Saturday, 22 September 2018
एक सवाल है तुमसे
मुझे लगा के मे तुमको जानती थी
इसीलिए खुदा मानती थी
मगर तुमने ये क्या किया
खुदा बनकर मेरा ही विश्वास गिरा दिया
मैंने पूछा था तुमसे हजार बार
के छोड़ तो न दोगे गर किया तुमपे ऐतबार
तुमने भी तो मेरे हर सवाल पे खुद को
मेरी नजरो मे चट्टान सा बना दिया
वो तुम ही थे जो कहते थे के
चट्टानों सा अडिग हु मे
फिर खुद ही मेरी दुनिया को यु हिला दिया
के हर चट्टान को चंकनाचुर कर दिया
तुमको याद है ना बहुत वादे किये थे
मुझे बुरा नहीं लगा जो वादों को भुला दिया
मगर ये कैसे हो गया तुमसे
के तुमने मुझको भी भुला दिया
अच्छा चलो , यु करते है
फिर से सब शुरू करते ह
मे एक एक करके सब याद करायुंगी
तुम बता देना के जब सब तुमको याद आ गया
तुमको याद है ना के मेरे बुलाने पर
कैसे तुम दुनिया को भुला के
सब काम को आग लगा के
बस मिलान धुन लगा के दोड़े आते थे
और वो रेलवे स्टेशन के बाहर चायवाला
और उसके पकोड़े, तुम कितने चाव से खाते थे
गर एक ही रंग पहना दो बार दिख जाऊ
तो दर्जन भर उस रंग की चीजे ले आते थे
ये सोचकर के शयद वो रंग पसंदीदा है मेरा
यु भी कई बार हुआ के तुम बात किसी से भी करते थे
तो अक्सर सामने वाले को मेरे नाम से ही पुकार लेते थे
तुमको लगता है के सब बीते जमाने की बाते हो गई है
मगर मुझको लगता है के मेरी दुनिया ही बस वाही कही रुक गई है
सच कहु तो कुछ समझ ही नहीं आता
के तुमसे बिछुड़ने का अफ़सोस करू
या तुम्हारे अपनी दुनिया मै आने का
बस एक ही सवाल है तुमसे
के जो ख्वाब तुम दिन रात सजाते थे
उनको अपने हाथो से तबाह कैसे कर दिया
No comments :
Post a Comment