Saturday 22 September 2018

मुझे लाल रंग पसंद नहीं

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बड़े चाव थे के मेहँदी लगेगी
बड़े चाव थे के ढोलक बजेगी
मेहँदी से लाल रंग आएगा
मगर अब मुझे लाल रंग पसंद नहीं

के जब भी होती थी मेरे ब्याह की बाते
शर्म से लाल होती थी दोनों गाले
मगर लकीरो का खेल देखो
अब मुझे लाल रंग पसंद नहीं

रंग बिरंगा सुर्ख जोड़ा, गोटे जरी से लदा
कड़ाई से फूलों का डिज़ाइन हो बना
ये अरमान था मेरा
मगर अब मुझे लाल रंग पसंद नहीं

लाल रंग की कीमत बहुत चुकाई मैंने
जिसकी इज्जत बनकर गई थी
उसने ही दाग लगाया दामन पे
तो अब मुझे लाल रंग पसंद नहीं

जिसको महल मानकर मे रहती रही
आज से बेहतर कल होगा ये सोच सब सहती रही
वो कल कभी आया ही नहीं
तो अब लाल रंग पसंद नहीं

एक औरत और एक माँ बनी
मगर उस घर की न बन सकी
अब कुछ और दिल चाहता नहीं
और लाल रंग मुझे पसंद नहीं

मेहँदी लगे लाल पैरो से घर के अंदर शामिल हुई
और खून भरे आंसू लेकर नए सफ़र पे चल पड़ी
ये भी तो लाल रंग था
और अब लाल रंग मुझे पसंद नही

इस लाल रंग की चाहत में
मे जोगन औरत माँ बनी
मगर शयद ये लाल रंग
मेरी किस्मत मै ही नहीं
तो अब लाल रंग पसंद ही नहीं


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