Friday 30 November 2018

ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा कुछ नहीं ज़ोर धिङाना ।

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ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा
कुछ नहीं ज़ोर धिङाना ।

गए सो गए फेर नहीं आए, मेरे जानी मीत प्यारे,
मेरे बाझों रहन्दे नाहीं, हुन क्यों असां विसारे,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

चित प्यार ना जाए साथों, उभ्भे साह ना रहन्दे,
असीं मोयां दे परले पार, ज्यूंद्यां दे विच बहन्दे,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

ओथे मगर प्यादे लग्गे, तां असीं एथे आए,
एथे सानूं रहन ना मिलदा, अग्गे कित वल धाए,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाना ।

बुल्ल्हा एथे रहन ना मिलदा, रोंदे पिटदे चल्ले,
इको नाम ओसे दा ख़रची, पैसा होर ना पल्ले,
ख़ाकी ख़ाक सूं (स्युं) रल जाणा
ना कर ज़ोर धिङाना ।

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