Saturday 5 October 2019

खेल नियत काKhel niyat ka

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कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है


मैं बतौर हैसियत एक फ़क़ीर और वो एक बादशाह सा है
मगर बतौर नियत मै एक बादशाह और वो फ़कीर सा है

वो आया लेने इश्क़अपना देकर हजार वादे,
मगर मै निभाती चली गई वो भुला अपने इरादे
वो आया था सपने लेकर मगर झोली में धोखा डाल गया
मई आई थी सिर्फ उम्मीद लेकर और वफ़ा दे कर लौटी हु

कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है
इसका इश्क़ बारिशो की तरह था
बरस गया, भिगो गया और  बाह गया फिर कही खो गया
मेरा इश्क़ इक हरे दरख़्त सा था के हरा हो गया , तपन सह गया  और हवाये देता रहा
वो बतौर हैसियत निभा सकता था और मैं बतौर हैसियत उसे भुला सकती थी
मगर मै बतौर नियत उस से निभा गई और वो बतौर नियत मुझे भुला गया

श्याद सही ही कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

वो कहता था के कभी किसी मज़बूरी में भी मुझसे दूर न होगा
मगर आज इतना मजबूर हुआ के वो दूर हो गया
मै कहती थी के गर मे बिछुड़ जाऊ तो मेरी मज़बूरी समझ लेना
मगर मेरी किसी भी मज़बूरी में उससे दुरी न हो पाई

वो बतौर हैसियत तारे तोड़ सकता था मेरे लिए मै बतौर हैसियत कुछ भी न कर सकती थी उसके लिए
मगर मै बतौर नियत अब भी उसका इन्तजार करती हु
और वो बतौर नियत मुझसे हर ताल्लुक से इंकार करता है
सही ही कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

मोहब्बत के पाक दामन को वहशतो से भर दिया
हाय उसने क्या कर दिया

वो कहता था के मुझपे कोई इल्जाम न आने देगा
दुनिया की नजर में कभी बदनाम न होने देगा
मै कहती थी मै क्या कर पायुंगी
दुनिया के डर से श्याद तुमसे न मिल पायुंगी
वो बतौर हैसियत मेरा मेहराम बना रहता था और मई बतौर हैसियत कनीज़ बन उसके पास बैठी रहती थी
मगर ये मैं ही हु जो आज बतौर नियत उसपे मेहरबान रहती हु
और वो बटोर नियत मुझसे बस अनजान रहता है
कहते है के सब खेल नियत का है
बन्दा आखिर कितना बड़ा दिल और कितनी बड़ी हैसियत का है

वो मोहब्बत को वहशत की सेज बना गया
और मैं वहशत की सेज पे भी ख्वाब प्यार के बुनती रही
वो रूहानी पाक जज्बे में जिस्मानी भूख ढूंढ बैठा
मैं फूलो और ख़ुशबुओं के सपने संजोती रही
वो बतौर हैसियत मुझे खुद की आबरू बना सकता था
मै बतौर हैसियत सिर्फ खामोशिया ही दे सकती थी
मगर वो बतौर नियत मुझे रस्ते का कंकर मान बैठा
और मै बतौर नियत उसे सर का ताज बना बैठी


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