Saturday 29 February 2020
आज शिशु के कवि को अनजान मिल गया अपना गान!
आज शिशु के कवि को अनजान
मिल गया अपना गान!
खोल कलियों के उर के द्वार
दे दिया उसको छबि का देश;
बजा भौरों ने मधु के तार
कह दिए भेद भरे सन्देश;
आज सोये खग को अज्ञात
स्वप्न में चौंका गई प्रभात;
गूढ़ संकेतों में हिल पात
कह रहे अस्फुट बात;
आज कवि के चिर चंचल-प्राण
पागए अपना गान!
दूर, उन खेतों के उस पार,
जहाँ तक गई नील-झंकार,
छिपा छाया-बन में सुकुमार
स्वर्ग की परियों का संसार;
वहीं, उन पेड़ों में अज्ञात
चाँद का है चाँदी का वास,
वहीं से खद्योतों के साथ
स्वप्न आते उड़-उड़ कर पास।
इन्हीं में छिपा कहीं अनजान
मिला कवि को निज गान!
रचनाकाल: जनवरी’ १९२६
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