Friday 31 January 2020
कहो जी मोहन कहाँ से आयो हमें सबेरे जगा रहे हो।
कहो जी मोहन कहाँ से आयो हमें सबेरे जगा रहे हो।
सवत के संग में जगे हो प्यारे अधर की लाली मिटा रहे हो।
कहाँ भुलाया गजब की वंशी हमें तू नाहक सता रहे हो।
लगी है यारी वहाँ तुम्हारी कसम भी लाखों सुना रहे हो।
गई थी कुंजन में कल हमीं भी पता लगी है सभी तुम्हारे।
हटो जी बाँके न बोलूँ तुम से रसीली आँखें दिखा रहे हो।
सदा महेन्दर दिलों के अंदर कपट का पासा खेला रहे हो।
हमे देखा के अवसर से मिलते जले को अब क्या जला रहे हो।
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment