Thursday, 29 November 2018
कह-मुकरियाँ अमीर खुसरो
कह-मुकरियाँ अमीर खुसरोकह-मुकरियाँ
अति सुरंग है रंग रंगीलो
है गुणवंत बहुत चटकीलो राम भजन बिन कभी न सोता ऐ सखि साजन ? ना सखि तोता ।। अर्ध निशा वह आया भौन सुंदरता बरने कवि कौन निरखत ही मन भयो अनंद ऐ सखि साजन ? ना सखि चंद ।। आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे। श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखि साजन ? न सखि! मैंना।। आप हिले और मोहे हिलाए वा का हिलना मोए मन भाए हिल हिल के वो हुआ निसंखा ऐ सखि साजन ? ना सखि पंखा ।। ऊंची अटारी पलंग बिछायो मैं सोई मेरे सिर पर आयो खुल गई अंखियां भयी आनंद ऐ सखि साजन ? ना सखि चांद ।। खा गया पी गया दे गया बुत्ता ऐ सखि साजन ? ना सखि कुत्ता ।। घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें, कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन। ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखि साजन ? न सखि ! तोता।। जब माँगू तब जल भरि लावे मेरे मन की तपन बुझावे मन का भारी तन का छोटा ऐ सखि साजन ? ना सखि लोटा ।। जीवन सब जग जासों कहै वा बिनु नेक न धीरज रहै हरै छिनक में हिय की पीर ऐ सखि साजन ? ना सखि नीर ।। नंगे पाँव फिरन नहिं देत पाँव से मिट्टी लगन नहिं देत पाँव का चूमा लेत निपूता ऐ सखि साजन ? ना सखि जूता ।। नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है। मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखि साजन ? न सखि ! चंदा।। नीला कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा। देखत घटा अलापै जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर।। पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो जब उतरयो तो पसीनो आयो सहम गई नहीं सकी पुकार ऐ सखि साजन ? ना सखि बुखार ।। बखत बखत मोए वा की आस रात दिना ऊ रहत मो पास मेरे मन को सब करत है काम ऐ सखि साजन ? ना सखि राम ।। बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे। वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखि साजन ? न सखि ! आम।। बिन आये सबहीं सुख भूले आये ते अँग-अँग सब फूले सीरी भई लगावत छाती ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती ।। बेर-बेर सोवतहिं जगावे ना जागूँ तो काटे खावे व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की ऐ सखि साजन ? ना सखि मक्खी ।। राह चलत मोरा अंचरा गहे। मेरी सुने न अपनी कहे ना कुछ मोसे झगडा-टंटा ऐ सखि साजन ? ना सखि कांटा ।। रात समय वह मेरे आवे भोर भये वह घर उठि जावे यह अचरज है सबसे न्यारा ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा ।। लिपट लिपट के वा के सोई छाती से छाती लगा के रोई दांत से दांत बजे तो ताड़ा ऐ सखि साजन ? ना सखि जाड़ा ।। वो आवै तो शादी होय उस बिन दूजा और न कोय मीठे लागें वा के बोल ऐ सखि साजन ? ना सखि ढोल ।। सगरी रैन छतियां पर राख रूप रंग सब वा का चाख भोर भई जब दिया उतार ऐ सखि साजन ? ना सखि हार ।। सगरी रैन मिही संग जागा भोर भई तब बिछुड़न लागा उसके बिछुड़त फाटे हिया, ए सखि साजन ? ना, सखि ! दिया(दीपक) सरब सलोना सब गुन नीका वा बिन सब जग लागे फीका वा के सर पर होवे कोन ऐ सखि साजन ? ना सखि ! लोन(नमक) सेज पड़ी मोरे आंखों आए डाल सेज मोहे मजा दिखाए किस से कहूं अब मजा मैं अपना ऐ सखि साजन ? ना सखि सपना ।। शोभा सदा बढ़ावन हारा आँखिन से छिन होत न न्यारा आठ पहर मेरो मनरंजन ऐ सखि साजन ? ना सखि अंजन ।। |
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