Monday, 30 December 2019
मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा minnat karte jindagi bitaa lunga
वो रूठ जाए तो मना लूंगा
वो नखरे दिखाए तो उठा लूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा
वो भूल जाये मुझको तो याद दिला दूंगा
वो नजरे चुराए तो नजरो के सामने ही रहूंगा
वो मेरे न हुए तो खुदको उनके नाम लिखा दूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा
वो बेवफाई भी करे तो भी अकेले ही वफ़ा निभा दूंगा
देना पड़ा गर उनको हिसाब तो सब बही खाते मिटा दूंगा
वो चाहत नही इबादत है मेरी ,मैं जिद्द को जुनून बना दूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा
गलती से रोये गर कभी वो तो मैं खुद को मोम सा पिघला दूंगा
हँसना चाहेंगे गर कभी वो तो खुद को जोकर बना दूंगा
दिल्लगी करे या दिलजोई , मै लम्हा उनके कदमो मैं रहूंगा
बस इसी तरह मिन्नत करते जिंदगी बिता लूंगा
Saturday, 28 December 2019
काश कोई ऐसा इंतजाम हो जाये
काश कोई ऐसा इंतजाम हो जाये
के बेवफाओ के चेहरे की खास पहचान हो जाये
शहरों शहर घूमकर करते है दिल्लगी
उनका धंधा बस एक बार मैं ही तमाम हो जाये
कोई काजल का टीका या छोटा सा तिल
चेहरे पर ही कोई बेवफाई का निशान हो जाये
उभर आये नीयत के दाग चेहरे पर ही
ताकि उसके चेहरे की मासूमियत उसके काम ना आये
या फिर यू हो के थोड़ा शर्म का कोटा ही बढ़ा दो
के जो करे बेवाफ़ाई उसकी नजरे ही झुका दो
वो सामने आए तो देखकर झुकी गर्दन उसकी
साबित खुद ब खुद सब इल्जाम हो जाये
Saturday, 14 December 2019
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
तन पर दो सूती कपड़े लपेट कर देश प्रेम में जलना चाहता हु
करोड़ो का सूट पहन के देशभक्ति और फकीरी का दावा करने वालो के लिए फिर से
भारत छोड़ो आंदोलन करना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं बनना चाहता हु
मैं वो गांधी बनना चाहता हु जो पराये देश को भी अपना बना डाले
ना कि वो नेता जो 70 साल की महिला को बार बाला कह डाले
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
सही कहते है के जो कहते है के देश की सत्ता क्या गांधी परिवार ही चलाएगा
गांधी का परिवार तो ये देश है बच्चा बच्चा कब खुद के अंदर का गांधी पहचान पायेगा
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
मैं सत्ता वाला गांधी नही सेवा वाला गांधी कहलाना चाहता हु
विदेशो की नही देश की भीतर का हाल जानना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
भेद भाव और जातपात की औकात मिटाना चाहता हु
देश प्रेम को ही सबका धर्म बनाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
स्वतंत्रता का सेनानी से महात्मा कहलाने की खोज में जाना चाहता हु
सच मानो गर जिंदा रहता आज तो गोडसे को भी गले लगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
बात बात पे पाकिस्तान पहुचाने वालो को अखंड भारत वाली सोच सुनना चाहता हु
सरहद पार की जमी भी हिन्द का ही खंड थी कभी बस ये बताना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
है हिन्दू मेरा भाई, है मेरा मुसलमान भी मेरा भाई
ये याद कराना चाहता हु
एक घर के दो हिस्से हो तो भी वैर न पालो ये बात बटवारे के संदर्भ में समझाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
लोकतंत्र की बात है जो चाहे नेता बने जो चाहे बने फकीर
सत्ता दिलो पे राज का नाम है कुर्सी पे नही, बस इतना समझाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
हे देशबन्धुओ, नेता और अभिनेता मैं फर्क तुम भूल न जाना
ढोल तमाशे ठहाको को राजनीति का हिस्सा न बना देना
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
आज़ादी की लड़ाई खत्म हुई पर काले अंग्रेजो से जंग अभी बाकी है
घूसखोरों भरस्टाचारो के खिलाफ फिर से अभियान चलाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
अब घर घर से एक गांधी बाहर आये इस जरूरत का अहसास दिलाना चाहता हु
गांधी वाली सोच को फिर से दिलो मैं जगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
कैसे सोचा घर खुद का जले तो तुम चैन से सो जाओगे
गांधी नाम नही था सोच और आवाज थी फिर से देश को जगाना चाहता हु
मैं गांधी नही हु पर मैं गांधी बनना चाहता हु
मैंने जी है जिंदगी
तेरी वफ़ा के भरम मैं जी ली है मैंने मेरी जिंदगी
तूने जब जब पुकारा मेरा नाम
एक नई सांस भरी है मेरी जिंदगी
बिछुड़ गया तो बरसो पहले
पर पल पल तेरी याद में मैंने जी है जिंदगी
सावन की तरह बरसी है मेरी आँखें
खारे पानी को मीठा समझ मैंने पी है जिंदगी
तेरा इंतजार इस हद तक किया है मैंने
देखने वालों ने इसे कहा है तेरी बंदगी
सिर्फ जिस्म ही मेरा रहा मुझमें बाकी
रूह तो तेरे नाम की थी जब तक थी ये जिंदगी
Friday, 6 December 2019
दरमियां अधूरी रचना
तेरे मेरे दरमियां है ये क्या फासला
बस चार कदम ही तो है दरमियां
तेरे झरोखे से झलकती रोशनी की किरणें
मेरे झरोखों से साफ दिखती है
वो हवा भी मेरे छत से चलती है के जिसके छूते ही तू बला सी मचलती है
यू वफ़ा निभाओगे yu vafaa nibhaoge
तुम यू वफ़ा निभाने की बात करते हो
मानो एक शेर, बकरी न खाने की कसम खाता हो
Thursday, 5 December 2019
एक और सर्द रात
एक और सर्द रात
अंधेरे के ग्यारह बजे आज
और मेरी एक और सर्द रात
आंखे नींद से बोझिल होती हुई
पर दिल कहे के क्या करेगी सोकर आज
बदन पूरी तरह थकान से चूर हो रहा है
मानो उसके जाने का गम फिर ताजा हो रहा है
सोने को तो सो जाऊ पल भर में ही
मगर रूह पे फिर पुराने अहसासों का जादू हो रहा है
कुछ लाहसिल नाकामयाब ख्वाइशें फिर से दस्तक दे रही है
कोई आवाज कहती के तू सो जा , हम भी यही है
सो जाऊ गर आज भी तकिया उनकी बाजू का हो
सो जाऊ गर उनकी सांसो की आवाज मेरे कानों में हो
ढीठ कितना है ये दिल , सो दफा समझाये पे भी मानता नही
हर बार उस मुसाफिर का राह देखता है जो इस तरफ का रास्ता भी जनता नही
ये तो शुक्र है के तेरे दर्द के मारे सो जाती हु तो देख लेती हूं तुनको
वरना तो नींद से परियो से सालो से मेरा कोई वास्ता ही नही