Friday, 31 January 2020

बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन की।

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बहार आई है झूलन की घटा छाई है सावन की।
छटा आई है मवसिम की सदा बिहरी जगावन की।
कहीं है शोर मोरन की कहीं पपिहा की बोलन की
कही झिंगुर झनकते हैं कही विरही सतावन की।
कहीं बिजली चमकती है कहीं बदरी लचकती है।
कहीं बूँदें बरसती है सोहावन दिन हैं झूलन की।
बजे मिरदंग ओ तबला तूमरा ओ सितारन की।
झुलावें राम ओ लछुमन को झूलें कुंडल कानन की।
झुलावें रामचन्दर को महेन्दर रूप पावन की।
करेंगे पार भवसागर नहीं उम्मीद आवन की।


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