Sunday 2 June 2019

फ़साना fasana

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मैं शायरी पढ़ रही थी
कुछ गजल कह रही थी
किताब के पीछे से आंखे ही दिख रही थी
गजल क्या कहती नज्म क्या पढ़ती
के खुद फ़साना बन गयी थी


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