनत मिलदी नाहीं, हुन की करे लुकाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

वा-वेला की करना, जिन्द जु साड़े सु साड़े,
सुक्खां दा इक पूला नाहीं, दुक्खां दे खलवाड़े,
होनी सी जु उस दिन होई, हुन की करीए भाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

सलाह ना मन्नदा वात (ना) पुच्छदा, आख वेखां की करदा,
कल्ल्ह मैं कमली ते (अज्ज) उह कमला, हुन क्यों मैथों डरदा,
उहले बह के रमज़ चलाई, दिल नूं चोट लगाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

सीने बान धन्दाला गल विच, इस हालत विच जालां,
चा चा सिर भोएं ते मारां, रो रो यार संभालां,
अग्गे वी सईआं ने नेहुं लगाइआ, के मैं ही प्रीत लगाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

जग्ग विच रोशन नां तुसाडा, आशक तों क्यों नस्सदे हो,
वस्सो रसो विच बुक्कल दे, आपना भेत ना दसदे हो,
विचोकड़े विचकारों फड़के, मैं कर उलटी लटकाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

अन्दर वालिआ बाहर आवीं, बाहों पकड़ खलोवां,
ज़ाहरा मैथों लुक्कन छिपन, बातन कोले होवां,
ऐसे बातन फटी जुलैखां, मैं बातन बिरलाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

आखणियां सी आख सुणाईआं, मचला सुणदा नाहीं,
हत्थ मरोड़ां फाटां तलियां, रोवां ढाहीं ढाहीं,
लैने थीं मुड़ देना आया, इह तेरी भलिआई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

इक इक लहर अजेही आवे, नहीं दस्सणियां सो दस्सां,
सच्च आखां तां सूली फाहा, झूठ कहां तां वस्सां,
ऐसी नाज़क बात क्यों आखां, कहन्द्यां होवे पराई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

वही वसीला पाकां दा, तुसीं आपे साडे होवो,
जागद्यां संग साडे जागो, सवां तां नाले सौंवो,
जिसने तैं संग प्रीत लगाई, केहड़े सुक्ख सुवाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

ऐसियां लीकां लाईआं मैनूं, होर कई घर गाले,
उपरवारों पावें झाती, वतें फिरे दुआले,
लुक्कन छिपन ते छल जावन, इह तेरी वड्याई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

तेरा मेरा न्याउं नबेड़े, रूमों काज़ी आवे,
खोल्ह किताबां करे तसल्ली, दोहां इक बतावे,
भरम्या काज़ी मेरे उत्ते, मैं काज़ी भरमाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

बुल्ल्हा शौह तूं केहा जेहा हुन, तूं केहा मैं कही,
तैनूं जो मैं ढूंडन लग्गी, मैं भी आप ना रही,
पाइआ ज़ाहर बातन तैनूं, बातन अन्दर रुशनाई ।
जिन्द कुड़िकी दे मूंह आई ।

जिस पिच्छे मसत हो जाता है ।

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जिचर ना इश्क मजाज़ी लागे ।
सूई सीवे ना बिन धागे ।
इश्क मजाज़ी दाता है ।
जिस पिच्छे मसत हो जाता है ।

इश्क जिन्हां दी हड्डीं पैंदा,
सोई निरजीवत मर जांदा,
इश्क पिता ते माता है,
जिस पिच्छे मसत हो जाता है ।

आशक दा तन सुक्कदा जाए,
मैं खड़ी चन्द पिर के साए,
वेख मशूकां खिड़ खिड़ हासे,
इश्क बेताल पढ़ाता है ।

जिस ते इश्क इह आया है,
उह बेबस कर दिखलाइआ है,
नशा रोम रोम में आया है,
इस विच ना रत्ती उहला है,

हर तरफ दसेंदा मौला है,
बुल्ल्हा आशक वी हुन तरदा है,
जिस फिकर पिया दे घर दा है,
रब्ब मिलदा वेख उचरदा है ।

मन अन्दर होया झाता है ।
जिस पिच्छे मसत हो जाता है ।

इस नेहुं दी उलटी चाल

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साबिर ने जद नेहुं लगाइआ, देख पिया ने की दिखलाइआ,
रग रग अन्दर किरम चलाइआ, ज़ोरावर दी गल्ल मुहाल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

ज़करिया ने जद पाइआ कहारा, जिस दम वज्या इश्क नग्गारा,
धरिआ सिर ते तिक्खा आरा, कीता अड्ड जवाल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

जदों यहीए ने पाई झाती, रमज़ इश्क दी लाई काती,
जलवा दित्ता आपना ज़ाती, तन खंजर कीता लाल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

आप इशारा अक्ख दा कीता, तां मधुवा मनसूर ने पीता,
सूली चढ़ के दरशन लीता, होया इश्क कमाल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

सुलेमान नूं इश्क जो आया, मुन्दरा हत्थों चा गवाइआ,
तख़त ना परियां दा फिर आया, भट्ठ झोके प्या बेहाल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

बुल्ल्हे शाह हुन चुप्प चंगेरी, ना कर एथे ऐड दलेरी,
गल्ल ना बणदी तेरी मेरी, छड्ड दे सारे वहम ख़्याल,
इस नेहुं दी उलटी चाल ।

इश्क हकीकी ने मुट्ठी कुड़े, मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

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इश्क हकीकी ने मुट्ठी कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

माप्यां दे घर बाल इञाणी, पीत लगा लुट्टी कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

मनतक मअने कन्नज़ कदूरी, मैं पढ़ पढ़ इलम वगुच्ची कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

नमाज़ रोज़ा ओहनां की करना, जिन्हां प्रेम सुराही लुट्टी कुड़े,
मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

बुल्ल्हा शौह दी मजलस बह के, सभ करनी मेरी छुट्टी कुड़े ,
मैनूं दस्सो पिया दा देस ।

इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

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जां मैं सबक इश्क दा पढ़आ, मसजद कोलों जीउड़ा डरिआ,
डेरे जा ठाकर दे वड़्या, जित्थे वज्जदे नाद हज़ार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

जां मैं रमज़ इश्क दी पाई, मैना तोता मार गवाई,
अन्दर बाहर होई सफ़ाई, जित वल्ल वेखां यारो यार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

हीर रांझे दे हो गए मेले, भुल्ली हीर ढूंडेदी बेले,
रांझा यार बुक्कल विच खेले, मैनूं सुध रही ना सार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

बेद कुरानां पढ़ पढ़ थक्के, सज्जदे करद्यां घस्स गए मत्थे,
ना रब्ब तीरथ ना रब्ब मक्के, जिस पाइआ तिस नूर अनवार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

फूक मुसल्ला भन्न सुट्ट लोटा, ना फड़ तसबी कासा सोटा,
आशक कहन्दे दे दे होका, तरक हलालों खाह मुरदार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

उमर गवाई विच मसीती, अन्दर भरिआ नाल पलीती,
कदे नमाज़ तौहीद ना कीती, हुन की करना एं शोर पुकार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

इश्क भुलाइआ सजदा तेरा, हुन क्यों ऐवें पावें झेड़ा,
बुल्ल्हा हुन्दा चुप्प बथेरा, इश्क करेंदा मारो मार ।
इश्क दी नवीयों नवीं बहार ।

इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने

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दिल दी वेदन कोई ना जाणे, अन्दर देस बगाने,
जिस नूं चाट अमर दी होवे, सोई अमर पछाणे,
एस इश्क दी औखी घाटी, जो चढ़आ सो जाणे ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

आतश इश्क फ़राक तेरे दी, पल विच साड़ विखाईआं,
एस इश्क दे साड़े कोलों, जग विच दिआं दुहाईआं,
जिस तन लग्गे सो तन जाणे, दूजा कोई ना जाणे ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

इश्क कसाई ने जेही कीती, रह गई ख़बर ना काई,
इश्क चवाती लाई छाती, फेर ना झाती पाई,
माप्यां कोलों छुप छुप रोवां, कर कर लक्ख बहाने ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

हिजर तेरे ने झल्ली करके, कमली नाम धराइआ,
सुमुन बुकमुन व उमयुन हो के, आपणा वकत लंघाइआ,
कर हुण नज़र करम दी साईआं, न कर ज़ोर धङाने ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

हस्स बुलावां तेरा जानी, याद करां हर वेले,
पल पल दे विच दर्द जुदाई, तेरा शाम सवेले,
रो रो याद करां दिन रातीं, पिछले वकत वेहाने ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

इश्क तेरा दरकार असां नूं, हर वेले हर हीले,
पाक रसूल मुहंमद साहब, मेरे खास वसीले,
बुल्ल्हे शाह जो मिले प्यारा, लक्ख करां शुकराने ।
इश्क असां नाल केही कीती, लोक मरेंदे तअने ।

इलमों बस्स करीं ओ यार

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इलम ना आवे विच शुमार, इको अलफ़ तेरे दरकार,
जांदी उमर नहीं इतबार, इलमों बस्स करीं ओ यार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ इलम लगावें ढेर, कुरान किताबां चार चुफेर,
गिरदे चानण विच अन्हेर, बाझों राहबर ख़बर ना सार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ शेख मसायख़ होया, भर भर पेट नींदर भर सोया,
जांदी वारी नैण भर रोया, डुब्बा विच उरार ना पार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ शेख मसायम कहावें, उलटे मसले घरों बणावें,
बे-अकलां नूं लुट लुट खावें, उलटे सिद्धे करें करार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ मुल्लां होइ काज़ी, अल्लाह इलमा बाहझों राज़ी,
होए हिरस दिनो दिन ताज़ी, नफ़ा नियत विच गुज़ार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ नफ़ल नमाज़ गुज़ारें, उच्चियां बांगां चांघां मारें,
मंतर ते चढ़ वाअज़ पुकारें, कीता तैनूं हिरस खुआर ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ मसले रोज़ सुणावें, खाणा शक्क सुबहे दा खावें,
दस्सें होर ते होर कमावें, अन्दर खोट बाहर सच्यार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

पढ़ पढ़ इलम नजूम विचारे, गिणदा रासां बुरज सतारे,
पढ़े अज़ीमतां मंतर झाड़े, अब जद गिने तअवीज़ शुमार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

इलमों पए कज़ीए होर, अक्खीं वाले अन्न्हे कोर,
फड़े साध ते छड्डे चोर, दोहीं जहानीं होया खुआर ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

इलमों पए हज़ारां फसते, राही अटक रहे विच रसते,
मारिआ हिजर होए दिल खसते, पिआ विछोड़े दा सिर भार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

इलमों मियां जी कहावें, तम्बा चुक्क चुक्क मंडी जावें,
धेला लै के छुरी चलावें, नाल कसाईआं बहुत प्यार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

बहुता इलम अज़राईल ने पढ़आ, झुग्गा तां ओसे दा सड़्या,
गल विच तौक लाहनत दा पड़्या, आख़िर गया उह बाज़ी हार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

जद मैं सबक इश्क दा पढ़आ, दरिआ वेख वहदत दा वड़्या,
घुंमणा घेरां दे विच अड़्या, शाह इनायत लाइआ पार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

बुल्ल्हा ना राफज़ी ना है सुन्नी, आलम फ़ाज़ल ना आलम जुन्नी,
इको पढ़आ इलम लदुन्नी, वाहद अलफ़ मीम दरकार ।
इलमों बस्स करीं ओ यार ।

इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

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कुन-फअकूनों अग्गे दीआं लगियां,
नेहुं ना लगड़ा चोरी दा,
इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

आप छिड़ जांदा नाल मझ्झीं दे,
सानूं क्यों बेलियों मोड़ीदा,
इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

रांझे जेहा मैनूं होर ना कोई,
मिन्नतां कर कर मोड़ीदा,
इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

मान वालियां दे नैन सलोने,
सूहा दुपट्टा गोरी दा,
इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

अहद अहमद विच फरक ना बुल्लिआ,
इक रत्ती भेत मरोड़ी दा,
इक रांझा मैनूं लोड़ीदा ।

इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए

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फड़ नुक़्ता छोड़ हिसाबां नूं, कर दूर कुफ़र दीआं बाबां नूं,
लाह दोज़ख गोर अज़ाबां नूं, कर साफ दिले दीआं ख़ाबां नूं,
गल्ल एसे घर विच ढुक्कदी ए इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए ।

ऐवें मत्था ज़मीं घसाईदा, लंमा पा महराब दिखाई दा,
पढ़ कलमा लोक हसाई दा, दिल अन्दर समझ ना लिआई दा,
कदी बात सच्ची वी लुक्कदी ए ? इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए ।

कई हाजी बण बण आए जी, गल नीले जामे पाए जी,
हज्ज वेच टके लै खाए जी, भला इह गल्ल कीहनूं भाए जी,
कदी बात सच्ची भी लुक्कदी ए ? इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए ।

इक जंगल बहरीं जांदे नी, इक दाणा रोज़ लै खांदे नी,
बे समझ वजूद थकांदे नी, घर होवणा हो के मांदे नी,
ऐवें चिल्लिआं विच जिन्द मुक्कदी ए इक नुक़्ते विच गल्ल मुक्कदी ए ।

फड़ मुरशद आबद खुदाई हो, विच्च मसती बेपरवाही हो,
बेखाहश बेनवाई हो, विच्च दिल दे खूब सफाई हो,
बुल्ल्हा बात सच्ची कदों रुकदी ए इक नुक्ते विच गल्ल मुक्कदी ए ।

इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।

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इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।
इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।

ऐन ग़ैन दी हिक्का सूरत, इक्क नुक़्ते शोर मचाइआ ए,
इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।

सस्सी दा दिल लुट्टण कारण, होत पुनूं बण आया ए,
इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।

बुल्ल्हा शहु दी ज़ात ना काई, मैं शौह इनायत पाइआ ए,
इक नुक़्ता यार पढ़ाइआ ए ।

इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए ।

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इक अलफ़ों दो तिन्न चार होए, फिर लक्ख करोड़ हज़ार होए,
फिर उथों बाझों शमार होए, इक अलफ़ दा नुक़्ता न्यारा ए,
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए ।

क्यों पढ़ना एं गड्ड किताबां दी, सिर चाना एं पंड अज़ाबां दी,
हुण होइउं शकल जल्लादां दी, अग्गे पैंडा मुशकल भारा ए,
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए ।

बण हाफ़ज हिफ़ज कुरान करें, पढ़ पढ़ के साफ़ ज़बान करें,
फिर न्यामत विच ध्यान करें, मन फिरदा ज्युं हलकारा ए,
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए ।

बुल्ल्हा बी बोहड़ दा बोया ई उह बिरछ वड्डा जा होया ई,
जद बिरछ उह फ़ानी होया ई फिर रह गया बी अकारा ए,
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए ।

हुण मैनूं कौण पछाणे, हुण मैं हो गई नी कुझ होर ।

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हादी मैनूं सबक पढ़ाइआ, ओथे ग़ैर ना आया जाइआ,
मतलक ज़ात जमाल विखाइआ, वहदत पाइआ शोर ।
हुण मैनूं कौण पछाणे, हुण मैं हो गई नी कुझ होर ।

अव्वल हो के लामकानी, ज़ाहर बातन दिसदा जानी,
रिहा ना मेरा नाम निशानी, मिट गया झगड़ा शोर ।
हुण मैनूं कौण पछाणे, हुण मैं हो गई नी कुझ होर ।

प्यारा आप जमाल विखाले, मसत कलन्दर होण मतवाले,
हंसां दे हुण वेख लै चाले, बुल्ल्हा कागां दी हुण गई टोर ।
हुण मैनूं कौण पछाणे, हुण मैं हो गई नी कुझ होर ।

हुण मैं लखिआ सोहणा यार । जिस दे हुसन दा गरम बज़ार

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हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।
जिस दे हुसन दा गरम बज़ार ।

जद अहद इक इकल्ला सी, ना ज़ाहर कोई तजल्ला सी,
ना रब्ब रसूल ना अल्लाह सी, ना जबार ते ना कहार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

बेचून वा बेचगूना सी, बेशबीह बेनमूना सी,
ना कोई रंग ना नमूना सी, हुण गूनां-गुन हज़ार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

प्यारा पहन पोशाकां आया, आदम आपना नाम धराइआ,
अहद ते बण अहमद आया, नबियां दा सरदार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

कुन केहा फाजीकून कहाइआ, बेचूनी से चूनी बणाइआ,
अहद दे विच मीम रलाइआ, तां कीता ऐड पसार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

तजूं मसीत तजूं बुत्तखाना, बरती रहां ना रोज़ा जाणा,
भुल्ल गया वुज़ू नमाज़ दुगाणा, तैं पर जान करां बलिहार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

पीर पैग़म्बर इसदे बरदे, इस मलायक सजदे करदे,
सर कदमां दे उत्ते धरदे, सभ तों वड्डी उह सरकार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

जो कोई उस नूं लखिआ चाहे, बाझ वसीले लखिआ ना जाए,
शाह अनायत भेत बताए, तां खुल्ल्हे सभ इसरार ।
हुण मैं लखिआ सोहणा यार ।

हुण किस थीं आप छुपाईदा

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किते मुल्लां हो बुलेंदे हो, किते सुन्नत फ़रज़ दसेंदे हो,
किते राम दुहाई देंदे हो, किते मत्थे तिलक लगाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

मैं मेरी है कि तेरी है, इह अंत भसम दी ढेरी है,
इह ढेरी पिया ने घेरी है, ढेरी नूं नाच नचाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

किते बेसिर चौड़ां पाओगे, किते जोड़ इनसान हंढाओगे,
किते आदम हवा बण आओगे, कदी मैथों वी भुल्ल जाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

बाहर ज़ाहर डेरा पायो, आपे ढों ढों ढोल बजायो,
जग ते आपना आप जितायो, फिर अबदुल्ल दे घर धाईदा।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

जो भाल तुसाडी करदा है, मोयां तों अग्गे मरदा है,
उह मोयां वी तैथों डरदा है, मत मोयां नूं मार कुहाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

बिन्दराबन में गऊआं चरावे, लंका चढ़ के नाद वजावे,
मक्के दा बण हाजी आवे, वाह वाह रंग वटाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

मनसूर तुसां ते आया ए तुसां सूली पकड़ चढ़ाइआ ए,
मेरा भाई बाबल जाइआ ए दियो खून बहा मेरे भाई दा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

तुसीं सभनीं भेसीं थींदे हो, आपे मद आपे पींदे हो,
मैनूं हर जा तुसीं दसींदे हो, आपे आप को आप चुकाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

हुण पास तुसाडे वस्सांगी, ना बेदिल हो के नस्सांगी,
सभ भेत तुसाडे दस्सांगी, क्यों मैनूं अंग ना लाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

वाह जिस पर करम अवेहा है, तहकीक उह वी तैं जेहा है,
सच्च सही रवायत एहा है, तेरी नज़र मेहर तर जाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

विच भांबड़ बाग़ लवाईदा, जेहड़ा विचों आप वखाईदा,
जां अलफों अहद बणाईदा, तां बातन क्या बतलाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

बेली अल्लाह वाली मालक हो, तुसीं आपे आपने सालक हो,
आपे ख़लकत आप ख़ालक हो, आपे अमर मअरूफ़ कराईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

किधरे चोर हो किधरे काज़ी हो, किते मम्बर ते बह वाअज़ी हो,
किते तेग़ बहादर ग़ाज़ी हो, आपे आपणा कटक चढ़ाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

आपे यूसफ़ कैद करायो, यूनस मच्छली तों निगलायो,
साबर कीड़े घत्त बहायो, फेर उहनां तख़त चढ़ाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

बुल्ल्हा शौह हुण सही सिंञाते हो, हर सूरत नाल पछाते हो,
किते आते हो किते जाते हो, हुण मैथों भुल्ल ना जाईदा ।
हुण किस थीं आप छुपाईदा ।

होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह

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नाम नबी की रतन चढ़ी बून्द पड़ी अल्लाह अल्लाह,
रंग रंगीली ओही खिलावे, जो सिक्खी होवे फनाफी-अल्लाह,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

अलसतों तों बलबिकम प्रीतम बोले, सभ सखियां ने घुंघट खोल्हे,
कालू बला ही यूं कर बोले, लाइलाह इलइला,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

नाहन अकरब की बंसी बजाई, मन अरफ नफसहु की कूक सुणाई,
फसुमावज्जु उल्हा की धूम मचाई, विच दरबार रसूले अल्लाह,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

हाथ जोड़ कर पायों पड़ूंगी, आज़िज़ हो कर बेनती करूंगी,
झगड़ा कर भर झोली लूंगी, नूर मुहंमद सल्लउलाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

फ़ज़करूनी की होरी बनाऊं, फ़ज़करूनी पिया को रिझाऊं,
ऐसो पिया के मैं बल बल जाऊं, कैसा पिया सुबहान अल्लाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

सिबग़तउलाहै की भर पिचकारी, अलाह उस मद्द पी मूंह पर मारी,
नूर नबी दा हक्क से जारी, नूर मुहंमद-सल्ला इल्ला,
बुल्ल्हा शाह दी धूम मची है, लाय-ला-इल इलाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

हिन्दू ना नहीं मुसलमान । बहीए त्रिंजन तज अभिमान

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हिन्दू ना नहीं मुसलमान ।
बहीए त्रिंजन तज अभिमान ।

सुन्नी ना नहीं हम शिया ।
सुल्हा कुल्ल का मारग लिया ।

भुक्खे ना नहीं हम रज्जे ।
नंगे ना नहीं हम कज्जे ।

रोंदे ना नहीं हम हस्सदे ।
उजड़े ना नहीं हम वस्सदे ।

पापी ना सुधरमी ना ।
पाप पुन्न की राह ना जाणा ।

बुल्ल्हा शहु जो हरि चित लागे ।
हिन्दू तुर्क दूजन त्यागे ।

हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा

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गल अलफी सिर-पा-बरहना, भलके रूप वटावेंगा,
इस लालच नफ़सानी कोलों, ओड़क मून मनावेंगा,
घाट ज़िकात मंगणगे प्यादे, कहु की अमल विखावेंगा,
आण बनी सिर पर भारी, अगों की बतलावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

हक्क पराइआ जातो नाहीं, खा कर भार उठावेंगा,
फेर ना आ कर बदला देसें लाखी खेत लुटावेंगा,
दाअ ला के विच जग दे जूए, जित्ते दम हरावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

जैसी करनी वैसी भरनी, प्रेम नगर दा वरतारा ए,
एथे दोज़ख कट्ट तूं दिलबर, अगे खुल्ल्ह बहारा ए,
केसर बीज जो केसर जंमे, लस्हन बीज की खावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

करो कमाई मेरे भाई, इहो वकत कमावण दा,
पौ-सतारां पैंदे ने हुण, दाय ना बाज़ी हारन दा,
उजड़ी खेड छपणगियां नरदां, झाड़ू कान उठावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

खावें मास चबावें बीड़े, अंग पुशाक लगाइआ ई,
टेढी पगड़ी अक्कड़ चलें, जुत्ती पैर अड़ाइआ ई,
पलदा हैं तूं जम दा बकरा, आपना आप कुहावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

पल दा वासा वस्सन एथे, रहन नूं अगे डेरा ए,
लै लै तुहफे घर नूं घल्लीं, इहो वेला तेरा ए,
ओथे हत्थ ना लगदा कुझ वी, एथों ही लै जावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

पढ़ सबक मुहब्बत ओसे दा तूं, बेमूजब क्यों डुबना एं,
पढ़ पढ़ किस्से मगज़ खपावें, क्यों खुभण विच खुभना एं,
हरफ़ इश्क दा इक्को नुक़्ता, काहे को ऊठ लदावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

भुक्ख मरेंदीआं नाम अल्लाह दा, इहो बात चंगेरी ए,
दोवें थोक पत्थर थीं भारे, औखी जेही इह फेरी ए,
आण बणी जद सिर पर भारी, अग्गों की बतलावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

अम्मां बाबा बेटी बेटा, पुच्छ वेखां क्यों रोंदे नी,
रन्नां कंजकां भैणां भाई, वारस आण खलोंदे नी,
इह जो लुट्टदे तूं नहीं लुट्टदा, मर के आप लुटावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

इक इकलिआं जाणा ई तैं, नाल ना कोई जावेगा,
खवेश-कबीला रोंदा पिटदा, राहों ही मुड़ आवेगा,
शहरों बाहर जंगल विच वासे, ओथे डेरा पावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

करां नसीहत वड्डी जे कोई, सुण कर दिल 'ते लावेंगा,
मोए तां रोज़-हशर नूं उट्ठण, आशक ना मर जावेंगा,
जे तूं मरें मरन तों अग्गे, मरने दा मुल्ल पावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

जां राह शर्हा दा पकड़ेंगा, तां ओट मुहंमदी होवेगा,
कहिंदी है पर करदी नाहीं, इहो ख़लकत रोवेंगा,
हुण सुत्त्यां तैनूं कौण जगाए, जागदिआं पछतावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

जे तूं साडे आखे लग्गें, तैनूं तख़त बहावांगे,
जिस नूं सारा आलम ढूंडे, तैनूं आण मिलावांगे,
ज़ुहदी हो के ज़ुहद कमावें, लै पिया गल लावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

ऐवें उमर गवाईआ औगत, अकबत चा रुढ़ाइआ ई,
लालच कर कर दुनियां उत्ते, मुक्ख सफैदी आया ई,
अजे वी सुन जे तायब होवें, तां आशना सदावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

बुल्ल्हा शौह दे चलणा एं तां चल, केहा चिर लाइआ ई,
जिको धक्के की करने, जां वतनों दफ़तर आया ई,
वाचन्दिआं खत अकल गईओ ई रो रो हाल वंजावेंगा,
हिजाब करें दरवेशी कोलों, कद तक हुक्म चलावेंगा ।

हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे

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हुण दिन-चढ़आ कद होवे, मैनूं प्यारा मूंह दिखलावे,
तकले नूं वल पै पै जांदे, कौण लुहार लिआवे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

तक्कल्युं वल कढ्ढ लुहारा, तन्द चलेंदा नाहीं,
घड़ी घड़ी इह झोला खांदा, छल्ली कित बिध लाहवे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

पलीता नहीं जे बीड़ी बन्नहां, बायड़ हत्थ ना आवे,
चमड़्यां नूं चोपड़ नाहीं, माहल पई बतलावे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

त्रिंजन कत्तन सद्दण सईआं, बिरहों ढोल बजावे,
तीली नहीं जो पूणियां वट्टां, वच्छा गोहड़े खावे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

माही छिड़ गया नाल महीं दे, हुण कत्तन किस नूं भावे,
जित्त वल्ल यार उते वल्ल अक्खियां, मेरा दिल बेले वल्ल धावे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

अरज़ एहो मैनूं आण मिले हुण, कौण वसीला जावे,
सै मणां दा कत्त लया बुल्ल्हा, शहु मैनूं गल लावे,
हत्थी ढिलक गई मेरे चरखे दी, हुण मैथों कत्त्या ना जावे ।

नी मैं कमली हां ।

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हाजी लोक मक्के नूं जांदे,
मेरा रांझा माही मक्का,
नी मैं कमली हां ।

मैं ते मंग रांझे दी होईआं,
मेरा बाबल करदा धक्का,
नी मैं कमली हां ।

हाजी लोक मक्के वल्ल जांदे,
मेरे घर विच नौशोह मक्का,
नी मैं कमली हां ।

विचे हाजी विचे गाजी,
विचे चोर उचक्का,
नी मैं कमली हां ।

हाजी लोक मक्के वल्ल जांदे,
असां जाणा तख़त हज़ारे,
नी मैं कमली हां ।

जित वल्ल यार उते वल्ल कअबा,
भावें फोल किताबां चारे,
नी मैं कमली हां ।

मैं कमली हां ।

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हाजी लोक मक्के नूं जांदे,
मेरा रांझा माही मक्का,
नी मैं कमली हां ।

मैं ते मंग रांझे दी होईआं,
मेरा बाबल करदा धक्का,
नी मैं कमली हां ।

हाजी लोक मक्के वल्ल जांदे,
मेरे घर विच नौशोह मक्का,
नी मैं कमली हां ।

विचे हाजी विचे गाजी,
विचे चोर उचक्का,
नी मैं कमली हां ।

हाजी लोक मक्के वल्ल जांदे,
असां जाणा तख़त हज़ारे,
नी मैं कमली हां ।

जित वल्ल यार उते वल्ल कअबा,
भावें फोल किताबां चारे,
नी मैं कमली हां ।

गुर जो चाहे सो करदा ए ।

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मेरे घर विच चोरी होई, सुत्ती रही ना जाग्या कोई,
मैं गुर फड़ सोझी होई, जो माल ग्या सो तरदा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

पहले मख़फी आप खज़ाना सी, ओथे हैरत हैरतख़ाना सी,
फिर वहदत दे विच आना सी, कुल जुज़ दा मुजमल परदा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

कुनफईकून आवाज़ां देंदा, वहदत विचों कसरत लैंदा,
पहन लिबास बन्दा बण बहिंदा, कर बन्दगी मसजद वड़दा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

रोज़ मीसाक अलस्सत सुणावे, कालूबला अज़हद ना चाहवे,
विच कुझ आपना आप छुपावे, उह गिन गिन वसतां धरदा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

गुर अल्लाह आप कहेंदा ए गुर अली नबी हो बहिंदा ए,
घर हर दे दिल विच रहिंदा ए उह खाली भांडे भरदा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

बुल्ल्हा शौह नूं घर विच पाइआ, जिस सांगी सांग बणाइआ,
लोकां कोलों भेत छुपाइआ, उह दरस परम दा पढ़दा ए ।
गुर जो चाहे सो करदा ए ।

मैं मुशताक दीदार दी हां ।

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घुंघट ओहले ना लुक्क सोहणिआँ,
मैं मुशताक दीदार दी हां ।

जानी बाझ दीवानी होई, टोकां करदे लोक सभोई,
जे कर यार करे दिलजोई, मैं तां फरिआद पुकारदी हां ।
मैं मुशताक दीदार दी हां ।

मुफ़त विकांदी जांदी बांदी, मिल माहिया जिन्द ऐंवें जांदी,
इकदम हिजर नहीं मैं सहिंदी, मैं बुलबुल इस गुलज़ार दी हां ।
मैं मुशताक दीदार दी हां ।

घुंघट चुक्क ओ सजणा, हुण शरमां काहनूं रक्खियां वे

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ज़ुल्फ़ कुंडल ने घेरा पाइआ, बिसियर हो के डंग चलाइआ,
वेख असां वल्ल तरस ना आया, कर के खूनी अक्खियां वे ।
घुंघट चुक्क ओ सजणा, हुण शरमां काहनूं रक्खियां वे ।

दो नैणां दा तीर चलाइआ, मैं आज़िज़ दे सीने लाइआ,
घायल कर के मुक्ख छुपाइआ, चोरियां इह किन दस्सियां वे ।
घुंघट चुक्क ओ सजणा, हुण शरमां काहनूं रक्खियां वे ।

ब्रिहों कटारी तूं कस्स के मारी, तद मैं होई बेदिल भारी,
मुड़ ना लई तैं सार हमारी, पतियां तेरियां कच्चियां वे ।
घुंघट चुक्क ओ सजणा, हुण शरमां काहनूं रक्खियां वे ।

नेहुं लगा के मन हर लीता, फेर ना आपणा दरशन दीता,
ज़हर प्याला मैं इह पीता, सां अकलों मैं कच्चियां वे ।
घुंघट चुक्क ओ सजणा, हुण शरमां काहनूं रक्खियां वे ।

घर में गंगा आई संतो,

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घर में गंगा आई संतो, घर में गंगा आई ।
आपे मुरली आप घनईआ, आपे जादूराई ।
आप गोबरिया आप गडरिया, आपे देत दिखाई ।
अनहद दवार का आया गवरिया, कंङण दसत चढ़ाई ।
मूंड मुंडा मोहे परीती कोरेन कन्नां मैं पाई ।
अम्मृत फल खा ल्यो रे गुसाईं, थोड़ी करो बफाई ।
घर में गंगा आई संतो, घर में गंगा आई ।

घड़िआली दियो निकाल नी

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घड़िआली दियो निकाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

घड़ी घड़ी घड़िआल बजावे, रैण वसल दी पिआ घटावे,
मेरे मन दी बात जो पावे, हत्थों चा सुट्टो घड़िआल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

अनहद वाजा वज्जे सुहाणा, मुतरिब सुघड़ा तान तराना,
निमाज़ रोज़ा भुल्ल ग्या दुगाणा, मध प्याला देण कलाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

मुख वेखण दा अजब नज़ारा, दुक्ख दिले दा उट्ठ ग्या सारा,
रैण वड्डी क्या करे पसारा, दिल अग्गे पारो दीवाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

मैनूं आपनी ख़बर ना काई, क्या जाणां मैं कित व्याही,
इह गल्ल क्यों कर छुपे छपाई, हुण होया फ़ज़ल कमाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

टूणे टामण करे बथेरे, मिहरे आए वड्डे वडेरे,
हुण घर आया जानी मेरे, रहां लक्ख वर्हे इहदे नाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

बुल्हा शहु दी सेज़ प्यारी, नी मैं तारनहारे तारी,
किवें किवें हुण आई वारी, हुण विछड़न होया मुहाल नी ।
अज्ज पी घर आया लाल नी ।

गल्ल रौले लोकां पाई ए । गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

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गल्ल रौले लोकां पाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

सच्च आख मना क्यों डरना एं, इस सच्च पिच्छे तूं तुरना एं,
सच्च सदा आबादी करना एं, सच्च वसत अचंभा आई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

बाहमण आण जजमान डराए, पित्तर पीड़ दस्स भरम दुड़ाए,
आपे दस्स के जतन कराए, पूजा शुरू कराई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

पुत्तर तुसां दे उपर पीड़ा, गुड़ चावल मनायो लीड़ा,
जंजू पायो लाहो बीड़ा, चुल्ली तुरत पवाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

पीड़ नहीं ऐवें निकलण लग्गी, रोक रुपईआ भांडे ढग्गी,
होवे लाखी दुरस्सत ना बग्गी, बुल्ल्हा इह बात बणाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

पिरथम चंडी मात बणाई, जिस नूं पूजे सरब लोकाई,
पाछी वढ्ढ के जंज चढ़ाई, डोली ठुम ठुम आई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

भुल्ल ख़ुदा नूं जाण ख़ुदाई, बुत्तां अग्गे सीस निवाई,
जिहड़े घड़ के आप बणाई, शरम रता ना आई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

वेखो तुलसी मात बणाई, सालगरामी संग परनाई,
हस्स हस्स डोली चा चढ़ाई, साला सहुरा बणे जवाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

धीआं भैणां सभ व्याहवण, परदे आपने आप कजावण,
बुल्ल्हा शाह की आखण आवण, ना मात किसे व्याही ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

शाह रग थीं रब्ब दिसदा नेड़े, लोकां पाए लंमे झेड़े,
वां के झगड़े कौण नबेड़े, भज्ज भज्ज उमर गवाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

बिरछ बाग़ विच नहीं जुदाई, बन्दा रब्ब तीवीं बण आई,
पिछले सोते ते खिड़ आई, दुबिधा आण मिटाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

बुल्ल्हा आपे भुल्ल भुलाइआ ए आपे चिल्लिआं विच दबाइआ ए,
आपे होका दे सुणाइआ ए मुझ में भेत ना काई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

गरम सरद हो जिस नूं पाला, हरकत कीता चेहरा काला,
तिस नूं आखण जी सुखाला, इस दी करो दवाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

अक्खियां पक्कियां आखण आईआं, अलसी समझ के आउनी माईआ,
आपे भुल्ल गईआं हुण साईआं, हुण तीरथ पास सुधाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

पोसत आखे मिले अफीम, बन्दा भाले कादर करीम,
ना कोई दिस्से ज्ञान हकीम, अकल तुसाडी जाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

जो कोई दिसदा एहो प्यारा, बुल्ल्हा आपे वेखणहारा,
आपे बेद कुरान पुकारा, जो सुफने वसत भुलाई ए ।
गल्ल रौले लोकां पाई ए ।

फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

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घुंघट खोल्ह मुक्ख वेख ना मेरा,
ऐब निमाणी दे कज्ज ओ यार ।
फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

मैं अणजाणी तेरा नेहुं की जाणां,
लावण दा नहीं चज्ज ओ यार ।
फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

हाजी लोक मक्के नूं जांदे,
साडा हैं तूं हज्ज ओ यार ।
फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

डूंघी नदी ते तुलाह पुराणा,
मिलसां किहड़े पज्ज ओ यार ।
फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

बुल्ल्हा शौह मैं ज़ाहर डिट्ठा,
लाह मूंह तों लज्ज ओ यार ।
फ़सुमा वजउल-अल्लाह दस्सना एं अज्ज ओ यार ।

इह दुख जा कहूं किस आगे, रोम रोम घा प्रेम के लागे ।

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इह दुख जा कहूं किस आगे,
रोम रोम घा प्रेम के लागे ।

इक मरना दूजा जग्ग दी हासी ।
करत फिरत नित्त मोही रे मोही ।

कौण करे मोहे से दिलजोई ।
शाम पिया मैं देती हूं धरोई ।

दुक्ख जग्ग के मोहे पूछन आए ।
जिन को पिया परदेस सिधाए ।

ना पिया जाए ना पिया आए ।
इह दुक्ख जा कहूं किस जाए ।

बुल्ल्हा शाह घर आ प्यारिआ ।
इक घड़ी को करन गुज़ारिआ ।
तन मन धन जिया तैं पर वारिआ ।

इह दुख जा कहूं किस आगे,
रोम रोम घा प्रेम के लागे ।

इह अचरज साधो कौण कहावे । छिन छिन रूप कितों बण आवे

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इह अचरज साधो कौण कहावे ।
छिन छिन रूप कितों बण आवे ।

मक्का लंका सहदेव के भेत, दोऊ को एक बतावे ।
जब जोगी तुम वसल करोगे, बांग कहै भावें नाद वजावे ।
भगती भगत नतारो नाहीं, भगत सोई जेहड़ा मन भावे ।
हर परगट परगट ही देखो, क्या पंडत फिर बेद सुनावे ।
ध्यान धरो इह काफ़र नाहीं, क्या हिन्दू क्या तुर्क कहावे ।
जब देखूं तब ओही ओही, बुल्ल्हा शौह हर रंग समावे ।

इह अचरज साधो कौण कहावे ।
छिन छिन रूप कितों बण आवे ।

इक हस्स हस्स गल्ल करदीआं, इक रोंदीआं धोंदीआं मरदीआं,

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इक हस्स हस्स गल्ल करदीआं, इक रोंदीआं धोंदीआं मरदीआं,
कहो फुल्ली बसंत बहार नूं, दिल लोचे माही यार नूं ।

मैं न्हाती धोती रह गई, इक गंढ माही दिल बह गई,
भाह लाईए हार शिंगार नूं, दिल लोचे माही यार नूं ।

मैं कमली कीती दूतियां, दुक्ख घेर चुफेरों लीतियां,
घर आ माही दीदार नूं, दिल लोचे माही यार नूं ।

बुल्ल्हा शौह मेरे घर आया, मैं घुट्ट रांझण गल लाइआ,
दुक्ख गए समुन्दर पार नूं, दिल लोचे माही यार नूं ।

ढोला आदमी बण आया ।

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आपे आहू आपे चीता, आपे मारन धाइआ,
आपे साहब आपे बरदा, आपे मुल्ल विकाइआ,
ढोला आदमी बण आया ।

कदी हाथी ते असवार होया, कदी ठूठा डांग भुवाइआ,
कदी रावल जोगी भोगी हो के, सांगी सांग बणाइआ,
ढोला आदमी बण आया ।

बाज़ीगर क्या बाज़ी खेली, मैनूं पुतली वांग नचाइआ,
मैं उस पड़ताली नचना हां, जिस गत मित यार लखाइआ,
ढोला आदमी बण आया ।

हाबील काबील आदम दे जाए, आदम किस दा जाइआ,
बुल्ल्हा उन्हां तों भी अग्गे आहा, दादा गोद खिडाइआ,
ढोला आदमी बण आया ।

पाठ-भेद

मौला आदमी बण आया
माटी विचों हीरा लद्धा,
गोबर महं दुद्ध पाइआ ।रहाउ।

सभो ऊठ कतारीं बद्धे
धन्ने दा वग्ग चराइआ ।
साडी भाजी लेवे नाहीं
बिदर दे साग अघाइआ ।

कहूं हाथी असवार होया,
कहूं ठूठा भांग भुवाइआ ।
कहूं रावल जोगी भोगी
कहूं सवांगी सवांग रचाइआ ।

आपे आहू आपे चीता
आपे मारन धाइआ ।
आपे साहब आपे बरदा
आपे मुल्ल विकाइआ ।

बाज़ीगर क्या बाज़ी खेली
पुतली वांग नचाया ।
मैं उस पड़ताली नच्चना हां
जिस गत मत यार लखाया ।

हाबील काबील आदम दे जाए
ते आदम कैं दा जाइआ ?
बुल्ल्हा सभना थीं अगै आहा
जिन दादा गोदि दिखाइआ ।

चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

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सच्च सुणदे लोक ना सहिंदे नी, सच्च आखिए तां गल पैंदे नी,
फिर सच्चे पास ना बहिंदे नी, सच्च मिट्ठा आशक प्यारे नूं ।
चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

सच्च शर्हा करे बरबादी ए सच्च आशक दे घर शादी ए,
सच्च करदा नवीं आबादी ए जेही शर्हा तरीकत हारे नूं ।
चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

चुप्प आशक तों ना हुन्दी ए, जिस आई सच्च सुगंधी ए,
जिस माला सुहाग दी गुन्दी ए छड्ड दुनियां कूड़ पसारे नूं ।
चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

बुल्ल्हा शौह सच्च हुण बोले हैं, सच्च शर्हा तरीकत फोले हैं,
गल्ल चौथे पद दी खोल्हे हैं, जेही शर्हा तरीकत हारे नूं ।
चुप्प करके करीं गुज़ारे नूं ।

चलो देखिए उस मसतानड़े नूं

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चलो देखिए उस मसतानड़े नूं,
जिद्ही त्रिंञणां दे विच पई ए धुंम ।
उह ते मैं वहदत विच रंगदा ए,
नहीं पुच्छदा जात दे की हो तुम ।

जीद्हा शोर चुफेरे पैंदा ए,
उह कोल तेरे नित्त रहन्दा ए,
नाले 'नाहन अकरब' कहन्दा ए,
नाले आखे 'वफ़ी-अनफ़स-कुम' ।

छड्ड झूठ भरम दी बसती नूं,
कर इश्क दी कायम मसती नूं,
गए पहुंच सजन दी हसती नूं,
जिहड़े हो गए 'सुम-बुकम-उम' ।

ना तेरा ए ना मेरा ए,
जग्ग फ़ानी झगड़ा झेड़ा ए,
बिनां मुरशद रहबर किहड़ा ए,
पढ़-'फाज़-रूनी-अज़-कुर-कुम' ।

बुल्ल्हे शाह इह बात इशारे दी,
जिन्हा लग्ग गई तांघ नज़ारे दी,
दस्स पैंदी घर वणजारे दी,
है 'यदउल्ल्हा-फ़ौका अयदीकुम' ।

चलो देखिए उस मसतानड़े नूं,
जिद्ही त्रिंञणां दे विच पई ए धुंम ।

बुल्ल्हे नूं समझावण आईआं, भैणां ते भरजाईआं ।

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बुल्ल्हे नूं समझावण आईआं, भैणां ते भरजाईआं ।
मन्न लै बुल्लिआ साडा कहणा, छड्ड दे पल्ला राईआं ।
आल नबी औलाद नबी नूं, तूं की लीकां लाईआं ।
जेहड़ा सानूं सईअद सद्दे, दोज़ख मिलण सजाईआं ।
जो कोई सानूं राईं आखे, बहशतीं पींघां पाईआं ।
राईं साईं सभनी थाईं, रब्ब दीआं बेपरवाहियां ।
सोहणीयां परे हटाईआं ने ते, कोझीयां लै गल लाईआं ।
जे तूं लोड़ें बाग़ बहारां, चाकर हो जा राईआं ।
बुल्ल्हा शौह दी ज़ात की पुच्छना एं, शक्कर हो रजाईआं ।

बुल्ल्हा की जाने ज़ात इश्क दी कौण । ना सूहां ना कंम बखेड़े वंञे जागन सौण

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बुल्ल्हा की जाने ज़ात इश्क दी कौण ।
ना सूहां ना कंम बखेड़े वंञे जागन सौण ।

रांझे नूं मैं गालियां देवां, मन विच करां दुआईं ।
मैं ते रांझा इको कोई, लोकां नूं अज़माईं ।
जिस बेले विच बेली दिस्से, उस दीआं लवां बलाईं ।
बुल्ल्हा शौह नूं पासे छड्ड के, जंगल वल्ल ना जाईं ।

बुल्ल्हा की जाणा ज़ात इश्क दी कौण ।
ना सूहां ना कंम बखेड़े वंञे जागन सौण ।

बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

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ना मैं मोमन विच मसीतां, ना मैं विच कुफ़र दीआं रीतां,
ना मैं पाकां विच पलीतां, ना मैं मूसा ना फरऔन ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

ना मैं अन्दर बेद किताबां, ना विच भंगां ना शराबां,
ना विच रिन्दां मसत खराबां, ना विच जागन ना विच सौण ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

ना विच शादी ना ग़मनाकी, ना मैं विच पलीती पाकी,
ना मैं आबी ना मैं ख़ाकी, ना मैं आतिश ना मैं पौण ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

ना मैं अरबी ना लाहौरी, ना मैं हिन्दी शहर नगौरी,
ना हिन्दू ना तुर्क पशौरी, ना मैं रहन्दा विच नदौण ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

ना मैं भेत मज़हब दा पाइआ, ना मैं आदम हवा जाइआ,
ना मैं आपना नाम धराइआ, ना विच बैठण ना विच भौण ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

अव्वल आखर आप नूं जाणां, ना कोई दूजा होर पछाणां,
मैथों होर ना कोई स्याणा, बुल्हा शाह खढ़ा है कौण ।
बुल्ल्हा की जाणा मैं कौण ।

भरवासा की आशनाई दा । डर लगदा बे-परवाही दा ।

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भरवासा की आशनाई दा ।
डर लगदा बे-परवाही दा ।

इबराहीम चिखा विच पायो, सुलेमान नूं भट्ठ झुकायो,
यूनस मच्छी तों निगलायो, फड़ यूसफ मिसर विकाईदा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

ज़िकरिया सिर कलवत्तर चलायो, साबर दे तन कीड़े पायो,
सुन्नआं गल ज़न्नार पवायो,किते उलटा पोश लुहाई दा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

पैग़म्बर ते नूर उपायो, नाम इमाम हुसैन धरायो,
झुला जिबराईल झुलायो, फिर प्यासा गला कटाईदा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

जा ज़करिया रुक्ख छुपाइआ, छपणां उस दा बुरा मनाइआ,
आरा सिर ते चा वगाइआ, सणे रुक्ख चराईदा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

यहीहा उस दा यार कहाइआ, नाल ओसे दे नेहुं लगाइआ,
राह शर्हा दा उन्न बतलाइआ, सिर उस दा थाल कटाईदा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

बुल्ल्हा शौह हुण असीं संञाते हैं, हर सूरत नाल पछाते हैं,
किते आते हैं किते जाते हैं,हुण मैथों भुल्ल ना जाई दा ।
भरवासा की आशनाई दा ।

भावें जाण ना जाण वे वेहड़े आ वड़ मेरे

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भावें जाण ना जाण वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।
मैं तेरे कुरबान वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।

तेरे जेहा मैनूं होर ना कोई ढूंडां जंगल बेला रोही,
ढूंडां तां सारा जहान वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।

लोकां दे भाणे चाक महीं दा रांझा तां लोकां विच कहींदा,
साडा तां दीन ईमान वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।

मापे छोड़ लग्गी लड़ तेरे शाह इनायत साईं मेरे,
लाईआं दी लज्ज पाल वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।
मैं तेरे कुरबान वे वेहड़े आ वड़ मेरे ।

भैणां मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी ।

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पिड़ी पिछे पछवाड़े रह गई, हत्थ विच रह गई जुट्टी,
अग्गे चरखा पिच्छे पीहड़ा, मेरे हत्थों तन्द तरुट्टी,
भैणां मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी ।

दाज जवाहर असां की करना, जिस प्रेम कटवाई मुट्ठी,
ओहो चोर मेरा पकड़ मंगायो, जिस मेरी जिन्द कुट्ठी,
भैणां मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी ।

भला होया मेरा चरखा टुट्टा, मेरी जिन्द अज़ाबों छुट्टी,
बुल्ल्हा शौह ने नाच नचाए, ओथे धुंम पई कड़-कुट्टी,
भैणां मैं कत्तदी कत्तदी हुट्टी ।

बेहद्द रमज़ां दसदा नीं, ढोलण माही

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बेहद्द रमज़ां दसदा नीं, ढोलण माही ।
मीम दे उहले वस्सदा नीं, ढोलण माही ।

औलियां मनसूर कहावे, रमज़ अनलहक्क आप बतावे,
आपे आप नूं सूली चढ़ावे,ते कोल खलोके हस्सदा नीं, ढोलण माही ।

बेहद्द रमज़ां दसदा नीं, ढोलण माही ।
मीम दे उहले वस्सदा नीं, ढोलण माही ।

बस्स कर जी हुण बस्स कर जी, इक बात असां नाल हस्स कर जी

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बस्स कर जी हुण बस्स कर जी,
इक बात असां नाल हस्स कर जी ।

तुसीं दिल मेरे विच वस्सदे हो, ऐवें साथों दूर क्यों नस्सदे हो,
नाले घत्त जादू दिल खस्सदे हो, हुण कित वल्ल जासो नस्स कर जी ।
बस्स कर जी हुण बस्स कर जी ।

तुसीं मोयां नूं मार ना मुक्कदे सी, खिद्दो वांङ खूंडी नित्त कुट्टदे सी,
गल्ल करदियां दा गल घुट्टदे सी, हुण तीर लगायो कस्स कर जी ।
बस्स कर जी हुण बस्स कर जी ।

तुसीं छपदे हो असां पकड़े हो, असां नाल ज़ुल्फ़ दे जकड़े हो,
तुसीं अजे छपन नूं तकड़े हो, हुण जाण ना मिलदा नस्स कर जी ।
बस्स कर जी हुण बस्स कर जी ।

बुल्ल्हा शौह मैं तेरी बरदी हां, तेरा मुक्ख वेखण नूं मरदी हां,
नित्त सौ सौ मिन्नतां करदी हां, हुण बैठ पिंजर विच धस्स कर जी ।
बस्स कर जी हुण बस्स कर जी ।

बंसी वालिआ चाका रांझा, तेरा सुर है सभ नाल सांझा

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बंसी वालिआ चाका रांझा, तेरा सुर है सभ नाल सांझा,
तेरियां मौजां साडा मांझा, साडी सुर तैं आप मिलाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

बंसी वालिआ काहन कहावें, सब दा नेक अनूप मनावें,
अक्खियां दे विच नज़र ना आवें, कैसी बिखड़ी खेल रचाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

बंसी सभ कोई सुने सुणावे, अरथ इस दा कोई विरला पावे,
जो कोई अनहद की सुर पावे, सो इस बंसी का शौदाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

सुणीआं बंसी दियां घंगोरां, कूकां तन मन वांङू मोरां,
डिठियां इस दियां तोड़ां जोड़ां, इक सुर दी सभ कला उठाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

इस बंसी दा लंमा लेखा, जिस ने ढूंडा तिस ने देखा,
शादी इस बंसी दी रेखा, एस वजूदों सिफत उठाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

इस बंसी दे पंज सत तारे, आप आपनी सुर भरदे सारे,
इक सुर सभ दे विच दम मारे, साडी इस ने होश भुलाई ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

बुल्ल्हा पुज्ज पए तकरार, बूहे आण खलोते यार,
रक्खीं कलमे नाल ब्योपार, तेरी हज़रत भरे गवाही ।
बंसी काहन अचरज बजाई ।

बहुड़ीं वे तबीबा मैंडी जिन्द गईआ

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बहुड़ीं वे तबीबा मैंडी जिन्द गईआ ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

इश्क डेरा मेरे अन्दर कीता,
भर के ज़हर प्याला मैं पीता,
झबदे आवीं वे तबीबा नहीं ते मैं मर गईआं ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

छुप्प ग्या सूरज बाहर रह गई आ लाली,
होवां मैं सदके मुड़ जे दें विखाली ,
मैं भुल्ल गईआं तेरे नाल ना गईआं ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

तेरे इश्क दी सार वे मैं ना जाणां,
इह सिर आया ए मेरा हेठ वदाणां,
सट्ट पई इश्के दी तां कूकां दईआं ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

एस इश्क दे कोलों सानूं हटक ना माए,
लाहू (लाहौर) जांदड़े बेड़े मोड़ कौन हटाए,
मेरी अकल भुल्ली नाल मुहाणिआँ दे गईआं ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

एस इश्क दी झंगी विच मोर बुलेंदा,
सानूं काबा ते किबला प्यारा यार दसेंदा,
सानूं घायल करके फिर ख़बर ना लईआ ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

बुल्ल्हा शाह इनायत दे बह बूहे,
जिस पहनाए सानूं सावे सूहे,
जां मैं मारी उडारी मिल पिआ वहीआ ।
तेरे इश्क नचाइआ कर थईआ थईआ ।

अपने संग रलाईं प्यारे, अपने संग रलाईं

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अपने संग रलाईं प्यारे, अपने संग रलाईं ।
पहलों नेहुं लगाइआ सी तैं आपे चाईं चाईं ।
मैं लाइआ ए कि तुद्ध लाइआ ए आपनी ओड़ निभाईं ।
राह पवां तां धाड़े बेले, जंगल लक्ख बलाईं ।
भौकन चीते ते चितमुचित्ते भौकन करन अदाईं ।
पार तेरे जगत तर चढ़आ कंढे लक्ख बलाईं ।
हौल दिले दा थर थर कम्बदा बेड़ा पार लंघाईं ।
कर लई बन्दगी रब्ब सच्चे दी पवन कबूल दुआईं ।
बुल्ल्हे शाह ते शाहां दा मुक्खड़ा घुंघट खोल्ह विखाईं ।
अपने संग रलाईं प्यारे, अपने संग रलाईं ।

अम्मां बाबे दी भलिआई, उह हुन कंम असाडे आई ।

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अम्मां बाबे दी भलिआई, उह हुन कंम असाडे आई ।
अम्मां बाबा होर दो राहां दे, पुत्तर दी वड्याई ।
दाणे उत्तों गुत्त बिगुत्ती, घर घर पई लड़ाई ।
असां कज़ीए तदाहीं जाले, जदां कणक उन्हां टरघाई ।
खाए खैरातें फाटीए जुंमा, उल्टी दसतक लाई ।
बुल्ल्हा तोते मार बागां थीं कढ्ढे, उल्लू रहन उस जाई ।
अम्मां बाबे दी भलिआई, उह हुन कंम असाडे आई ।

अब क्यों साजन चिर लायो रे

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अब क्यों साजन चिर लायो रे ?

ऐसी आई मन में काई,
दुख सुख सभ वंजाययो रे,
हार शिंगार को आग लगाउं,
घट उप्पर ढांड मचाययो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

सुन के ज्ञान की ऐसी बातां,
नाम निशान सभी अणघातां,
कोइल वांगूं कूकां रातां,
तैं अजे वी तरस ना आइयो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

गल मिरगानी सीस खपरिया,
भीख मंगन नूं रो रो फिरिआ,
जोगन नाम भ्या लिट धरिआ,
अंग बिभूत रमाययो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

इश्क मुल्लां ने बांग दिवाई,
उट्ठ बहुड़न गल्ल वाजब आई,
कर कर सिजदे घर वल धाई,
मत्थे महराब टिकाययो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

प्रेम नगर दे उलटे चाले,
ख़ूनी नैन होए खुशहाले,
आपे आप फसे विच जाले,
फस फस आप कुहाययो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

दुक्ख बिरहों ना होन पुराणे,
जिस तन पीड़ां सो तन जाणे,
अन्दर झिड़कां बाहर ताअने,
नेहुं लग्यां दुक्ख पाययो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

मैना मालन रोंदी पकड़ी,
बिरहों पकड़ी करके तकड़ी,
इक मरना दूजी जग्ग दी फक्कड़ी,
हुन कौन बन्ना बण आइयो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

बुल्ल्हा शौह संग प्रीत लगाई,
सोहनी बण तण सभ कोई आई,
वेख के शाह इनायत साईं,
जिय मेरा भर आइयो रे ;
अब क्यों साजन चिर लाययो रे ?

Thursday 29 November 2018

अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते

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अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुँचते जा लब-ए-साक़ी कूँ पैमाने हुए होते

अबस इन शहरियों में वक्‍त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते

न रखता मैं यहाँ गर उल्फ़त-ए-लैला निगाहों कूँ
तो मजनूँ की तरह आलम में अफ़साने हुए होते

अगर हम आशना होते तिरी बेगाना-ख़ौफ़ी सीं
बरा-ए-मसलिहत ज़ाहिर में बेगाना हुए होते

ज़ि-बस काफ़िर अदा यूँ चलाए संग बे-रहमी
अगर सब जमा करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते

न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूँ
गुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते

नज़र चश्‍म-ए-ख़रीदारी सीं करता दिल-बर नादाँ
अगर क़तरे मिरे आँसू के दुर दाने हुए होते

मोहब्बत के नशे हैं ख़ास इंसाँ वास्ते वर्ना
फ़रिश्‍ते ये शराबें पी के मस्ताने हुए होते

एवज़ अपने गरेबाँ के किसी की ज़ुल्फ हात आती
हमारे हात के पंजे मगर शाने हुए होते

तिरी शमशीर-ए-अब्र सीं हुए सन्मुख व इल्ला न
अजल की तेग़ सीं ज्यूँ आरा दंदाने हुए होते

मज़ा जो आशिक़ी में है सो माशूक़ी में हरगिज़ नहीं
‘सिराज’ अब हो चुके अफ़सोस परवाने हुए होते

आईना-रू के शौक़ में हैराँ हुआ हूँ मैं ज

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आईना-रू के शौक़ में हैराँ हुआ हूँ मैं
ज़ुल्फ़ों को उस की देख परेशां हुआ हूँ मैं

है ख़ून-ए-दिल शराब मुझे और गज़क जिगर
जब सूँ परत की बज़्म में मेहमाँ हुआ हूँ मैं

आब-ए-हयात-ए-वस्ल सीं दे उम्र-ए-जाविदाँ
ख़ंजर सूँ तुझ फ़िराक़ के बे-जाँ हुआ हूँ मैं

सीने के दाग़ किस कूँ दिखाऊँ मैं खोल कर
दिल के लहू में डूब के ग़लताँ हुआ हूँ मैं

मुद्दत सूँ था ज़ियारत-ए-काबा का मुझ कूँ ज़ौक़
तेरी भवाँ कूँ देख के क़ुर्बां हुआ हूँ मैं

उस मस्त-ए-नीम-ख़्वाब की आँखों कूँ देख कर
मजलिस में ग़म की शौक़ सीं गरदाँ हुआ हूँ मैं

उस माह-रू कूँ देख के ज्यूँ शम्अ ऐ ‘सिराज’
अपने अरक़ के शर्म सीं पिन्हाँ हुआ हूँ मैं