Monday, 31 December 2018
जब पुराने रास्तों पर से कभी गुज़रे हैं हम
जब पुराने रास्तों पर से कभी गुज़रे हैं हम
करता- कतरा अश्क़ बन कर आँख से टपके हैं हम
वक़्त के हाथों रहे हम उम्र भर यूँ मुंतशर
दर -ब -दर रोज़ी की ख़ातिर चार- सू भटके हैं हम
हमको शिकवा है ज़माने से मगर अब क्या कहें
ज़िन्दगी के आख़िरी ही मोड़ पर ठहरे हैं हम
याद में जिसकी हमेशा जाम छ्लकाते रहे
आज जो देखा उसे ख़ुद जाम बन छलके हैं हम
एक ज़माना था हमारा नाम था पहचान थी
आज इस परदेस मैं गुमनाम से बैठें हैं हम
"चाँद" तारे थे गगन था पंख थे परवाज़ थी
आज सूखे पेड़ की एक डाल पे लटके हैं हम
करता- कतरा अश्क़ बन कर आँख से टपके हैं हम
वक़्त के हाथों रहे हम उम्र भर यूँ मुंतशर
दर -ब -दर रोज़ी की ख़ातिर चार- सू भटके हैं हम
हमको शिकवा है ज़माने से मगर अब क्या कहें
ज़िन्दगी के आख़िरी ही मोड़ पर ठहरे हैं हम
याद में जिसकी हमेशा जाम छ्लकाते रहे
आज जो देखा उसे ख़ुद जाम बन छलके हैं हम
एक ज़माना था हमारा नाम था पहचान थी
आज इस परदेस मैं गुमनाम से बैठें हैं हम
"चाँद" तारे थे गगन था पंख थे परवाज़ थी
आज सूखे पेड़ की एक डाल पे लटके हैं हम
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