Tuesday 31 July 2018

खंजर

No comments :

दर्द नहि पर बेहद् हैरत का मंजर था
जो मेरी पीठ पर चुभा था वो किसी गैर का नहीं
अपनों का खंजर था

मेरे प्यार का, खलूस का ये सिला दिया
वाकई उसका दिल कितना बंजर था

यु तो सैलाब बहुत आते जाते होंगे इस साहिल पे
पर इस बार मेरी आँखों मै भी एक सैलाबी समंदर था

इक मुखोटा लगा कर मिलता था वो जब बी मिला
और मुझे लगा के जो हैं बाहर वो ही उसके अंदर था

सच कहती है दुनिया के यहाँ कोई अपना नहीं
बन्दा जो बी है खुद की गरज के लिए है चाहे फ़कीर या सिकंदर है



Ruchi Sehgal


No comments :

Post a Comment