Tuesday 3 September 2019

पैसा है कैसा

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पैसा है कैसा
एक कागज का टुकड़ा
और तिकड़ी का नाच नचाया है
हुआ ये किसी का नही मगर कहता भी कोई नही
के ये पराया है

जानवर और इंसान होते एक समान
गर न होता पैसो का घमासान
क्योंकि रोटी ही मांगे जानवर
रोटी ही मांगे इंसान

आया था ये बड़े दावे लेकर
के करूँगा सब जरूरते पूरी तेरी
पर कमाते कमाते ध्यान ही न रहा
के कब बन गया ये लत तेरी

पैसे से ही तू राजा है
पैसा है तो खाना ताज़ा है
पैसा है तो शान शौकत तेरी
वार्ना धत्त, काहे का तू राजा है

हम भी खूब सुना करते थे बड़े बुजुर्गों से
के पैसा हाथ की मैल हुआ करता है
मगर सच ये के ये दिलो मैं मैल  भरा करता
ये ही तो आज का तकाजा है


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