Saturday, 29 December 2018
समय केहन भेल घोर हे शिव!
समय केहन भेल घोर हे शिव!
गोधन विपति, धरम अवनति देखि कत हिय करब कठोर॥
साधु समाज राजसँ पीड़ित अति हरषित-चित चोर।
अकुलिन लोकेँ धरणि परिपूरित कुलिन समादर थोड़॥
धरम सुनीति प्रीति ककरहु नहि, खलहिक चलइछ जोर।
कन्द-मूल-फल सेहो अब दुरलभ अन्न गेल देशक ओर॥
किछु शुभ साधन बनि नहि पड़इछ थाकल मन, मति भोर।
कह कवि चन्द्र हमर दुख मेटत होयत कृपा शिव तोर॥
गोधन विपति, धरम अवनति देखि कत हिय करब कठोर॥
साधु समाज राजसँ पीड़ित अति हरषित-चित चोर।
अकुलिन लोकेँ धरणि परिपूरित कुलिन समादर थोड़॥
धरम सुनीति प्रीति ककरहु नहि, खलहिक चलइछ जोर।
कन्द-मूल-फल सेहो अब दुरलभ अन्न गेल देशक ओर॥
किछु शुभ साधन बनि नहि पड़इछ थाकल मन, मति भोर।
कह कवि चन्द्र हमर दुख मेटत होयत कृपा शिव तोर॥
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