Tuesday 17 July 2018

तपती धुप और अंगारे

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तपती धूप मै अंगारो पे चलती हु
और देखने वाले जलते है के
कितने सुपून से मे चलती हु

होंठो पे बहाने से हँसी के मरहम रखती हु
खुद ही खुद के जख्मो को भरती हु
और लोग उठाते है सवाल के
ऐसे कैसे कहकहे मै भरती हु

किसकी तलाश मे निकले, किसको मंजिल कहे
खिसकती है पैरो तले से ज़मीन
जहा जहा भी कदम मे रखती हु



Ruchi Sehgal

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