Saturday 29 December 2018

नंग-ए-आशिक़ी है वो नंग-ए-ज़िन्दगी है वो

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हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं 
दर्द-आफ़रीं नज़र दर्द-आश्ना नहीं 

नंग-ए-आशिक़ी है वो नंग-ए-ज़िन्दगी है वो 
जिस के दिल का आईना तेरा आईना नहीं 

आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो 
हाए उस की बन्दगी जिस का तू ख़ुदा नहीं 

हैफ़ वो अलम-नसीब जिस का दर्द तू न हो 
उफ़ वो दर्द-ए-ज़िन्दगी जिस की तू दवा नहीं 

दोस्त या अज़ीज़ हैं ख़ुद-फ़रेबियों का नाम 
आज आप के सिवा कोई आप का नहीं 

अपने हुस्न को ज़रा तू मिरी नज़र से देख 
दोस्त! शश-जहात में कुछ तिरे सिवा नहीं 

बे-वफ़ा ख़ुदा से डर ताना-ए-वफ़ा न दे 
'ताजवर' में और ऐब कुछ हों बे-वफ़ा नहीं

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