Friday 4 January 2019

चेहराए-यार से नक़ाब उठा, chehra ae yaar se nakaab utha

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चेहराए-यार से नक़ाब उठा
दिल से इक शोरे-इज़्तराब उठा

रात पीरे-मुगाँ की महफ़िल से
जो उठा मस्त उठा ख़राब उठा

हम थे बेबाक और वह महजूब
शब, ग़रज़, लुत्फ़ बे-हिसाब उठा अपार

मस्ते-सहबाए-शौक़  है ’हसरत’
हमनशीं  सागरे-शराब उठा


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