Monday 4 November 2019

शायद फिर मिलेंगे हम कभी shyad phir milenge hum kabhi

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मैं जानती हूं के वो मुझे माफ़ करेंगे नही
वो भी जानते है के मैं भी उनके सितम भूलूंगी नही
पर इसका मतलब ये कैसे हुआ के उनको प्यार भी करूँगी नही

उनके शिकवे खत्म शायद होंगे नही
मेरे दिल के मलाल भी अब कम होंगे नही
पर ये किसने कहा के हुम् एक दूजे के दिल में रहेंगे नही

मैं जानती हूं के शायद अब कभी बात न करे मुझसे
मैं भी खुद से पहल कतई करूँगी नही
पर लब खामोश रहे तो क्या दिल भी आवाज सुनेंगे नही

उनको जिद्द है तो बने रहे जिद्द पर अपनी
मैं तो नीचे झुकने से रही
कोई पूछे सामने ना आये तो क्या ख्यालात मैं भी आएंगे नही

वो कहेंगे के जाओ तुमसे प्यार नही अब हमें
मैं भी कह दूंगी जाओ हम भी तुम बिन मरेंगे नही
कोई ये भी बताए के एक दूजे बिना क्या लोग हमे जिंदा कहेंगे नही

तमाम उम्र का वादा और चंद कदमो पे लड़खड़ा गए
जितना संभाला मगर हालात बेकाबू से होते गए
गिले शिकवे है हावी तो क्या ये जज्बात अरमान मरेंगे नही

वो दूर हो गए हमसे , हुम् भी मजबूर हो गए
न उन्होंने देखा मुड़के न हमने देखा तो क्या हुआ
एक डगमगाते बुझते दिए कि लो कहती है के शायद फिर मिलेंगे हम कभी


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