Saturday, 29 February 2020
ताल कुल
संध्या का गहराया झुट पुट
भीलों का सा धरे सिर मुकुट
हरित चूड़ कुकड़ू कूँ कुक्कुट
एक टाँग पर तुले, दीर्घतर
पास खड़े तुम लगते सुन्दर
नारिकेल के हे पादप वर!
चक्राकार दलों से संकुल
फैलाए तुम करतल वर्तुल,
मंद पवन के सुख से कँप कँप
देते कर मुख ताली थप थप,
धन्य तुम्हारा उच्च ताल कुल!
धूमिल नभ के सामने अड़े
हाड़ मात्र तुम प्रेत से बड़े
मुझे डराते हिला हिला सर
बीस मूड़ औ’ बाँह नचाकर!
हैं कठोर रस भरे नारिफल
मित जीवी, फैले थोड़े दल!
देवों की सी रखते काया
देते नहीं पथिक को छाया!
अगर न ऊँचे होते दादा
कब का ऊँट तुम्हें खा जाता!
एक बार पर लगता प्यारा
दूर, तरंगित क्षितिज तुम्हारा!
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment