Saturday, 22 September 2018
मे औरत हु
मे औरत हु
मर्यादा मे रहना मेरा धर्म है
सबकी सुनना मेरा कर्म है
कुछ न कहना ही शर्म है
पर अब मै मर्यादाये तोड़ूँगी
सब सीमाये को पीछे छोडूंगी
मे रही सदियो से ही अप्राधित्
मर्यादा पालन कर के भी करना पड़ता रहा साबित
यहाँ एक मर्यादा पुरषोतम राम ही भी मिला
मगर सीता के क्यों मर्यादा से जुड़ा नाम न मिला
अब मै भी मुह खोलूंगी
शर्म वाले चाहे तो बेशर्म कहे
मगर अब चुप न रहूंगी
पांडवो को मिला मेरा अधिकार
मगर कैसा किया उन्होंने मेरा तरिस्कार
अब न पूछे के ये द्रोपदी को क्या हुआ
क्यों हुआ महाभारत का प्रहार
युग परिवर्तन हो चला
अब चाहिए मुझे भी सम्मान
मै अपमानित होकर युद्ध का आवाहन क्यों करू
क्यों ना नीच को लज्जित कर के आरम्भ करू नवयुग का
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