Wednesday, 22 January 2020
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
वही होता है जो मंज़ूर-ए-ख़ुदा होता है
नहीं बचता नहीं बचता नहीं बचता आशिक़
पूछते क्या हो शब-ए-हिज्र में क्या होता है
बे-असर नाले नहीं आप का डर है मुझ को
अभी कह दीजिए फिर देखिए क्या होता है
क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ से दें आशिक़-ए-जार
वाक़ई तूल-ए-शब-ए-हिज्र बला होता है
यूँ तकब्बुर न करो हम भी हैं बंदे उस के
सजदे बुत करते हैं हामी जो ख़ुदा होता है
‘बर्क़’ उफ़तादा वो हूँ सल्तनत-ए-आलम में
ताज-ए-सर इज्ज़ से नक़्श-ए-कफ़-पा होता है
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