Thursday, 27 December 2018
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँग
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँग
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
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