Friday 30 November 2018

होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह

No comments :

नाम नबी की रतन चढ़ी बून्द पड़ी अल्लाह अल्लाह,
रंग रंगीली ओही खिलावे, जो सिक्खी होवे फनाफी-अल्लाह,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

अलसतों तों बलबिकम प्रीतम बोले, सभ सखियां ने घुंघट खोल्हे,
कालू बला ही यूं कर बोले, लाइलाह इलइला,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

नाहन अकरब की बंसी बजाई, मन अरफ नफसहु की कूक सुणाई,
फसुमावज्जु उल्हा की धूम मचाई, विच दरबार रसूले अल्लाह,
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

हाथ जोड़ कर पायों पड़ूंगी, आज़िज़ हो कर बेनती करूंगी,
झगड़ा कर भर झोली लूंगी, नूर मुहंमद सल्लउलाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

फ़ज़करूनी की होरी बनाऊं, फ़ज़करूनी पिया को रिझाऊं,
ऐसो पिया के मैं बल बल जाऊं, कैसा पिया सुबहान अल्लाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

सिबग़तउलाहै की भर पिचकारी, अलाह उस मद्द पी मूंह पर मारी,
नूर नबी दा हक्क से जारी, नूर मुहंमद-सल्ला इल्ला,
बुल्ल्हा शाह दी धूम मची है, लाय-ला-इल इलाह ।
होरी खेलूंगी कह बिसमिलाह ।

No comments :

Post a Comment