Saturday 22 September 2018

तेरे अन्दर का पत्थर

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इक दिन तुम मेरे पास आना
फिर से कोशिश करना
फिर से प्यार जगाना
मगर खुद करे के न चल पाये
तब तुम्हारा कोई बहाना
इक दिन तुम मेरे पास आना

जिंदगी शतरंज की चाल ना थी
मगर चाल तुम तो चल गए
शयद वो खूबसूरतहै मुझसे
मगर तुम तो जुबान से कैसे मचल गए

तुमको लाज जरा ना आई
और तुम बदल गए
कसमे हजार टूटी मगर
तुम बदल कर अटल रहे

मै अकेली तनहा रोती बिलखती
कैसे तुम इतने पत्थर बन गए
मगर तुम मेरे पास आना प्रिये
के मैं भी पत्थर बनकर देखना चाहती हु

मे चाहती हु के तुम्हारे आंसू बहे
और मे देखु के पत्थर क्यों पिघलते नही
मई चाहती हु के तेरा मेरा हिसाब
सब क्लियर हो जाए
ताकि कही मरने के बाद भी तू मेरे सामने न आ जाये
के कही यु न हो के तेरे गुनाहो के लिए फिर मुझे जज बनाया जाये
के कही तुमको कड़ी से कड़ी सजा न सुना दू मे
के कही तुम्हारे अंदर का पत्थर पिघल न जाए


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