Wednesday 1 August 2018

मे इक लाल रंग को तरसती रही

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शोहरत कदमो मे झुकने को तैयार खड़ी थी
पर हसरते मुझे देख देख हंसती रही
यु तो कई नेमते खुदा की मुझपर बरसती रही
पर मे इक लाल रंग को तरसती रही

मौसम बदले कितने, कितने अपने भी बदले
मै फिर भी ऐतबार सबका करती रही
मे प्यासी की प्यासी ही रही
सावन की बारिश बरहा बरसती रही

लाख तोडा उम्मीदों को मेरी इस जहान ने
मै फिर भी सपनो के आसमान मै उड़ती रही
जिन्दा रही मै चलती रही जिंदगानी
पर साँसे धड़कन के बिना चलती रही


Ruchi Sehgal

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