Friday 13 July 2018

बदली की चादर Badli ki chadar

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बदली की चादर ओड़े शहर शहर उड़ती जाऊ
फिर भीग जाऊ धीमी धीमी सी बूंदों मै
बूंदों संग बह जाऊ दरिया मै
और पिया मिलन को चल जाऊ
कोई तो इक गगरी ला दे के मैं सोहनी बनकर तर जाऊ
उस पार न पहुँचूँ तो भी गम नहीं लेकिन दरिया मे ही मर जाऊ
मर कर अम्बर से तुझको देखु इतनी सी हसरत बस पा जाऊ
फिर फिकर नहीं मुझको के दोजफ् की आग मिले या जन्नत मे घर पाउ।
बस पिया मिलन मै कर जाऊ

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