Friday 31 January 2020

धन बल विद्या

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धन बल विद्या पाय कर नहिं करियो अभिमान।
नाश करैं करतार मद मेंट देंय अरमान।।
मेंट देंय अरमान मान मद नरक पठावै।
बिन दान जप योग तप कोई नहिं स्‍वर्ग बनावै।।
कहैं रहमान सीख यह नीकी बुधजन कहीं सद्ग्रंथन।
मान बिनाशै लोक दोऊ काम न आवै बल धन।।


दीन दुखियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना

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ईश जीव में भेद यह जिव माया लपटान।
माया ईश न मोहई मायापति भगवान।। 1

ईश जीव से है बड़ा कर उसको परनाम।
हाथ जोरि विनती करहुँ छोड़ मोह मद काम।। 2

सुख दुख दोनहुँ बंधु हैं हैं ईश्‍वर अधीन।
देवहिं ईश्‍वर कर्म फल जो जस करनी कीन।। 3

हे जग करता सब दुख हरता तुम जग पालनहार।
किसी को अति सुख दीन्‍ह तुम किसी को दुख अपार।। 4

सुखियन को दुख में करत दुखियन को सुख देहु।
यह सब प्रभुता आप में तौ हमारि सुनि लेहु।। 5

है दीनन की विनय यह सुनिए दीनदयाल।
काटहु दुख जग दुखिन का जिन कृपाण कराल।। 6

है अपराधी तोर सब भूल कीन्‍ह तन पाय।
क्षमहु नाथ अपराध सब तुम बिनु कौन सहाय।। 7

तोर दीन्‍ह दुख तुम हरहु दुख नाशक तुव नाम।
लाख राज निज नाम की यही विनय वसु याम।। 8

सुखियन को यह उचित है लख दुखियन कर हाल।।
बनें सहायक दुखिन कर देकर धन तत्‍काल।। 9

है दुख सागर अगम यह तुम केवट बलवान।
पार करहुँ प्रभु दुखिन को तुव आशा रहमान।। 10


द्यूत या जुआ

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द्यूत पाप का बाप है माता लालच जान।
बंश दंभ छल तस्‍करी झूठ कपट अभिमान।।
झूठ कपट अभिमान क्रोध मद घात लगाए।
राजा नल अरु धर्मराज अस पल महं रंक बनाए।।
कहैं रहमान सदा तुम बचियो द्यूत पुराना भूत।
भूत लगै ओझा हरै नाश करै तुम्‍हें द्यूत।।


तीर्थ

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हरिद्वार काशी गया बद्रीनाथ केदार।
कैलाश अवध अरु द्वारका प्रयागराज सरदार।।
प्रयागराज सरदार श्रेष्‍ठ अति सुरसरि धारा।
सब करैं अघ नाश यही ग्रंथन उच्चारा।।
कहैं रहमान धर्म बिनु पाले नहिं रीझैं करतार।
बिनु रीझे करतार के नहीं मिले हरिद्वार।।


तलाक

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सुजान न लेवहिं नाम यह तलाक न उमदह नाम।
घ्रणित काम यह अति बुरा नहिं असलौं का काम।
नहिं असलौं का काम नारि जो अपनी छोड़ै।
करैं श्‍वान का काम हाथ दुसरी से जोडै़।।
कहैं रहमान बसें खग मिलकर जो मूर्ख अज्ञान।
कहु लज्‍जा है की न‍हीं दंपति लडै़ सुजान।।


तत्व

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पाँच तत्व जल थल पवन पावक और आकाश।
इन्‍हीं पाँच से पिंड तन मिलकर करै प्रकाश।।
मिल कर करै प्रकाश ईश ने साँठ लगाई।
करै प्रेम जो साँठ से गाँठहिं गाँठ मिठाई।।
कहैं रहमान साँठ रस पैहौ करिहौ करतब साँच।
काल आय लै जाय जिव काम न आवै पाँच।।


ज्ञान प्रकाश अर्थात शिक्षाप्रद दोहे कुंडलियाँ

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सुंदर शिक्षा ज्ञानहित रच्‍यो ज्ञान प्रकाश।
पढ़ि है बालक युवक वृद्ध होय तिमिर का नाश।। 1

तिमिन नाश भए ज्ञान हो ज्ञान से धर्महिं प्रीति।
धर्म प्रीति में ईश है यह सद्ग्रंथन नीति।। 2


निवेदन

लिखत में सब से होत है, भूल ग्रंथ के माहिं।
सज्‍जन पढ़त सुधार तेहि दोष न देवहिं ताहिं।। 3

यासे मैं बिनती करहुँ शीश नवहुँ बहु बार।।
होवै ग्रंथ में भूल कहिं लेवैं सुजन सुधार।। 4


छंद अक्षर

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ईश्‍वर जगदीश है दोष से छत्तीस है,
दासन का शीश है दीना निधान है।
दुष्‍ट का संहार है अहंकार छार है,
सेवक उद्धार है करुणा निधान है।
क्रोधी को काल है निंदक को जाल है,
ज्ञानी को ढाल है दानी को दान है।
सच्‍चा जो दास है जग से निराश है,
ईश्‍वर की आश है स्‍वर्गहिं ठिकान है।
दोहा अधर-निराकार करतार इक जिन यह रचा जहाँन।
नहीं जना उसे काहु ने नहीं नारि संतान।।


चौपाई

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यही वर्ष तारीख म‍हीना। लालरूप जहाल नवीना।। 1

चार सौ आठ लिए नर नारी। पहुच्‍यो आय शहर परमारी।। 2

प्रथम जहाज यही यहँ आयो। भारतवासी लाय बसायो।। 3

दुइ जाति भारत से आए। हिंदू मुसलमान कहलाये।। 4

रही प्रीति दोनहुँ में भारी। जस दूई बंधु एक महतारी।। 5

सब बिधि भूपति कीन्‍ह भलाई।
दुख अरु विपति में भयो सहाई।। 6

हिलमिल कर निशिवासर रहते।
नहिं अनभल कोइ किसी का करते।। 7

बाढ़ी अस दोनहुँ में प्रीति। मिल गए दाल भात की रीती।। 8

खान पियन सब साथहिं होवै। नहीं बिघ्‍न कोई कारज होवै।। 9

सब विधि करें सत्य व्‍यवहारा। जस पद होय करें सत्‍कारा।। 10


दोहा

यहि प्रकार से बसत यहं गए बहुत दिन बीति।
करैं कर्म दोउ धर्मयुत कोइ नहिं बांटी प्रीति।। 2


घमंड

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अति घमंड नाशै पुरुष चारेहु युग परमान।
मद आते जर्मन रहे कियो यूरुप संग्राम।।
कियो यूरुप संग्राम ग्राम पुर देश जराये।
मिली न एकौ इंच जिमीं धन प्राण गँवाये।।
कियो नाश सिंहासन अपना रह गए मलते हाथ मंद मति।
कहैं रहमान गुमान न करते रहते धन जन पूर सुखी अति।।


कुरान

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कुरान दीन का मूल है इबादत तरुवर जान।
रोजा शाखैं मानियो लिल्‍लाह फूल परमान।।
लिल्‍लाह फूल परमान करै फल जिन्‍नत पावै।
चलै कुरान मग छोड़ जो रब दोजक पहुँचावै।।
कहैं रहमान डरहु खालिक से छोड़हुँ झूठ तुफान।
पैहों सुख दुहुँ लोक महँ मानहुँ हुक्‍म कुरान।।


कुंडलियाँ-निराकार

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निराकार करतार इक जिन यह रचा जहान।
चंद्र सूर्य तारा रचे बिनु खंभा असमान।।
बिनु खंभा असमान जगत का जीवन दाता।
मातु पिता सुन नारि न‍हीं नहिं बांधव भ्राता।।
कहैं रहमान अगम गुण सागर महिमा अपरंपार।
योगी यती मुनीश्‍वर तपसी धरै ध्‍यान ईश्‍वर निराकार।।


मारयो नांव खेवैय्या दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।

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मारयो नांव खेवैय्या दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।
रौवै भारत मैय्या दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।।1

नहिं कोई हुआ न हुइ है ऐसा दिलका धीर धरैय्या।
दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।।2

बड़े बड़े शूरवीर भए भारत गांधी सन्‍मुख पैय्या।
दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।।3

चारौ युग में नहिं कोई जन्मा ऐसा कुंवर कन्‍हैया
दुश्‍मन मारयो नांव खेवैय्या हो।।4


ईश्वर से निवेदन

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निराकार प्रभु को नमहुँ धरहुँ चरण तल शीश।
हाथ जोरि बिनती करहुँ कृपा करहुँ जगदीश।।1।।

अंतर्यांमी प्रभु अहैं जानत मम उर बात।
सिद्ध करहुँ मम कामना दूर करहुँ उत्‍पात।।2।।

त्रिभुवनपति करुणायन सुन लेहु बिनती मोरि।
ज्ञान प्रकाश रचना चहहुँ दया चहत हौं तोरि।।3।।

मन चाहत सागर भरन बिनु गगरी बिनु डोर।
देहु बुद्धि घट कमल रजु लख कर अपनी ओर।।4।।

कृपा तुम्‍हारी से चढ़ैं पंगुल ऊँच पहार।
करहुँ कृपा मोहिं दीन पर निश्‍चय ह्वै जाऊँ पार।।5।।

तुम प्रभु दीन दयाल नित करत दीन पर छोहा।
देहु दया जलयान प्रभु पार लगावहु मोह।।6।।

प्रभु तुव बल लवलेश ते मूरख होय सुजान।
सोई बल मम भुजन में देहु दया कर दान।।7।।

जो अक्षर भूलौं कहीं हे प्रभु दीन दया।
अज्ञ जान बतलाइयो और करैहहु ख्‍याल।।8।।

गुरु पद पंकज नाय सिर हृदय मध्‍य धरूँ ध्‍यान।
हाथ जोरि बिनती करहुँ देहु ज्ञान कर दान।।9।।

बुद्धि बल विद्या है नहीं गुरु तुव चरनन आश।
तुम समीप मैं आयकर केहि विधि जाऊँ निराश।।10।।


ईश्वर का सुयश

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(इस ईश्‍वरीय यश को दोहा अधर तक दोनों होठों के सिरे से सुई लगाकर सज्‍जन जन उच्‍चारण करें।।)

अधर

ईश्‍वर एक युगुल नहिं कोई। ईश्‍वर कार्य छिनक जग होई।।
दंड एक वह रचै संसारा। जो चाहै इक कला संहारा।।
है नहिं देह गेह ईश्‍वर के। रहत सत्‍य उर है नर जी के।।
करै कार्य नहिं हाथ लगावै। हैं नहिं चरण जगत नित धावैं।।
नहिं लोचन देखै संसारा। श्रवण नहीं सुन नाद उचारा।।
घ्राण नहीं जग लेत सुगंधा। तजै ईश अस है पर अंधा।।
शक्ति तोरि जग रही दिखाई। निराकार वह नहीं लखाई।।
नहिं कछु जोर तोर गुण गाऊँ। चरण लाग निज शीश झुकाऊँ।।


आवागवन

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जग में आवागवन है कोई आवै कोई जाय।
विविधि भांति तन पावहीं करनी का फल पाय।।
करनी का फल पाय जीव कहिं चैन न पावै।
ईश करैं वहं न्‍याय पाप तोहि धर पकरावै।।
कहैं रहमान मुक्ति तुम चाहहुँ जाय गिरहु प्रभु पग में।
कटैं कोटि बाधा अमित फिर नहिं आवहु जग में।।


इस्लामी कुंडलियाँ-मुस्लिम

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मुस्लिम वही सराहिए मानहिं खुदा रसूल।
दें ज़कात खैरात बहु पाँच में रहें मशगूल।।
पाँच में रहें मशगूल हज काबह कर आवैं।
चलैं कुरान हदीस मग भूलेन राह बतावैं।।
कहैं रहमान सदा हित करहिं बेवा रंक यतीमम।
रोज हशर में जिन्‍नत पैहैं वही हकीकी मुस्लिम।।


अथ दोहा शिक्षावली-इष्टै बंदना / मुंशी रहमान खान

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गुरु पद पंकज नाय सिर उर धर ईश्‍वर ध्‍यान।
हाथ जोरि विनती करहुँ देहु बुद्धि बल ज्ञान।।1

धर्म सहित पुस्‍तक रचहुँ सुनिए कृपानिधान।
तुव प्रसाद यह पूर्ण हो दीजौ यहि वरदान।।2

धर्म विरुद्ध बहु कार्य लख, अस मन कीन्‍ह विचार।
देहुँ सीख दोउ धरम हित जो सहाय करतार।।3

यासे मैं विनती करहुँ हे प्रभु करुणा नाथ।
जो अनुचित लेखनि लिखै शक्ति घटै मम हाथ।।4

जो अक्षर भूलौं कहीं हे प्रभु दीनदयाल।
करि निज कृपा दीन पर शीघ्र करैयो ख्‍याल।।5

जौन लिखौं सब होय फुर झूठ न आवै पास।
करियो ईश सहाय यहि पूजै मन की आस।।6


मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे

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मउजे मिश्रवलिया जहाँ विप्रन के ठट्ट बसे
सुन्दर सोहावन जहाँ बहुते मालिकान है।
गाँव के पश्चिम में बिराजे गंगाधर नाथ
सुख के सरूप ब्रह्मरूप के निधाना है।
गाँव के उत्तर से दक्खिन ले सघन बाँस
पुरूब बहे नारा जहाँ काहीं का सिवाना है।
द्विज महेन्द्र रामदास पुर के ना छोड़ों आस
सुख-दुख सभ सहकार के समय को बिताना है।


पनिया के जहाज से पलटनिय

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पनिया के जहाज से पलटनिया बनके जइहऽ
हमके ले के अइहऽ हो।
पिया सेनूरा बंगाल के।


भोरहीं के भूखे होइहें चलत पग दूखे होइहें

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भोरहीं के भूखे होइहें चलत पग दूखे होइहें
प्यासे मुख सूखे होइहें जागे मगु रात के।
सूर्य के किरिन लागी लाल कुम्हिलाये होइहें
कंठै लपटाय झंगा फाटे होइहें रात के।
आली अब भई साँझ होइहें कवनो बन माँझ सोये होइहें
छवना बेबिछवना बिनु पात के।
महेन्द्र पुकारे बार-बार कौशल्या जी कहे
ऐसे सुत त्यागी काहे ना फाटे करेजा मात के।


राम लखन मोरा बन के गमन कइलें हमरा के तेजी कहाँ गइलें हो लाल।

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राम लखन मोरा बन के गमन कइलें हमरा के तेजी कहाँ गइलें हो लाल।
जब सुधी आवे राम साँवली सुरतिया से हिये बीच मारेला कटरिया हो लाल।
बालेपन से रामा गोदी में खेलवनी से जोरली सनेहिया तोरी गइलें हो लाल।
बिसरत नाहीं रामजी साँवली सुरतिया से छोटी-छोटी तीरवा धनुहिया हो लाल।
के मोरा खइहें रामा माखन मलइया से हँसि-हँसि मँगिहें मिठइया हो लाल।
कवना बिरिछ तले भींजत होइहें से राम लखन दुनू भइया हो लाल।
कोमल चरनियाँ रामा काँटा गरि जइहें से कइसे दू सूतिहें धरतिया हो लाल।
कंदमूल खइहें राम उहो नाहीं मिलिहें से भूखे होइहें हमरो ललनवाँ हो लाल।
कहत महेन्द्र कब ले होइहें मिलनवाँ से तरसेला दूनू रे नयनवाँ हो लाल।


तुम कैसे सीता घोर विपिन मँह जैहों।

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तुम कैसे सीता घोर विपिन मँह जैहों।
गर्जत व्याघ्र सिंह बहुतेरो पर्वत देखि डेरैहों।
उहाँ सयानी लागत पानी घरहीं विपत गवैहों।
नदी भयंकर देखि डेरैहों केवट कहीं न पैंहो।
काँट कूश गरीहें चरणों में धूप लगी कुम्हीलैहों।
चौहट हाट बाजार नहीं है कंद मूल फल खैहों।
कभी कभी ओ भी ना मिलीहें भूखे ही रहि जैहों।
राकस सब माया करते हैं देखि देखि घबरैहों।
द्विज महेन्द्र कहवाँ ले बरजों कुल के नाम नसैहों।


सासू ननदिया मिलि के कइली ह झगड़वा पिया लेके अलगा रहब।

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सासू ननदिया मिलि के कइली ह झगड़वा पिया लेके अलगा रहब।
ननदी के बोलिया ना सोहाय पिया लेके अलगा रहब।
कोठा अटारी हमरा मनहूँ ना भावे पिया ले के अलगा रहब।
टूटहीं मड़ईया बा हमार पिया ले के अलगा रहब।
पूरी मिठाई हमारा मनहूँ ना भावे पिया ले के अलगा रहब।
सतुआ आ भूँजा बा हमार पिया ले के अलगा रहब।
तोशक तकिया हमरा मनहूँ ना भावे पिया ले के अलगा रहब।
टूटही चटइया बा हमार पिया ले के अलगा रहब।
गोवेलें महेन्दर मिसिर इहो रे पुरूबिया पिया ले के अलगा रहब।
लागल बाटे आसरा तोहार पिया ले के अलगा रहब।


नित-नित देखीले सपनवाँ हो रघुनाथ कुँवर के।

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नित-नित देखीले सपनवाँ हो रघुनाथ कुँवर के।
बन के गमन कीन्हीं हमनी के तजी दिन्हीं,
ना जाने कवनी करनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
चउदह बरस गइलें अबहुँना लालन अइलें का सो देखाईं सगुनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
जब सुधि आबे राम जी तोहरी सुरतिया व्याकुल होला परनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
जब-जब याद पड़े नैना से नीर झरे जइसे झरेला सवनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।
कहत महेन्द्र कागा उचरऽना अँगनवाँ कब अइहें रामजी भवनवाँ हो। रघुनाथ कुँवर के।


कोसिला सुमित्रा रानी करेली सगुनवाँ सें

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कोसिला सुमित्रा रानी करेली सगुनवाँ सें
कब अइहें रामजी भवनवाँ हो लाल।
ताहिरे समइए रामा एक सखी बोलली
कि आई गइले राम दुनू भइया हो लाल।
लंका जीति अइलें राम अवध नगरीया से
बाजेला आनंद बधइया हो लाल।
तबला सरंगी बाजे ढोल ओ सितार से
बड़ी नीक लागे सहनइया हो लाल।
चिहुँकी कोशिला रानी ठाढ़े अँगनवाँ से
कहाँ बारे राम जी ललनवाँ हो लाल।
कइसे के लंका जीति अइलें तपसिाय से
अबहीं तो छोटे दुनू भइया हो लाल।
छोटे-छोटे बहियाँ रामा उमिर लरिकइयाँ से
छोटी-छोटी तीरवा धेनुहिया हो लाल।
कहत महेन्दर भरि देखलीं नयनवाँ से
छूटि गइलें जमके दुअरियाहो लाल।


जहियासे पिया मोरा छुअलें लिलरवा,

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जहियासे पिया मोरा छुअलें लिलरवा, राम से ताहीं दिन से ना।
छूटल बाबा के भवनावाँ राम से ताही दिन से ना।


सास के विलोके सिंहिनी सी जमुहाई लेत

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सास के विलोके सिंहिनी सी जमुहाई लेत
ससुर के विलोके बार-बार मुँह बावती।
ननद के विलोके नागिन सी फुंफकार करें
देवर के विलोके डाकिनी सी डेरवावती।
रात दिन झगरे मोछ जारे ऊ पड़ोसियन के
पति के विलोके खाँव-खाँव कर धावती।
कर्कशा कुचाली कुबुद्धि कलही जो नार
करम जेकर फूटे नारी अइसी घरे आवती।


हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें।

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हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें।
हम नाहीं जनलीं कि जाने लीहें। बबुआ।
केकई कारण हम अता दुख सहतानी
लाखन सिकाइतो खूब सहलीं रे बबुआ।
बिना अपराधे हम कुटनी कहावतानी
मारि-मारि हलुआ बनवलऽ हो बबुआऽ।
कहाँ ले इनाम मिली नाम वो निशान रही
उलिटा में जानवाँ गँववली हो बबुआ।
जानकी लखनराम बन के गमन कइले
दुनिया में अजसी कइहलीं ए बबुआ।
इज्जत के पहुँच गइनीं दूधवा के माछी भइली,
एको नाहीं सरधा पुजवल ऽ ए बबुआ
केनियो के नाहीं भइनी दुनू तरफ से गइनी
सगरे से पापिनी कहइनी रे बबुआ।


कटहर खरबंदा कचनार ओ कदंब अंब

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कटहर खरबंदा कचनार ओ कदंब अंब
जम्बू फल कैंत केरा नीमू वो अनार हैं।
अमला अमरूद बइर सेब नासपाती तूत
बैल अबर बरहरे से तो झुके सभ डार हैं।
सुन्दर सरीफा नवरंगी निहार देखो फरसा
अनेनास वो अंगूर की बहार है।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र जोई मन भावे तोड़
लीजिए खुशी से सकल वस्तु ही अपार है।


दुआरे ठाढ़े ब्रह्मा किंवारे ठाढ़े महादेव

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दुआरे ठाढ़े ब्रह्मा किंवारे ठाढ़े महादेव
झाँकत सभ देव आज खिड़की ओ भंवारी में।
कोठे चढ़ि सूर्य झाँके आँगन से चांद झाँके
आस पास लोग झाँके भीर है दुआरी में।
आज तक ना देखे कबहीं कानन से सुने नाहीं
अइसन है सुरूप चलो देख लीं निहारी मैं।
द्विज महेन्द्र अति आनंद देखि के मुखार बिन्द
भीड़ भई भारी आज दुमुहाँ-अटारी में।


हम तो हैं बनिया जीव राखत हैं धनिया भर

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हम तो हैं बनिया जीव राखत हैं धनिया भर
लवंग सोपारी जीरा भरे हैं दूकान में।
गोलमिरिच दालचीनी नेक सब बनियन में
हमको तो नामी लोगजानत है जहान में।
भारी डरपों तनिकों नांेकझोंक सहत नाही
आँख के तरेरे हम तो भागत हैं मकान में।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र सउदा कुछ लीजे नाथ
हमरा जस सच्चा नाहीं पाओगे जहान में।


लीजिए कटोरा अमखोरा वो गिलास खूब

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लीजिए कटोरा अमखोरा वो गिलास खूब
उगलदान पानदान छीपी भी हजारी है।
गगरा परात लोटा थारी के ठेकाना नहीं
तावा भी धरे है वो कराही लोहे वारी है।
कठरा अवर हथरा है हंडा सुराही लाख
पावा झंझार पुरी पलंग की तइयारी है।
द्विज महेन्द्र रामचंन्द्र सउदा कुछ लीजे आज
कवन ऐसी वस्तु ना दोकान में हमारी है।


सलमा सितारे के किनारे हैं हमारे प्यारे

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सलमा सितारे के किनारे हैं हमारे प्यारे
चादर रूमाल देखि मोहित होई जावोगें।
घास लेट मखमल ओ डोरिया देखाऊँ तोहे
धोती कोरदार देख मुंदित होई जावोगे।
शांतिपुरी ढाका तानजेब है हमारे पास
जड़िअन के काम देख अंत नहीं पाओगे।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र सउदा कुछ लीजे आज
जनक जी के सभा में इज्जत खूब पाओगे।


शाला है दोशाला चित्रशाला बहु भांतिन के

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शाला है दोशाला चित्रशाला बहु भांतिन के
शाल ओ रूमाल ऊनेदार बने काम है।
धूसा अलेबान कोट कुर्त्ता गंजीफराश
कम्बल पछाही जाके सस्ते सभ दम है।
उम्दे जामेवार सुर्ख धानी वो सुफेद स्याह
चोंगा कामदार जाके सांचे सभ नाम है।
द्विज महेन्द्र रामचंन्द्र सउदा कुछ लीजें आज
देता हूँ उधार आप देना ना छेदाम है।


गँहकी हैं खास खास आवत है मेरे पास

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गँहकी हैं खास खास आवत है मेरे पास
नगदी ओ उधार सभको देती हूँ जुबान पै।
खाता ये खुला है दरबार ये खुली है
तव रूप भी भली है प्यारे आइए दुकान पै।
पान के मसाला हम जानत है आला
जरा खालो नृपलाला मैं भोराऊँ वीरा पान पै।
द्विज महेन्द्र रामचंद्र सौदा कुछ लीजे आज
मोहित हूँ प्यारे तेरी तोतरी जुबान पै।


सुंदर आलमारी जामें सीसे की किवारी

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सुंदर आलमारी जामें सीसे की किवारी
देख लीजिए निहारी खूब पान की बहारी है।
अतर ओ सुगन्ध से सुवासित सब पानदान
लवंग सुपारी डारी बीरा तइयारी है।
एक बेर खाके आजमा के देख लीजे आज
कीजे ना लेहाज सकल वस्तु ये तिहारी है।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र सउदा कछु लीजे आज
देसी अवर बंगला पान पास में हमारी है।


काहे को विधाता अइसन सुन्दर सरूप दीन्हों

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काहे को विधाता अइसन सुन्दर सरूप दीन्हों
सरस चतुराई निपुनाई छवि छाई है।
नाहक विलास भोग जगत में बनाया दीन्हों
नाहक सोलह सिंगार अंबर बनाई है।
नाहक विश्राम सुखधाम भी बनाए हाय
दुनिया के विभव राज नाहक बनाई है।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र लखन सिया के संग
भाल अंक लिखत ब्रह्मा खूब ही भुलाई है।


कुटिल कुचाली माता निठुर पिता भी याके

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कुटिल कुचाली माता निठुर पिता भी याके
ऐसो सुत जाके ता के बन में पेठाई है।
निरदई विधाता मनराता नहीं त्राता
हाय बालक बन जाता तनिक दया नहीं आई है।
फूलन की बिछौना जौना हीरा जवाहिर जरे
मेवा मधु खानपान नाहक बनाई है।
द्विज महेन्द्र बार-बार छवि की बलि हार जाऊँ
भाल अंक लिखत ब्रह्मा कवन चूक पाई है।


खेत खरिहानी जाली हाली-हाली खाली

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खेत खरिहानी जाली हाली-हाली खाली
लेके खुरूपी कुदारी झूर कोरेली डँरार के।
झगड़ेली राहे बाटे घरे कुकुराह करे
घरे-घरे घूमे जइसे कुतिया कुवार के।
छिरकेली नटा, पोटा पोंछ गोझनवटा में
कजरा लुआठे, दागे चूल्ही से निकार के।
कहत महेन्द्र इहे लच्छन करकसा के
मुंहे-मुंहे थूर-थूर मारेली भतार के।


चिहुँकेली बार-बार अँचर उतार चले

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चिहुँकेली बार-बार अँचर उतार चले
बे हँसी के हँसी पति देख कहँरी।
मार-मार हलुआ निकाले ऊ भतरऊ के
डाँट के बोलावे कोई बात में ना ठहरी।
घरे-घरे झगड़ा लगावे झूठ साँच कहं
भूँजा भरी फाँके चुप्पे फोरे आपन डेहरी।
गारी देत बूढ़वा भतार के तो बार-बार
कहत महेन्द्र अबो चूप रह रे ढहरी।


कलही कुचालीन करकसा ओ फूहरी के

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कलही कुचालीन करकसा ओ फूहरी के
देखे कोई जतरा पर बहुरे ना प्राण के।
भोरे मुंह देखेऊ तो भूखे मरे रात-दिन
अटर-पटर बोले ठीक राखे ना जुबान के।
कथा ओ पुराण के त लगे नाहीं जाले कबों
फोरेले भतार के कपार कूद फान के।
साधू संत माने ना दान ना छेदाम करे
महेन्द्र बचावे अइसन कलही कुनार के।


आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे

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आपना पति के देखि रोई-रोई बात-करे
अनका पती के देखि हँसेली ठठार के।
माथा खजुआवे बाजूबंद झनकावे अरू
अँखिया लडावे चले छतिया उघार के।
सांस ओ ननद के तऽ रोजे इ उपास राखे
चूल्ही का चलवना से मारे ली भतार के।
कहत महेन्द्र इहें लच्छन करकसा के
भेजेली रसातल ई त ऽ कुल परिवार के।


अनका पति के देखि चार गाल बात करे

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अनका पति के देखि चार गाल बात करे
अपना पती के देख खटिया पर कोहँरी।
चुल्हिया लिपावन लागे हँड़िया धोवावन लागे
पनिया भरावन लागे छुए देना देह री।
पूरी ओ मिठाई देत आपना मिलनुवाँ के
आपना पती के देत सतुआ ओ फरूही।
कहत महेन्द्र इहे लच्छन करकसा के
करमे फुटेला जेकरा मिले अइसन मेहरी।


नर होवे नाक होवे किन्नर गंधर्व यक्ष

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नर होवे नाक होवे किन्नर गंधर्व यक्ष
देव होय कोई होय छोड़ूँ बिन मारे ना।
एकइस बार दत्रिन के निछत्री हम कीनो देख
परशु के धार मेरा सत्रुन के दुलारे ना।
अपर भूप भागों ना तो मरोगे हमारे हाथे।
सत्य निर्दोश होय तो भी ढिग आओ ना।
द्विज महेन्द्र बार बार कहता हूँ कर प्रचार
धनुष तुड़ैया अब प्राण कंठ धारे ना।


ऐ रे जड़ जनक आज बेग ही बतावो मोही

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ऐ रे जड़ जनक आज बेग ही बतावो मोही
धनुष कवन तोड़ वाको जमपुरी पठावेगें।
देख ले कुठार यह परशु की धार मेरो
सकल समाज तेरा धूरा में मिलावेगें।
देस-देस ने नरेश बैठे हैं सभा के बीच
आवे जो नगीच वाको समर में सुतावेगें।
द्विज महेन्द्र बार-बार कहता हूँ करि प्रचार
शीघ्र ही बतावो ना तो प्रलय देखलावेगें।


चन्द्रिका मय मकुट मुकुटमय चन्द्रिका

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चन्द्रिका मय मकुट मुकुटमय चन्द्रिका
चन्द्रिका मुकुट मय चारू चन्द्रिका अंजोर की।
द्युतिमय समाज झाँकी झाँकीमय द्युति
द्युतिमय समाज साज भानू जनु भोर की।
जटित नग छत्र नग नव सिरपेंच बीच
पेंची मणिलाल मुक्तान झलावोर की।
द्विज महेन्द्र झाँकी जैसी दूसरी न झाँकी
जैसी झाँकी हम झाँकी बाँकी दशरथ किशोर की।


हमहूंत रहली जलके मछरिया जालवा फंसवल ए माधो

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हमहूंत रहली जलके मछरिया जालवा फंसवल ए माधो
माधो धई देलऽ तलफी भुंभुरिया कि जियते जरवल ए माधो।
हमहूं रहलीं भोरी रे चिंड़इया खोतवा उजरल ए माधो
माधो डहकीं ले अब दिन रात, बिरहिनिया बनवल ए माधो।
हमहूँ त रहली अबला अनारी पिरीतिया लगवल ए माधो
माधो भागि गइल अंगुरी छोड़ाई कि नइया डूबवल ए माधो।


चलत-चलत मोरा पईया पिरइले, ए ननदिया मोरी रे

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चलत-चलत मोरा पईया पिरइले, ए ननदिया मोरी रे
तबहूं ना मिलेला उदेश, ए ननदिया मोरी रे।
अपने न अइलें पिया भेजलें ना सनेसवा, ए ननदिया मोरी रे।
भेज देले डोलिया कहार, ए ननदिया मोरी रे।
संग के सखी सब छोड़के परइलीख्ए ननदिया मोरी रे।
जात अकेले डरवा होय ए ननदिया मोरी रे।
टोला परोसा मिली डोलिया चढ़वले ए ननदिया मोरी रे।
डाल देले सवुजी ओहार ए ननदिया मोरी रे।
छूटल जाला बाबा के दुआर, ए ननदिया मोरी रे।


आधी-आधी रात रतिया के पिहिके पपिहरा से बैरनिया भइली ना

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आधी-आधी रात रतिया के पिहिके पपिहरा से बैरनिया भइली ना
मोरा अँखिया के रे निनिया से बैरनिया भइली ना।
पिया कलकतिया घरे भेजे नहीं पतिया
से सवतिया भइली ना
कुहु-कुहु कुहुके कोइलिया से सवतिया भइली नाफ
बभना बेदरदी मोरा जनमे के बैरी से लगनिया जोड़ले ना
निरमोहिया बेदरदी से सनेहिया जोड़ले ना।
द्विज महेन्दर इहो गोवेले पुरूविया से सवतिया कइले ना,
विरहिनिया के छतिया में अंगिया धइले ना।