Saturday, 5 January 2019
जाना पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ, jaana pe jee nisaar hua
जाना पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ
उस राह में ग़ुबार हुआ क्या बजा हुआ
मुद्दत से राज़-ए-इश्क़ मिरे पे अयाँ न था
ये भेद आशकार हुआ क्या बजा हुआ
ताज़े खिले हैं दाग़ के गुल दिल के बाग़ में
फिर मौसम-ए-बहार हुआ क्या बजा हुआ
दिल तुझ परी की आग में सीमाब की मिसाल
आख़िर कूँ बे-क़रार हुआ क्या बजा हुआ
किश्वर में दिल के था अमल-ए-सूबादार-ए-ऐश
अब ग़म का इख़्तियार हुआ क्या बजा हुआ
आहू-ए-दिल कि वहशी-ए-सहरा-ए-अक्ल था
तुझ ज़ुल्फ़ का शिकार हुआ क्या बजा हुआ
ओ आफ़्ताब आज मिरे क़त्ल पर ‘सिराज़’
शब-देज़ पर सवार हुआ क्या बजा हुआ
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
No comments :
Post a Comment