Saturday 29 February 2020
सुन्दरता का आलोक-श्रोत
सुन्दरता का आलोक-श्रोत
है फूट पड़ा मेरे मन में,
जिससे नव जीवन का प्रभात
होगा फिर जग के आँगन में!
मेरा स्वर होगा जग का स्वर,
मेरे विचार जग के विचार,
मेरे मानस का स्वर्ग-लोक
उतरेगा भू पर नई बार!
सुन्दरता का संसार नवल
अंकुरित हुआ मेरे मन में,
जिसकी नव मांसल हरीतिमा
फैलेगी जग के गृह-बन में!
होगा पल्लवित रुधिर मेरा
बन जग के जीवन का वसन्त,
मेरा मन होगा जग का मन,
औ’ मैं हूँगा जग का अनन्त!
मैं सृष्टि एक रच रहा नवल
भावी मानव के हित, भीतर,
सौन्दर्य, स्नेह, उल्लास मुझे
मिल सका नहीं जग में बाहर!
रचनाकाल: अप्रैल’१९३६
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