सब्र मुश्किल है, ज़ब्त है दुशवार दिले-वहशी है और जुनूने-बहार लुत्फ़ कर लुत्फ़, ऐ सरापा नाज़ ! तुझपे रंगीनी-ए-बहार निसार रुह आज़ाद है ख़याल आज़ाद जिस्मे-’हसरत’ की क़ैद है बेकार
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