Tuesday 20 August 2019

तेरी यादे तुझसे भी बड़ी

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सो बार कत्ल किया मगर फिर भी सामने आ खड़ी हो गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

किसे पानी में डुबाया तो किसे आग में जलाया
एक एक कर तेरी सब निशानियों को मिटाया
मगर फिर भी तू कभी लपटों मैं दिख गई
तो कभी पानी मैं उभर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

तू वापिस आये न आये पर
खुदा करे तेरी यादे ना आये
ना कोयला बना ना मैं राख
ऐसे क्यों ये तपन सुलगाये
वफ़ा से बेवफाई की सीढ़ियां कितनी आसानी से चढ़ गई
जामाने की गर्म हवाओं से वो कितनी जल्दी  डर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

वो जब आती थी तो मौसमो मैं बाहर सी छा जाती थी
उसकी खामोशी भी हजार अफ़साने सुना जाती थी
सुनते है के वो कली किसी और अंगना मैं खिल गई
वो मेरी मोहब्बत थी पर चांदनी बन कही और बिखर गई
न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई

खूब रोकर देख लिया
खूब सोकर देख लिया
जब जब याद आया तु
मुह धोकर देख लिया
कभी आईने में तस्वीर तेरी दिख गई
तो कभी पानी के बुलबुलो मैं तू मचल गई

न जाने कब, तेरी यादे
तुझसे भी बड़ी हो गई


बेटी की माँ कुछ कम माँ

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कहने को तो हर माँ , माँ है
पर मेरी माँ दो बेटीयो की माँ है
माँ तो खैर मा होती है लेकिन
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

कदम कदम पे उसे सिखाता है जमाना
के बेटी को कैसे है पालना
हर आता जाता कह जाता है के बेटा होता तो कोई बात नही, पर बेटीयो का ध्यान रखना
क्योकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

खूब डराता है ये जमाना उसको, गर वो खुद बेटी की पैदाइश से ख़ौफ़ज़दा नही होती
सो बार टोकेगा हर रिश्ता उसे, बार बार समझायेगा के बेटी पराई होती है अपनी नही होती मगर मेरी माँ खफा नही होती
क्योकि बेटी की माँ कुछ कम मा होती है

भेडियो से इसको बचाना होगा, बेटी है तो सब कुछ सिखाना होगा
लाड प्यार से  खराब कर देगा इसको, अगले घर जाकर सब कुछ बनाना होगा
ये सोचती नही मा, बल्कि सबसे सुनती है क्योंकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

पढ़ाई लिखाई खत्म हुई, नोकरी क्यो कराओगी
शर्म नही आएगी क्या बेटी की तनखा खाओगी
शुक्र है जमाने तेरा, के तूने समझाया
क्योकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

अच्छा सा लड़का देखो और शादी कर दो
खुश खूब रखेगा ससुराल गर दहेज जी भर दो
ये मेरी माँ ने माना नही पर तुमने मनवाया क्योकि
बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

बेटी हु तो क्या इंसान तो हु
तेरी नही मगर फिर भी अपने माँ बाप की जान तो हु

अब मुझे बताया जाता है
सो बार समझाया जाता है
के माँ कुछ मुझे नही सिखाया
बस एक बोझ मान कर उठाया
मैं चुप चुप आंसू रोती हु, थाली में भर भर गाली सहती हु
क्योंकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

ये नही लाई, वो नही लाई,
तेरी माँ ने नाक हमारी कटाई
शादी का खर्च शान दिखा अहसान नही कोई किया
अपनी ही बेटी को दिया जो भी दिया
क्योंकि बेटीयो की माँ शायद कुछ कम माँ होती है

गर अपनी ही बेटी को दिया तो क्यो है तुमको गिला
बेटा पैदा कर ऐसा क्या अहसान तुमने किया
काश बेटो की माँ भी बेटी की माँ जैसी होती
थोड़ी कम माँ होती पर माँ तो होती

मुझे गिला नही के मेरी माँ कुछ कम माँ है
मुझे तो बस इतना जानना है के बेटो की माँ मैं ममता ज्यादा क्यो है
ज्यादा है तो वो नजर क्यो नही आती
इस से बेहतर तो बेटी की माँ है थोड़ी कम ही सही, पर माँ तो है


जिंदा है तेरी यादें तो जिंदा हु मैं

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जिंदा है तेरी यादें तो जिंदा हु मैं
वार्ना सच कहु अपने जिंदा होने पे बहुत शर्मिंदा हु मैं

जब छू सकता था तुमको तो तुम पर्दानशीं बन बैठे
बेबसी का फशार इतना है
अब जब छू नही सकता तो तुम ही जमी आसमान बन बैठे
मुझपर तेरा खुमार इतना है
हवाओ मैं घुल गई तुम तो सांसे ले पाता हूं मैं
वार्ना घुटन से परेशान पुलिंदा हु मैं

तू जब इंसान थी तो कितनी दूर थी हर बात के लिए कितनी मजबूर थी
अब से तू फसाना बन मशहूर हुई क्योंकि इंसान नही अब तू जन्नत की हूर थी
तेरा जिक्र आता है मेरी जुबा से बार बार तो खैर खा मेरे बहुत है लोग
वार्ना तो कोई आम सा बंदा हु मैं

सोचा था के किसी सुबह तुम चाय की प्याली ले कर दिखोगी मुझे
तुम आती तो मगर चाय के टेबल पर बाते बेहिसाब लिए
तुम जन्नत में जा बसी हो मेरी रूह से आ मिली हो खुदा जाने
खुशनसीबी मेरी के तुझमें जिंदा हु मैं

याद करो कितना मुश्किल होता था तुमको एक नजर देखना
अब तो बेधड़क चली आती हो कभी ख्वाबो मैं, यादों में और कभी बातों में
बेहतरीन है ये अहसास के तेरा न होकर भी हर जगह होना
लगता है मुझको भी के कोई खास चुनिंदा हु मैं


भला ये कोई तरीका है

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अरे रुको, क्या बेधड़क चली आती हो कभी ख्वाबो मैं , कभी यादों में तो कभी बातो मैं

ख्वाब छुटे तो मलाल, याद छुटे तो फसाद, भला ये कोई तरीका है कही जाने का


Thursday 15 August 2019

तेरा गुनाह हूँ मैं,

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मुमकिन ना होगा यूँ  भूल जाना मुझको....i

तेरा गुनाह हूँ मैं, अक्सर याद आऊंगी ...ii