Tuesday, 27 November 2018
लू को मुझे छूने तक न दिया loo ko chhune tak
कभी कसम देकर रोक लिया
तो कभी रस्म बनाकर बांध लिया
इसी सिलसिले से जुदा उसने खुद को मुझसे होने न दिया
आंधिया आई तो घरोंदा दिया
लो डगमगाई तो हाथो से ओट मै लिया
सच है यही के तूफ़ान में कभी उसने मुझे घिरने न दिया ।
धुप खिली तो वो छाया बन गया
अकेली हुई तो वो साया बन गया
जून के महीने मै भी उसने लूँ को मुझे छूने तक न दिया
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