Saturday, 29 December 2018

तमन्नाओं में उलझाया गया हूं

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तमन्नाओं में उलझाया गया हूं
खिलौने दे कर बहलाया गया हूं

हूं इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाह
इधर से मुद्द्तों आया गया हूं

नहीं उठते क्यों क़दम जानिब-ए-दैर
किसी मस्जिद में बहकाया गया हूं

दिल-ए-मुज़्तर से पूछ ऐ रौनक़-ए-महफ़िल
मैं ख़ुद आया नहीं, लाया गया हूं

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