Sunday 6 January 2019

हम ये तो नहीं कहते के ग़म कह नहीं सकते, hum ye to nahi kahte

No comments :

हम ये तो नहीं कहते के ग़म कह नहीं सकते
पर जो सबब-ए-ग़म है वो हम कह नहीं सकते.

हम देखते हैं तुम में खुदा जाने बुतो क्या
इस भेद को अल्लाह की क़सम कह नहीं सकते.

रुसवा-ए-जहाँ करता है रो रो के हमें तू
हम तुझे कुछ ऐ दीदा-ए-नम कह नहीं सकते.

क्या पूछता है हम से तू ऐ शोख़ सितम-गर
जो तू ने किए हम पे सितम कह नहीं सकते.

है सब्र जिन्हें तल्ख़-कलामी को तुम्हारी
शरबत ही बताते हैं सम कह नहीं सकते.

जब कहते हैं कुछ बात रुकावट की तेरे हम
रुक जाता है ये सीने में दम कह नहीं सकते.

अल्लाह रे तेरा रोब के अहवाल-ए-दिल अपना
दे देते हैं हम कर के रक़म कह नहीं सकते.

तूबा-ए-बहिश्ती है तुम्हारा क़द-ए-राना
हम क्यूँकर कहें सर्व-ए-इरम कह नहीं सकते.

जो हम पे शब-ए-हिज्र में उस माह-लक़ा के
गुज़रे हैं ‘ज़फ़र’ रंज ओ अलम कह नहीं सकते.


No comments :

Post a Comment