Saturday, 29 June 2019
मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये
मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये
बिछुड़ जाए साथी तो उसे बेवफा न कहिये
बाप की पगड़ी धूल में न मिल जाये
अपनी दिलरुबा को किसी की बेटी भी समझिये
मर के जन्नत मिलेगी या नही ये मरने के बाद कि बात
जीना दुनिया मे है तो दुनियादारी की बात कीजिये
दूर होकर भी वफ़ा इश्क़ निभा सकते है तो निभा लीजिये
इश्क़ करना हो तो राधा कृष्ण सा कीजिये
Friday, 28 June 2019
सात आठ शेर saat aath sher
फिर मिला एक शख्स तन्हा सा
हजारो की भीड़ में कुछ जुदा सा
यू सबसे बात करता था
मगर रहता था खुद मैं डूबा सा
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तन्हाइयां, वीरानियाँ, रुसवाईयाँ, बेचैनियां,
कितना कुछ तो मिला इश्क़ मैं,
एक सुकून चला भी गया तो क्या हुआ
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तमाम उम्र तन्हाई मैं गुजरे तो भी तन्हाई की आदत नही होती
पर चार दिन उनके साथ क्या बिता लिये, आदत छूटती ही नही फिर
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तुम्हारी यादे शाम ऐ अवध की जैसी है
शाम होते ही खुद ब खुद नाचने लगती है आंखों में
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होंटो पे हँसी रखकर आज फिर दिन की शुरुवात करूँगी
खिड़की से देखूंगी खिलते फूलो को और तुमको याद करूँगी
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मैंने आंसू नही अंगारे पिये है
अब मत पूछना के जुबान से अंगारे क्यों बरसते है मेरी
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सच कहु तो अब उन्हें याद करने का दिल बिल्कुल भी नही करता
मगर उनकी यादे खुद ही बिना बुलाये चली आये तो क्या करूँ
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कभी कभी ऐसा लगता है के मैं सो रहा हु ओर
वो तकिये पे सर रख के अपनी जुल्फे मेरे सीने पे गिरा देती है
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जब भी बनती संवरती हु आईने को देखकर,
जाने कहा से उनकी आवाज कानों मैं कह जाती है के
'बाल खुले रखना'
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और हम तुमसे उलझे aur hum tumse uljhe
वो यू बाल सुलझाते है मेरे
के बाल खुद ब खुद उनकी
उंगलियो से लिपट जाते है
मानो के कह रहे हो तुम सुलझाओ
और हम तुमसे उलझे
काश ऐसी भी सुबह हो kash aisi subah ho
काश ऐसी भी सुबह हो,
मैं नींद से जागू अंगड़ाई से हाथ घुमाते हुये
और तुम सामने खड़े मिलो हसते मुस्कराते हुए
Monday, 24 June 2019
मेरे कुछ शेर
वो उसकी तस्वीर थी के जिससे जी भर के बाते किया करती थी
वार्ना तो वो गली से गुजरे तो खिड़की भी अपनी बन्द रखा करती थी
चूमकर रखती थी तस्वीर उसकी मगर सामने उसके नजरें झुका के रखती थी
ये बात और है के बंद खिड़की के सुराखों से भी उसको देखा करती थी
खत्म होने को है मोहब्बतों के सिलसिले
खुदा जाने के फिर हम मिले ना मिले
चलो इक बार अलविदा कह
लग के फिर से उसके गले
मुझे भी है तुमसे काम बड़े,
रात को ख्वाबो में आना तो बताउंगी
तेरी यादे सोने भी नही देती
मेरा बस चला तो आज तुमको भी जगाऊंगी
Thursday, 20 June 2019
मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये mohabbat ko sharto ka paband na kijiye
मोहब्बत को शर्तो का पाबंद ना कीजिये
बिछुड़ जाए साथी तो उसे बेवफा न कहिये
बाप की पगड़ी धूल में न मिल जाये
अपनी दिलरुबा को किसी की बेटी भी समझिये
मर के जन्नत मिलेगी या नही ये मरने के बाद कि बात
जीना दुनिया मे है तो दुनियादारी की बात कीजिये
दूर होकर भी वफ़ा इश्क़ निभा सकते है तो निभा लीजिये
इश्क़ करना हो तो राधा कृष्ण सा कीजिये
Tuesday, 18 June 2019
यानी तुम मुझे देखती तो हो
मैंने कहा,
जब जुड़ा हो गए है रास्ते
तो मेरे पीछे आते हो किस वास्ते
क्यों खुद को जलील करवाते हो
क्यों दुनिया में खुद का मजाक बनाते हो
उसने कहा
शुक्र है खुदा, यानी तुम मुझे देखती हो
न हो कोई रिश्ता अब पर पुराना कोई ताल्लुक मानती तो हो
तेरे लिए खुद की रुसवाई मंजूर हमें
बस तेरी नजरो से दुरी नहीं मंजूर हमें
मैं तुमको नजर ना आयुंगी
इन आँखों में सो जयुंगी
मैं बातो में रह जयुंगी
कुछ चंचल खट्टी मीठी सी
मै यादो में खो जयुंगी
कल श्याद मैं तुमको नजर ना आयुंगी
इक दिन तुमको खलेगी
ढूँढोगे हर लम्हा पर न मिलेगी
मेरे रंग में फिजा ये रंगेगी
मैं नहीं बस तस्वीर मेरी रहेगी
मै बादलो में चेहरा बनकर उभर आयुंगी
कल श्याद तुमको नजर न आयुंगी
सांसे तुम्हारी कुछ मद्धम होंगी
दिए की लो भी कुछ कम होंगी
उजली सुबह में ढलती शाम मिलेगी
रंगो में भी पहले सी वो जान न होगी
फिर से छत पे दुपट्टा लहराने मैं न आयुंगी
कल श्याद तुमको नजर न आयुंगी
Monday, 3 June 2019
मशहूर ठिकाना
वो अकेला खड़ा बूढ़ा शजर कुछ पुराना सा लगता है
किसी गुजरे जमाने का कोई मशहूर ठिकाना सा लगता है
कुरबते इतनी है
कुरबते इतनी है के वो आये तो मैं उनमे अपनी रूह डाल दु मगर फासले इतने है के जानती ही नही के वो अब कभी नजर भी आएंगे या नही
गलतफहमी galatfahmi
उनके सब वादे,कसमे ओर इसरार , बाजुबानी याद है मुझको,
आज कैसे कह सकते है वो के गलतफहमी है मुझको,
लत latt
तुमसे बाते करने की लत यू लगी के
आज भी तुमको चिट्ठियां लिखा करती हूं
जबकि जमाना फ़ोन का है पर आदते बिगर जाए तो सुधरा नही करती,
तेरे लिए ही बनी हु tere liye hi bani hu
प्रीतम रंग रंगी हु, साजन की संगिनी हु,
बिछुड़ के भी ये ही कहूंगी के तेरे लिए ही बनी हु
घोसला चाहती हु,
थका हुआ परिंदा हु मैं,अब घोसला चाहती हु, बहुत कुछ है कहने सुनने को, बस कोई अपना चाहती हु
तरसे मेरे दीदार को,
खुदा करे के वो दिन आये के वो एक बार फिर से तरसे मेरे दीदार को,
पर इस बार मैं लौटकर न देखु उन्हें, बिल्कुल उनकी तरह
पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त
यकीन नही होता के हमारी कहानी खत्म हो चुकी है
दिल बार बार ये कहता है के पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त
खुदा सलामत रखे मेरे चुगलखोरों को,
खुदा सलामत रखे मेरे चुगलखोरों को,
एक ये ही तो मेरे जाने के बाद भी मुझे याद करते है
तशुदुत का काम
कुछ लोग तशुदुत का काम भी बड़े कारीगिरी से करते है
निशान तक भी दिखाई नही देता लेकिन जिस्म से रूह तक के टुकड़े हजार करते है
खामोश किनारे khamosh kinare
तुम बिन कहने सुनने वाला कोई नही
अब जुगनू, तारो और इन खामोश किनारो को कितने किस्से सुनाऊ
ये कैसी तृष्णा ye kaisi trishna
कुछ चिराग जल रहे है
कुछ चिराग बुझ गए है
मगर ये कैसी तृष्णा के न जल रहे है हम न बुझ गए
कान्हा नींद न देना kanha neend na dena
या तो कान्हा नींद न देना
नींद देना तो स्वप्न न देना
स्वप्न दो तो अपने मत देना
अपने स्वप्न दो तो नींद खुलने मत देना
मैं तुम्हे भुला नहीmain tumhe bhula nahi
काश के वो एक बार मुझे बस इतना कह जाए के मैं तुम्हे भुला नही रुचि,
तो ये तमाम उम्र सुकून से कट जाए
वक़्त नही तुम्हारे पास waqt nahi tumhare paas
तुम कहते हो के जल्दी बात खत्म करू, वक़्त नही तुम्हारे पास मेरे लिए
अब तुम ही बताओ के हजारो रातो के लाखों ख्वाब एक पल में कैसे बयाँ करू
कान्हा तुम जैसी ही हो जाउ मैं भी
काश कान्हा तुम जैसी ही हो जाउ मैं भी
प्रीत लगाकर, नेह जगाकर, दूर समुद्र में नगर बसाऊ मैं भी
मेरे नाम से mere naam se
क्यो खुद को अजियत देते हो मेरे नाम से उठते सवालो पे, कह दिया करो के जानता नही किसी रुचि को मै
हिज्र की गर्मी से hijr ki garmi se
क्या धूप खिली है हिज्र की गर्मी से
के चांदनी से भी दिल जलता ही रहा
बस अभी अभी
उनकी हथेलियों के ख्याल मेरे चेहरे पे छा जाते है कभी कभी,
के जैसे मेरे केसुओ को सहलाया हो उन्होंने बस अभी अभी
एक फूल
टाहनी से एक फूल गिरा और
गिर कर पंहुचा राहों में
कुचला सबने बारी बारी
आया क्यों वो निगाहों में।
Sunday, 2 June 2019
हकीम साहब, hakeem sahab
यादाश्त बढ़ाने की बहुत नुक्से होंगे हकीम साहब,
गर कुछ भुलाने का भी कोई दवाई हो तो हमे भी बताना
मोहब्बत वोहब्बत कुछ नहीं mohabbat vohabbat kuch nahi
मोहब्बत वोहब्बत कुछ नहीं बस दिलजोई थी सनम की
कुछ चुनरी महक रही थी कुछ चूडियों की खनक थी
काश kash
काश पहले की तरह, मैं रुमझुम तराना कोई गायु, तुम मेरे गीतों पे यू ही मुस्कराओ,
काश फिर से मैं तारे देखने छत पे आउ ओर तुम मुझे देखने छत पे आ जाओ
वो कहता था vo kahta tha
वो कहता था के रुचि तुमसा इस दुनिया मे कोई नही,
मगर लगता है के शायद कोई और मुझ जैसा मिल गया उसको
उनको क्या मालूम unko kya maloom
वो मेरी वफ़ा को तोलते है, उनको क्या मालूम वफ़ा को तराजू मैं नहीं रखा जाता
मुझे देखकर mujhe dekhkar
तू भूल गया मोहब्बत करना मगर तेरी तस्वीर नही भूली हमे,
जब भी देखती हूं तस्वीर में , तुम अब भी मुस्कराते हो मुझे देखकर
उसको करार आयाusko karaar aaya
वो सबूत मांगता रहा मोहब्बत के मुझसे
बेवफा करार कर के ही मुझे उसको करार आया
सब याद है मुझे sab yaad hai mujhe
बारिशो मैं साथ भीगना, ताश के पत्तो मैं तेरा हारना
तकियों को हथियार बनाकर लड़ना
चादर से गुस्से से मुह ढक लेना
सब तो याद है मुझे, तो भूल कहा हुई मुझसे
गहरी नींद में हु gahri neend mei hu
गहरी नींद में हु मैं, कुछ तेरे इश्क़ की , कुछ तेरी वहशत की
गहरी नींद में हु मैं , कभी विसाल ऐ यार में तो कभी हिज्र मैं
गहरा नशा है ये तेरी वफ़ा का तो कभी जफ़ा का
अधूरे स्वप्न adhure swapn
कितने अधूरे स्वप्न है मन के वृन्दावन मैं
तुम किसी दिन कान्हा बनकर मिलो इस जीवन में
बांसुरी की मधुर धुन बजती रही धड़कन मैं
तुम्हारे पैरो मैं चंदन लगाकर बन जाउ धन्य मैं
अजियत aziyat
क्यो खुद को अजियत देते हो मेरे नाम से उठते सवालो पे, कह दिया करो के जानता नही किसी रुचि को मै
फ़साना fasana
मैं शायरी पढ़ रही थी
कुछ गजल कह रही थी
किताब के पीछे से आंखे ही दिख रही थी
गजल क्या कहती नज्म क्या पढ़ती
के खुद फ़साना बन गयी थी