Thursday, 2 April 2020
कोरोना पर कविता carona par kavita
ऐसे दिन फिर कब आएंगे
के सब दुश्मनी जात पात भूल,
मानव का धर्म निभाएंगे
सोना चांदी की फिक्र नही
रोटी चावल मैं भी शुक्र मनाएंगे
फैशन की अब कोई होड़ नही
वास्तविक खूबसूरती पाएंगे
मंदिर के दरवाजे बंद हुए
दिल में मंदिर बनाएंगे
चाऊमीन, समोसे और भेलपुरी
आज से घर ही बनाएंगे
पड़ोसी कही भूखा तो नही
उसका भी हाल पुछके आएंगे
कॅरोना तुम तो जल्दी चले जाना
मगर अपनी अच्छाइयां यही छोड़ जाना
जो काम गीता कुरान बाइबिल न कर पाए
उसके लिए कॅरोना का आभार जताएंगे
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