Friday, 17 January 2020
हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं hairaa hu dil ko royu ki peetu jigar ko
हैरां हूँ, दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर हूँ तो साथ रखूँ नौहागर को मैं
छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं
जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
ऐ काश, जानता न तेरी रहगुज़र को मैं
है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं
लो, वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं
चलता हूँ थोड़ी दूर हर-इक तेज़-रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं
ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगर को मैं
फिर बेख़ुदी में भूल गया, राह-ए-कू-ए-यार
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं
अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का
समझा हूँ दिल-पज़ी मताअ़-ए-हुनर को मैं
"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़
देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर को मैं
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