Saturday 29 February 2020
नव वधू के प्रति
दुग्ध पीत अधखिली कली सी
मधुर सुरभि का अंतस्तल
दीप शिखा सी स्वर्ण करों के
इन्द्र चाप का मुख मंडल!
शरद व्योम सी शशि मुख का
शोभित लेखा लावण्य नवल,
शिखर स्रोत सी, स्वच्छ सरल
जो जीवन में बहता कल कल!
ऐसी हो तुम, सहज बोध की
मधुर सृष्टि, संतुलित, गहन,
स्नेह चेतना सूत्र में गुँथी
सौम्य, सुघर, जैसे हिमकण!
घुटनों के बल नहीं चली तुम,
धर प्रतीति के धीर चरण,
बड़ी हुई जग के आँगन में,
थामे रहा बाँह जीवन!
आती हो तुम सौ सौ स्वागत,
दीपक बन घर की आओ,
श्री शोभा सुख स्नेह शांति की
मंगल किरणें बरसाओ!
प्रभु का आशीर्वाद तुम्हें, सेंदुर
सुहाग शाश्वत पाओ
संगच्छध्वं के पुनीत स्वर
जीवन में प्रति पग गाओ!
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