Thursday 29 November 2018

परबत बास मँगवा मोरे बाबुल, नीके मँडवा छाव रे

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परबत बास मँगवा मोरे बाबुल, नीके मँडवा छाव रे।
डोलिया फँदाय पिया लै चलि हैं अब संग नहिं कोई आव रे।
गुड़िया खेलन माँ के घर गई, नहि खेलन को दाँव रे।
गुड़िया खिलौना ताक हि में रह गए, नहीं खेलन को दाँव रे।
निजामुद्दीन औलिया बदियाँ पकरि चले, धरिहौं वाके पाव रे।
सोना दीन्हा रुपा दीन्हा बाबुल दिल दरियाव रे।
हाथी दीन्हा घोड़ा दीन्हा बहुत बहुत मन चाव रे।

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