Saturday, 29 February 2020
जाति मन
सौ सौ बाँहें लड़ती हैं, तुम नहीं लड़ रहे,
सौ सौ देहें कटती हैं, तुम नहीं कट रहे,
हे चिर मृत, चिर जीवित भू जन!
अंध रूढिएँ अड़ती हैं, तुम नहीं अड़ रहे,
सूखी टहनी छँटती हैं, तुम नहीं छँट रहे,
जीवन्मृत नव जीवित भू जन!
जाने से पहिले ही तुम आगए यहाँ
इस स्वर्ण धरा पर,
मरने से पहिले तुमने नव जन्म ले लिया,
धन्य तुम्हें हे भावी के नारी नर!
काट रहे तुम अंधकार को,
छाँट रहे मृत आदर्शों को
नव्य चेतना में डुबा रहे,
युग मानव के संघर्षों को!
मुक्त कर रहे भूत योनि से
भावी के स्वर्णिम वर्षों को
हाँक रहे तुम जीवन रथ, नव मानव बन,
पथ में बरसा, शत आशाओं को,
शत हर्षों को!
सौ सौ बाँहें सौ सौ देहें नहीं कट रहीं,
बलि के अज, तुम आज कट रहे,
युग युग के वैषम्य, जाति मन,
एवमस्तु बहिरंतर जो तुम
आज छँट रहे!
Related Posts
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment