Monday 31 December 2018

मेरे वजूद में बनके दिया वो जलता रहा

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मेरे वजूद में बनके दिया वो जलता रहा 
वो इक ख़याल था रोशन ज़ेहन में पलता रहा

बस गई काले गुलाबों की वो खुशबू रूह में 
हसीन याद का संदल था और महकता रहा

वो धूप छाँव गरमी सरदी ना पुरवाई 
बे एतबार-सा मौसम था और बदलता रहा

मैं जिनको डूबते छोड़ आया था मँझधारों में 
उन्हीं की याद में मैं उम्रभर तड़पता रहा

वस्ल की रात थी सरग़ोशियों का आलम था 
जो टूटा ख़्वाब तो मैं रात भर सुबकता रहा

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