Thursday 29 November 2018

हक वफ़ा का जो हम जताने लगे

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हक वफ़ा का जो हम जताने लगे
आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे

हम को जीना पड़ेगा फुरक़त में
वो अगर हिम्मत आज़माने लगे

डर है मेरी जुबान न खुल जाये
अब वो बातें बहुत बनाने लगे

जान बचती नज़र नहीं आती
गैर उल्फत बहुत जताने लगे

तुम को करना पड़ेगा उज्र-ए-जफा
हम अगर दर्द-ए-दिल सुनाने लगे

बहुत मुश्किल है शेवा-ए-तस्लीम
हम भी आखिर को जी चुराने लगे

वक़्त-ए-रुखसत था सख्त “हाली” पर
हम भी बैठे थे जब वो जाने लगे

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