Friday 30 November 2018

इह अचरज साधो कौण कहावे । छिन छिन रूप कितों बण आवे

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इह अचरज साधो कौण कहावे ।
छिन छिन रूप कितों बण आवे ।

मक्का लंका सहदेव के भेत, दोऊ को एक बतावे ।
जब जोगी तुम वसल करोगे, बांग कहै भावें नाद वजावे ।
भगती भगत नतारो नाहीं, भगत सोई जेहड़ा मन भावे ।
हर परगट परगट ही देखो, क्या पंडत फिर बेद सुनावे ।
ध्यान धरो इह काफ़र नाहीं, क्या हिन्दू क्या तुर्क कहावे ।
जब देखूं तब ओही ओही, बुल्ल्हा शौह हर रंग समावे ।

इह अचरज साधो कौण कहावे ।
छिन छिन रूप कितों बण आवे ।

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