Tuesday, 31 July 2018
खंजर
दर्द नहि पर बेहद् हैरत का मंजर था
जो मेरी पीठ पर चुभा था वो किसी गैर का नहीं
अपनों का खंजर था
मेरे प्यार का, खलूस का ये सिला दिया
वाकई उसका दिल कितना बंजर था
यु तो सैलाब बहुत आते जाते होंगे इस साहिल पे
पर इस बार मेरी आँखों मै भी एक सैलाबी समंदर था
इक मुखोटा लगा कर मिलता था वो जब बी मिला
और मुझे लगा के जो हैं बाहर वो ही उसके अंदर था
सच कहती है दुनिया के यहाँ कोई अपना नहीं
बन्दा जो बी है खुद की गरज के लिए है चाहे फ़कीर या सिकंदर है
Ruchi Sehgal
Friday, 27 July 2018
Tuesday, 24 July 2018
तुम्हे शर्म तो ना आई होगी
तुम्हे शर्म तो ना आई होगी
अपने वादे वफ़ा से मुकरते हुये
दिल मे कुछ खलिश तो आई होगी
इतनी बेहयाई करते हुए
कभी सोचा नहीं था के तुम्हारा एक चेहरा ऐसा भी होगा
तुमने सोचने का वक्त भी कहा दिया इकरार इसरार करते हुए
मेरी बेवकूफी की मजाल तो देखिये के आज भी यु लगता है
के कोई अपना बसता है जैसे ,हर बार तुम्हारे शहर से गुजरते हुए
कभी कभी तो लगता है क जैसे घूरता हो मुझे नुक्कड़ पे वो चाय वाला
के जहा पे पी थी चाय तुम्हारे से बिछुड़ते हुए
Ruchi Sehgal
Monday, 23 July 2018
जिन्दा दरगोर
मे औरत हु
सूरज के साथ आई भोर हु
मै बारिश मै नाचता मोर हु
नाजुक सी कच्ची डोर हु
रिश्तों मे सराबोर हु
मे औरत हु
ढलते सूरज की लाली हु
पक्के फल की डाली हु
इज्जत की रखवाली हु
एक अकेली बर्दाश्त वाली हु
औरत जो हु
मे औरत हु
मंदिर मे पूजी जाती हु
रोज पैरो तले रौंदी जाती हु
सबके लिए पकाती हु
पर खुद भूखी सो जाती हु
आखिर औरत जो हु
मे औरत हु
घर से बाहर जाता कोई रास्ता नहीं
चारदीवारी से बाहर मेरा कोई वास्ता नही
घुटन से आजादी का रास्ता नहीं
हो कोई रास्ता भी मगर वो सस्ता नहीं
क्योंकि औरत जो हु
मै औरत हु
मायका अपना नहीं रहा
ससुराल बस सपना ही रहा
बेबसी मुझपे हँसती ही रही
हज़ारो राते डसती ही रही
आखिर क्यों मे औरत हु
मे औरत हु
सदियो से दबी चीखों का शोर हु
क्या क्या किया लेकिन कमजोर हु
सुर्ख लिबाज मे लिपटी हु लेकिन
सच ये है के जिन्दा दरगोर हु
क्यों मे एक औरत हु
Ruchi Sehgal
Tuesday, 17 July 2018
मैंने देखे चाँद तारे
मैंने देखे है चाँद तारे,
मैंने देखे दुनिया के नज़ारे
मैंने खुशबु को हवा मई घुलते भी देखा
मैंने नदियो को बलखाते भी देखा
मैंने देखे हजारो मेले
मैंने देखे मेलो मे हजारो अकेले
मैंने सब को रब से डरते देखा
लेकिन फिर उनको बेबाकी से इंसानियत से गिरते भी देखा
मैंने देखा मंदिर मस्जिद गिरते हुये
मैंने देखा धर्म के नाम पे हैवानियत होते हुए
मैंने हर मजहब मेऔरत का रुतबा भी देखा
लेकिन हर गली मे औरत को बिकते खरीदते भी देखा
मैंने देखा नंगे बच्चों को हँसते हुए भी
मैंने देखा चस्मा लगाये भारी बैग उठाये गुमसुम बच्चा भी
दुनिया बनाने वाले ने तो दुनिया बनाई लेकिन इंसान ने दुनिया की ऐसी तैसी फिराई
शांति के नाम पर दंगे और मोहब्बत के नाम पर बेवफाई, वाह रे बन्दे क्या दुनिया बनाई
Ruchi Sehgal
तपती धुप और अंगारे
तपती धूप मै अंगारो पे चलती हु
और देखने वाले जलते है के
कितने सुपून से मे चलती हु
होंठो पे बहाने से हँसी के मरहम रखती हु
खुद ही खुद के जख्मो को भरती हु
और लोग उठाते है सवाल के
ऐसे कैसे कहकहे मै भरती हु
किसकी तलाश मे निकले, किसको मंजिल कहे
खिसकती है पैरो तले से ज़मीन
जहा जहा भी कदम मे रखती हु
Ruchi Sehgal
Friday, 13 July 2018
बदली की चादर Badli ki chadar
फिर भीग जाऊ धीमी धीमी सी बूंदों मै
बूंदों संग बह जाऊ दरिया मै
और पिया मिलन को चल जाऊ
कोई तो इक गगरी ला दे के मैं सोहनी बनकर तर जाऊ
उस पार न पहुँचूँ तो भी गम नहीं लेकिन दरिया मे ही मर जाऊ
मर कर अम्बर से तुझको देखु इतनी सी हसरत बस पा जाऊ
फिर फिकर नहीं मुझको के दोजफ् की आग मिले या जन्नत मे घर पाउ।
बस पिया मिलन मै कर जाऊ